विपुल रेगे। मणिरत्नम की ‘पोन्नियिन सेलवन’ रोलर कॉस्टर की रोमांचक राइड नहीं है। ये भारत के स्वर्णिम अतीत की यात्रा है, जो धीरे-धीरे दर्शक पर अपनी ग्रिप जमाती चली जाती है। ढाई घंटे की ये कहानी देखकर जब हम आधुनिक युग में वापस आते हैं तो इस बात पर भरोसा हो जाता है कि सिनेमा यकीन दिलाने की कला है। ये मणिरत्नम का सम्मोहन ही है, जिसके वश में आया दर्शक स्वयं को चोल साम्राज्य के भव्य राजप्रासाद में खड़ा महसूस करता है। यक़ीनन ये 500 करोड़ का अंधा दांव था लेकिन मणिरत्नम बॉक्स ऑफिस पर ये दांव जीतते दिखाई दे रहे हैं।
भारत की प्राचीन कथाओं पर फिल्म की घोषणा होते ही भारत का दर्शक दो भागों में बंट जाता है। उसे आप दक्षिणपंथी और वामपंथी दर्शकों की श्रेणी में सहजता से बाँट सकते हैं। एक दर्शक वर्ग इस फिल्म को देखने के लिए उत्साहित था तो दूसरा वर्ग ऋत्विक रोशन की ‘विक्रम वेधा’ का समर्थन कर रहा था। विरोधी मणिरत्नम की एक गलती के इंतज़ार में थे लेकिन मणि ने उन्हें कोई मौक़ा नहीं दिया।
पोन्नियिन सेलवन से मणिरत्नम ने सिद्ध किया कि वे दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग के चुने हुए स्टोरीटेलर्स में से एक हैं। पोन्नियिन सेलवन एक प्रसिद्ध उपन्यास है और मणिरत्नम ने उस उपन्यास को ऐसे सजीव कर दिया कि पात्र किताब से उठकर बोलने लगे। चोल साम्राज्य की भव्यता, वीरता, प्रशासन, दयालुता को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
यदि मैं इस फिल्म की बाहुबली से तुलना करुं, तो एक्शन दृश्यों और वीएफएक्स में ‘पोन्नियिन सेलवन’ कुछ पीछे रह जाती है लेकिन कहानी कहने के मामले में ‘पोन्नियिन सेलवन’ बाहुबली से भी प्रभावी दिखाई देती है। इसमें असाधारण एक्शन दृश्य नहीं है। अधिकांश एक्शन वास्तविक ढंग से फिल्माया गया है। यही इस फिल्म की खूबी है कि ये आज के कंप्यूटर जनित स्पेशल इफेक्ट्स की बैसाखियों के बगैर बॉक्स ऑफिस की रेस में दौड़ रही है।
मणिरत्नम ने स्पेशल इफेक्ट्स पर कम और अपनी कहानी-निर्देशन में अधिकभरोसा किया है। फिल्म के सभी कलाकारों ने अपने कैरेक्टर्स के चरित्र को मानो घोलकर पी लिया है। नंदिनी (ऐश्वर्या राय बच्चन), विक्रम (आदित्य कारिकालन), अरुणमोझी वर्मन (जयम रवि), कुंदावी ( तृषा कृष्णन), वल्लावरीयान( कार्थिक) को परदे पर देखना सुखद अनुभव देता है। नंदिनी का किरदार बहुत शक्तिशाली बनाया गया है।
ऐश्वर्या ने बड़ी ही इंटेंसिटी के साथ ये चरित्र निभाया है। जब वे परदे पर पहली बार आती हैं तो दर्शकों की सांसे थम जाती हैं। विक्रम का किरदार एक ऐसे राजकुमार का है, जिसका दिल टूटा हुआ है। युद्ध पर युद्ध जीतकर वह दिल के दर्द को कम करने का प्रयास करता है। वल्लावरीयान एक दिलफेंक योद्धा है और हंसोड़ किस्म का है। अरुणमोझी वह पात्र है, जिसके आसपास सारी कहानी घूम रही है।
अरुणमोझी को ही तो ‘पोन्नियिन सेलवन’ कहा जाता है। जयम रवि ने इस किरदार में जान डाल दी है। अगले भाग में उनका किरदार बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है। फिल्म एक ऐसे नोट पर समाप्त होती है, जहाँ से दर्शक की जिज्ञासा फिल्म में आगे भी बनी रहेगी। फिल्म की गति तेज़ है इस कारण किसी भी पार्ट में ये बोर नहीं करती है। फिल्म में हास्य के लिए भी निर्देशक ने बड़ी संभावनाएं खोज ली है।
उस समय के भारत और परंपराओं को फिल्म गरिमामयी ढंग से दिखाती है। इसमें एक पात्र है ‘समुद्र कुमारी।’ निचली जाति की ये लड़की नैया खेने का कार्य करती है। समुद्र कुमारी ने एक बार ‘पोन्नियिन सेलवन’ को समुद्र पार कराया था। पोन्नियिन उस लड़की को कभी नहीं भूलता। इसमें एक ब्राम्हण पात्र है जो आवश्यकता पड़ने पर क्षत्रियों के साथ शस्त्र उठा लेता है। कोई महिला पात्र घूंघट नहीं निकालती।
निर्देशक बताना चाहते हैं कि उस समय के भारत में स्त्रियां स्वतंत्र थी, गर्वीली थी और अभिमानी भी थी। फिल्म में एक कृष्णगीत है, जिसे श्रेया घोषाल ने गाया है। ये गीत और इसका फिल्मांकन ही आपके टिकट के पैसे वसूल करा देता है। ‘पोन्नियिन सेलवन’ को मैं एक चाँद मानूं तो इसके गीतों में उर्दू का प्रयोग एक दाग की भांति लगता है।
इस फिल्म की एकमात्र कमी बस यही है कि रहमान के अच्छे संगीत पर महबूब ने शायरीनुमा गीत लिख डाले हैं। चोल साम्राज्य की कथाओं से दक्षिण परिचित है किन्तु हिंदी पट्टी में लोग उनके बारे में कम ही जानते हैं। इसका प्रभाव फिल्म की ओपनिंग पर देखने को मिलेगा। दक्षिण भारतीय पट्टी से फिल्म को जबरदस्त ओपनिंग मिल रही है लेकिन हिन्दी में कम दिखाई देती है।
लगभग 18 करोड़ की एडवांस बुकिंग और फिल्म के बेहतर कंटेंट को देखते हुए पहले दिन ‘पोन्नियिन सेलवन’ लगभग 25 करोड़ की ओपनिंग कर सकती है। इस फिल्म में कोई आपत्तिजनक दृश्य नहीं है। इसे सपरिवार सहजता के साथ देखा जा सकता है।