इन दो ख़बरों के अंतर्संबंध को सहज ही समझा जा सकता है। ओटीटी पर बनाए गए दिशा-निर्देशों पर सुप्रीम कोर्ट की बेबाक टिप्पणी और अमेजन की अधिकारी अपर्णा पुरोहित को राहत दिया जाना इन ख़बरों के अंतर्संबंध को बता रहा है। सूचना व प्रसारण मंत्रालय की पोटली से प्रकट हुए इन ताज़ा दिशा-निर्देशों को न्यायालय की टिप्पणी ने लू लगा दी है। इन दंत विहीन-नख विहीन दिशा-निर्देशों को न्यायालय ने चमचमाता आईना दिखाया है।
इस मुद्दे पर Sandeep Deo का Video
ये दोनों समाचार वेब सीरीज तांडव की कोख से निकले हैं। तांडव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कह दिया कि अमेजॉन की अधिकारी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। इसी सुनवाई में माननीय न्यायालय ने ओटीटी पर बनाए दिशा-निर्देशों को लेकर कहा ‘ओटीटी के लिए बनाए गए नए नियम फिलहाल बिना दांत और नाखून वाले शेर की तरह हैं, क्योंकि इसमें किसी प्रकार के दंड या जुर्माने का कोई प्रावधान नहीं है।’
न्यायालय ने अप्रत्यक्ष रुप से सरकार को आईना दिखा दिया है। यदि आज सुप्रीम कोर्ट के पास केंद्र का बनाया कानून होता तो अमेजॉन की उक्त अधिकारी की न केवल गिरफ्तारी संभव थी, बल्कि ओटीटी समूह को एक कड़ी चेतावनी मिल जाती। इस मंच पर पहले ही सावधान कर दिया गया था कि प्रकाश जावड़ेकर के दिशा-निर्देश इतने निर्बल हैं कि ओटीटी पर प्रसारित किये जा रहे सांस्कृतिक आतंकवाद को इनसे कैसे भी प्रभावित नहीं किया जा सकता।
देश के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जावड़ेकर जी इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं। वेब सीरीज तांडव के विरुद्ध देशभर में कई एफआईआर दर्ज की गई है। देवी-देवताओं का अपमान करने और प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद की गरिमा से खिलवाड़ करने को लेकर देश के नागरिकों में भयंकर आक्रोश है, जिसे जावड़ेकर जी का महंगा चश्मा देख नहीं पा रहा है।
मुझे हैरानी है कि अब तक किसी ने मंत्री महोदय से सिर्फ एक प्रश्न नहीं पूछा कि ओटीटी पर सख्त कानून बनाते-बनाते आप ये लचर दिशा-निर्देश कहाँ से ले आए हैं। देश का मैनस्ट्रीम मीडिया और मनोरंजन उद्योग के हित एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, इसलिए केंद्र सरकार से ये प्रश्न कभी न पूछा जाने वाला है। उनके पास सहूलियत है कि जनता के ज्वलंत प्रश्नों का उत्तर देने की कोई विवशता नहीं है।
ऐसे में जनता के मन में इस मंत्रालय के प्रति जो अविश्वास पनप रहा है, उसका क्या? कल सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है। माननीय जावड़ेकर जी को अपने कैबिन के डिस्प्ले बोर्ड पर इस टिप्पणी को चिपका कर रोज पढ़ना चाहिए। जब मनोरंजन उद्योग के महारथियों ने बिना दांत और बिना नाख़ून वाले इन दिशा-निर्देशों की प्रशंसा की थी, तभी समझ आ गया था कि जावड़ेकर विश्व के कुछ देशों का कचरा बटोर लाए हैं।
इस बात को न्यायालय की टिप्पणी ने सिद्ध कर दिया है। माननीय राष्ट्रपति से शक्तियां पाने के बाद कानून न बनाना दर्शाता है कि सूचना व प्रसारण मंत्रालय न केवल देश के साथ धोखा कर रहा है बल्कि छह वर्ष से शानदार कार्य कर रही केंद्र सरकार की छवि पर काला दाग लगा रहा है।