अधिकांश देशवासी इस बात पर एकमत हैं कि प्रकाश जावड़ेकर को सूचना एवं प्रसारण मंत्री नहीं होना चाहिए था। 31 मई 2019 से जावड़ेकर इस पद पर हैं। तब से लेकर अब तक उनके कार्यकाल में मीडिया सुधार को लेकर कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ है। मनोरंजन उद्योग की मनमानी पर अंकुश लगाने में भी मंत्री महोदय अक्षम ही सिद्ध हुए हैं।
अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह ऑस्कर में दोयम दर्जे की गली बॉय भेजने के निर्णय को लेकर उनकी बहुत आलोचना हो चुकी है। इस समय देश में जो वातावरण बना हुआ है, उसे ठीक करने में जावड़ेकर अहम भूमिका निभा सकते हैं। सुशांत सिंह राजपूत की निर्मम हत्या के बाद मुंबई की धरती से शुरू हुए चैनल वॉर को शांत और नियंत्रित करने की जिम्मेदारी उनकी ही थी।
न्यूज़ चैनल ही क्यों, फिल्म और टीवी उद्योग पर नियंत्रण भी उनका ही उत्तरदायित्व है। प्रकाश जावड़ेकर अपने पद का कितना निर्वाह कर सके हैं, ये तो मनोरंजन और समाचार चैनलों में मचा घमासान ही बता रहा है। मंत्री जी कभी मनोरंजन चैनलों की समीक्षा नहीं करते। बिग बॉस का वर्तमान सीजन समस्त वर्जनाओं को पार कर गया है।
बिग बॉस के निर्माताओं को ये समझ में आया कि दर्शक इस शो का बहिष्कार कर रहे हैं। इसके बाद शो में दर्शकों को खींचने के लिए जो बदलाव किये गए, वे शर्मनाक हैं। नया ये जुड़ा है कि पिछले सीजन के विजेता सिद्धार्थ शुक्ला को शो में आने वाली लड़कियां सिड्यूस कर रही हैं और इसके आधार पर ही उन्हें इम्युनिटी प्रदान की जा रही है, जो शो में टिकने के लिए आवश्यक है।
इस नए बदलाव के बाद शो पर प्रतिबंध लगाने की मांग तेज़ हो गई है। क्या प्रकाश जावड़ेकर ये पुकार सुन पा रहे हैं। विगत दो वर्ष से न्यायालय सरकार से लगातार कह रहा है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बनने वाली फिल्मों में कंटेंट को लेकर कोई कानून बनाया जाए। क्या प्रकाश जावड़ेकर ने न्यायालय की सलाह पर अमल किया है?
यदि वे अमल करने लगेंगे तो एकता कपूर की नीली फिल्मों को नया प्लेटफॉर्म कैसे मिलेगा। मंत्री महोदय न फेक ख़बरों पर नियंत्रण कर पाए हैं और न समाचार चैनलों को हद में रहने चेतावनी ही दे सके हैं। पिछले दिनों करण जौहर प्रोडक्शन में बनी फिल्म गुंजन सक्सेना का प्रसारण वेब पर हुआ था। फिल्म में भारतीय वायु सेना का गलत चित्रण किया गया था।
इस फिल्म का देशभर में विरोध हुआ लेकिन मंत्री महोदय ने कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की। कार्रवाई तो दूर उन्होंने करण जौहर को लेकर कोई बयान भी नहीं दिया। इस पद पर रहने की उनकी योग्यताएं क्या है, ये मैं नहीं जानता। क्या वे फिल्मों की समझ रखते हैं?
सन 2019 में ज़ोया अख्तर की फिल्म गली बॉय को भारत की ओर से ऑस्कर में आधिकारिक प्रवेश दिया गया था। इसी साल उरी-द सर्जिकल स्ट्राइक, मंगल मिशन, एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, मणिकर्णिका जैसी उत्कृष्ट फ़िल्में भी प्रदर्शित हुई थी। वे इन फिल्मों को नज़रअंदाज़ कर एक ऐसी फिल्म को ऑस्कर में भेज देते हैं, जो किसी विदेशी फिल्म की नकल है।
तो आपने देखा मंत्री महोदय का फिल्म ज्ञान अत्यंत उच्च श्रेणी का है। पिछले कई साल ने एक चैनल अपनी टीआरपी का ढोल पीटता रहा है। वह शान से कहता है कोई नहीं दूर-दूर तक। विगत एक वर्ष से मंत्री महोदय को इस चैनल की टीआरपी मानसिकता दिखाई नहीं दी थी लेकिन जैसे ही ये चैनल टीआरपी की पायदान पर रिपब्लिक भारत से नीचे आता है, मंत्री महोदय का दुःख एक पत्रिका के विमोचन के दौरान फूट पड़ता है।
वे कहते हैं पत्रकारिता में निश्चित ही सुधार की आवश्यकता है। इस सुधार की आवश्यकता उन्हें अब महसूस हुई है जब एक वर्ष पहले आया एक चैनल टीआरपी में पहले नंबर पर स्थापित हो चुका है। क्या उन्हें नहीं लगता कि उनकी बयानबाज़ी अब कोई प्रभाव पैदा नहीं कर पाती। उनके पत्रकारिता सुधार के प्रवचन प्रासंगिक हो सकते थे, यदि वे इतनी ही गंभीरता पद पर आते ही दिखाते। अब तो उनका बयान सुनकर ऐसा लग रहा है कि वे लंबी नींद से जागे हैं और इस बीच भारत की नदियों में बहुत सा पानी बह गया है।