संदीप देव। चूंकि तमिल वोट दिलवा सकता है, संस्कृत नहीं, इसलिए वोट के लिए हमारे प्रधानमंत्री बार-बार तमिल के नाम पर झूठ बोलते रहते हैं!
प्रधानमंत्री जी मैं तमिल सीख रहा हूं, आप भी सीखिए पता चल जाएगा कि कौन कितनी प्राचीन भाषा है? आइए कुछ उदाहरण से समझते हैं:-
१) लिपि से ही पता चल जाता है कि संस्कृत की प्राचीनता को झुठलाने के लिए ‘ष’ जैसे संस्कृत के वर्ण को तमिल में नहीं रखा गया है।
२) तमिल की उत्पत्ति शिव पुत्र कार्तिकेय से मानी जाती है और संस्कृत की उत्पत्ति शिव के डमरू से। अब मोदी ही पिता से पहले पुत्र को भाषा का जानकार बता सकते हैं!
३) देवनागरी लिपि में 52 वर्णमाला है, जबकि तमिल में 18. कई लिपि संस्कृत से अलग दिखने के लिए प्रयुक्त किए गये हैं, इसलिए लिपियों का झुंड बनाया गया है, इसलिए वर्ण कम हैं।
4) वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं, जो संस्कृत में लिखे गये हैं न कि तमिल में।
5) तमिल में कई वर्ण के लिए एक वर्ण प्रयुक्त होता है। किसी वर्ग का प्रथम और अंतिम अक्षर ही होता है। जैसे कवर्ग में க(क) होगा और ड. होगा, ख, ग, घ आदि अक्षर वहां नहीं होते, जबकि संस्कृत में हर अक्षर का अलग वर्ण है।
6) तमिल में कई अक्षरों का उच्चारण एक ही अक्षर से किया जाता है, जबकि संस्कृत में हर अक्षर का अपना उच्चारण है।
7) ह्रस्व व दीर्घ के लिए संस्कृत से उलट यहां प्रयोग होता है, वैसे ही हलंत् के लिए संस्कृत में जहां नीचे पाई लगता है, तमिल में ऊपर बिंदी लगाते हैं।
8) तमिल में 6 स्वर है, 18 व्यंजन और 9 मात्राएं हैं। तमिल भाषा का निर्माण महादेव के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने किया। कार्तिकेय को छह देवियों ने पाला था, इसलिए तमिल के अक्षर छह-छह के ग्रुप में है। ऋषि अगस्त्य ने बाद में तमिल का व्याकरण निर्मित किया।
यह सब मैं तमिल के अपमान के लिए नहीं, बल्कि इसलिए बताया है कि यह तमिल को संस्कृत से अलग एक भाषा के रूप में विकसित करने प्रमाण है, इसलिए संस्कृत के उलट यहां कुछ अक्षर बोध अपनाए गये हैं, जिससे स्पष्ट है कि संस्कृत तमिल की अपेक्षा कहीं अधिक प्राचीन भाषा है। मैं तमिल का अपमान नहीं कर रहा, यदि अपमान करना होता तो तमिल क्यों सीखता? मैं केवल इतिहास व अक्षर बोध व्यक्त कर रहा हूं।
वैसे 2024 को जीतने के लिए तमिलनाडु से प्रधानमंत्री को कुछ सीटें चाहिए। नये संसद भवन में तमिल से आए अधिनम को स्थापित करने के एवज में गृहमंत्री तमिलनाडु से 25 सीटें मुंह खोलकर मांग चुके हैं।
फिर संस्कृत को तो जबरदस्ती ब्राह्मणों की भाषा अंग्रेजों ने घोषित कर दी थी, और आज ब्राह्मणों से ‘हिसाब चुकता’ का मामला चल रहा है। ब्राह्मणों के वोट ही कितने हैं? अधिनम स्थापित करने में एंटी ब्राह्मण, एंटी हिंदू पुजारियों को लाकर और फिर वोट मांग कर सरकार इसे प्रमाणित कर चुकी है।
अतः चतुर प्रधानमंत्री अपने वोट के लिए इतिहास को कूड़े में डाल रहे हैं तो क्या गलत कर रहे हैं? अंग्रेजों, मुगलों, कम्युनिस्टों, कांग्रेसियों और द्रविड़ पार्टियों ने भी तो यही किया है न आज तक?