अजय शर्मा,वाराणसी। बनारस स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर देश के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है. काशी को बाबा विश्वनाथ की नगरी भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है की काशी विश्वनाथ के दर्शन मात्र से जन्मो-जन्म के कष्ट क्षण भर में दूर हो जाते है जो सत्य भी है. लेकिन विगत ३ वर्षो से काशी विश्वनाथ मन्दिर व उसके परिक्षेत्र पर राजनितिक ग्रहण लग गया है. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा ने सार्वजनिक आस्था पर कठोर से कठोर प्रहार करना शुरू कर दिया है.
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर सौन्द्रियकरण के नाम पर उसके आस-पास के परिक्षेत्र में स्थित अनेको देव-विग्रहो, मठ-मन्दिरों को ध्वस्त करने से भी जब व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति नही हुयी तो अंततः राजनितिक विनाश का केशरिया रथ मूल काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह तक विध्वंस करने पहुँच गया और हजारो वर्षो की परम्परा व धार्मिक मान्यता, शास्त्र आदि को ताक पर रखते हुए विगत दिनों बाबा काशी विश्वनाथ के गर्भगृह के चारो कोनो यानि कि दक्षिण-पूर्व के कोने पर स्थित अविमुकेश्वर महादेव का मन्दिर जिसमें अन्य कई देवी-देवताओ के विग्रह के साथ-साथ काशी के राजा दिवोदास का भी विग्रह था
जिनको स्वयं भगवान गणेश ने अपने हाथ से कशी की सत्ता सौपीं थी, उत्तर-पूर्व के कोने पर स्थित माता अन्नपूर्णा के मंदिर, दक्षिण-पश्चिम के कोने पर स्थित लक्ष्मी नारायण और गणेश जी का मंदिर जिनकी पूजा के पश्चात् बाबा की पूजा आरम्भ होती थी और जिनकी पूजा के पश्चात् मंदिर के कपाट बंद होते थे, पश्चिम-उत्तर के कोने पर स्थित भगवान गणेश व माता पार्वती का मन्दिर व पश्चिमी द्वार पर आदमकद हनुमान जी प्रतिमा वाले मन्दिर को ध्वस्त कर उनमे स्थित अन्य देवी-देवताओ और देव-विग्रहो को उनके मूल स्थान से विस्थापित कर दिया गया.
इतना ही नहीं पश्चिमी द्वार पर स्थित हनुमान जी की प्रतिमा से होकर बाबा की कचहरी जिसमें १०८ शिवलिंग और धर्मराज की मूर्ति थी उसका भी कुछ अता-पता नहीं है और वे सब अपने मूल स्थान से गायब है. धर्म नगरी काशी में इतनी बड़ी घटना किसी महाविनाश के संकेत से कम नहीं है. वैसे भी जब से कारीडोर परियोजना के नाम पर देव-विग्रहो और मन्दिरों को हटाने का काम आरम्भ हुआ है सम्पूर्ण विश्व महामारी के चपेट में आ गया है और ऐसा हो भी क्यों न. लेकिन इस बार विश्व के नाथ यानि की बाबा विश्वनाथ के मण्डप को छेड़ा गया है.
अब विश्वनाथ ने अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू किया है लेकिन उनको शांत करने की जगह उनके मण्डप में स्थित चारो कोने के बन्धनों को खोल दिया गया है और वो भी धार्मिक रीती रिवाजो और शास्त्रों के विरूद्ध. अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं है जब बाबा विश्वनाथ के मूल गर्भगृह को भी ध्वस्त करके बाबा को सदा सर्वदा के लिए मुक्त करने का प्रयास किया जायेगा.
कारीडोर के शिलान्यास पर अनेको मंदिरों और देव-विग्रहो को तोड़ने के पश्चात् यह ऐलान किया गया था कि “बाबा को साँस लेने में दिक्कत हो रही थी” लेकिन आज पुरे विश्व को सांस लेने में दिक्कत हो रही है इतना संकेत काफी नहीं था उसके बाद भी गर्भगृह के मण्डप के चारो कोनो पर स्थित मंदिरो को ध्वस्त करने पर मुझे गंभीर आपत्ति है.
मात्र एक व्यक्ति के राजनितिक महत्वाकांक्षा ने सम्पूर्ण सनातन धर्म के अस्तित्व को चुनौती देते हुए काशी विश्वनाथ के मूल स्वरुप का सत्यानाश कर दिया. अब भी समय है की देशवाशी सनातन धर्म की रक्षा के लिए एकजुट होकर बाबा विश्वनाथ के मूल स्वरुप को बचाने का प्रयास करें ताकि कम-से-कम गर्भगृह का मूल स्वरुप बच जाए.
आज जिस तरह से विकास और सार्वजनिक सुविधा के नाम पर काशी से देवी-देवताओ के मंदिरों और देव-विग्रहो को ध्वस्त का उनके मूल स्थान से विस्थापित किया गया है यह इस बात का संकेत है की भविष्य और भयावह होगा क्योंकि आज इस सरकार ने सार्वजनिक सुविधा व विकास के नाम पर देवी-देवताओ के मंदिरों और देव-विग्रहो को उनके मूल स्थान से हटाने की जो परम्परा शुरू की है वो दिन दूर नहीं हैं
जब कोई दूसरी सरकार भी सार्वजनिक सुविधा और विकास के नाम पर किसी भी मंदिर को ही जड़ से उखाड़ कर फेक दे और पूछने पर ये कहे की तथाकथित हिंदूवादी सरकार में तो ये सब हो चूका है. डर इस बात का है. धर्म संगत विकास का हम समर्थन करते है लेकिन अधार्मिक विकास के हम सदा विरोधी थे, है व रहेंगे. अतः सम्पूर्ण सनातनधर्मियो से अनुरोध है की वे संवैधानिक तरीके से इस विषय पर अपनी आवाज उठाये.
ऐसा क्यों होता है की जब जब किसी नेता पर हिंदू विश्वाश करते है, वही हिंदुओं को नष्ट करने पर उतारू हो जाता है?
16 जून, 2013 को विकास के नाम पर श्रीनगर (गढ़वाल) में भी धारी देवी की मूर्ति को हटाया गया था बांध बनाने के लिए पर क्या हुआ? कुछ घंटों बाद, केदारनाथ में बदल फटे और केदारनाथ में प्रलय आ गया।
केदारनाथ धाम में सैकड़ों लोग गायब हो गए, कोने ही मलबा में दब कर मर गए।