विपुल रेगे। बहत्तर वर्ष के रजनीकांत ने इक्यावन वर्षीय योगी आदित्यनाथ के चरण स्पर्श कर लिए और इस बात पर सोशल मीडिया उबल पड़ा। भारतीय समाज में टॉलरेंस यानी सहिष्णुता का स्तर तेज़ी से कम हो रहा है। सोशल मीडिया की आदत बन गई है कि वह किसी भी बात को सहज होकर देखना ही नहीं चाहता। एक सामान्य से चरण स्पर्श की खबर बन जाना और वायरल हो जाना इंगित कर रहा है कि भारत में सोशल मीडिया अपने निम्नतम स्तर पर पहुँचने पर उतारु है।
सोशल मीडिया की सबसे अच्छी बात है कि इसके द्वारा जानकारियां बड़ी तेज़ी के साथ हम तक पहुँचती हैं। और सोशल मीडिया की सबसे खराब बात ये है कि यहाँ हर व्यक्ति अपना उल्टा-सीधा मत व्यक्त कर रहा है। सूचनाओं के इस विस्फोट में सबसे अधिक बारुद तो विवादित मसलों का है, जो सोशल मीडिया की देहरी तक पहुँच जाते हैं। क्या कोई इस बात से इंकार करेगा कि विगत आठ वर्ष ये सोशल मीडिया घोर व्यक्तिवादी होकर ‘एक ही व्यक्ति’ की चरण वंदना में लगा रहा।
नौवां वर्ष आते-आते बेड़िया टूटी और सोशल मीडिया की सतह पर ‘आलोचनाएं’ तैरने लगी। रजनीकांत के मामले को सोशल मीडिया की ‘नियंत्रण हीनता’ से जोड़ा जा सकता है। लाखों-करोड़ों यूज़र्स विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर अपनी स्वतंत्र राय प्रकट करते हैं। इन यूजर्स की ‘स्वतंत्र राय’ मैन स्ट्रीम मीडिया की खुराक बन गया है। रजनीकांत ने जब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के पैर छुए तो मीडिया और सोशल मीडिया के लिए ये ब्रेकिंग न्यूज़ के समान थी। जैसे ही चरणस्पर्श के फोटो सोशल मीडिया पर आए, यूज़र्स की प्रतिक्रियाओं का बम फट पड़ा। कुछ यूज़र्स ने रजनीकांत के इस कृत्य को गलत बताकर आलोचना कर दी। इन कुछ यूज़र्स के कमेंट्स पर सोशल मीडिया ने बड़ी खबरें चलानी शुरु कर दी।
एक सहज से अभिवादन को किस ढंग से खबर बनाकर बेच दिया गया, इसका ये श्रेष्ठ उदाहरण है। पिछले कुछ माह में ‘चरण स्पर्श’ के बहुत से वीडियो और फोटो सोशल मीडिया में प्रसारित हुए थे। हालांकि व्यक्ति पूजक सोशल मीडिया को वे वाले ‘चरण स्पर्श’ मन को सुहाने लगे थे लेकिन योगी आदित्यनाथ के चरण स्पर्श कर लिए गए तो बड़ा अपराध हो गया। ट्वीटर और फेसबुक पर सैकड़ों असंयमित कमेंट्स आते रहते हैं और इनमे से बहुत से मन का गुबार निकालने के लिए किये जाते हैं। ऐसे कमेंट्स को उठाकर खबर बना लेना आज का नया चलन बन चुका है।
ऐसा करके मैन स्ट्रीम मीडिया किसी एक व्यक्ति के ‘मानसिक वमन’ को संपूर्ण समाज पर थोप देता है। रजनीकांत वाले मामले में यही हुआ है। सोशल मीडिया के आ जाने के बाद भारतीय ‘प्रतिक्रियावादी’ बनते जा रहे हैं। किसी भी मामले पर मोबाइल उठाकर ‘त्वरित टिप्पणी’ करना वे अपना अधिकार समझते हैं। हालांकि पत्रकारिता की कठिन साधना के बिना वे ऐसा करने में सक्षम हो जा रहे हैं। घर-घर संवाददाता तैयार हो रहे हैं।
किसी भी मामले पर सबसे तेज़ प्रतिक्रिया देना सोशल मीडिया पर जीत समझा जाता है। ऐसे उतावले नागरिकों को पत्रकारिता की नियमित शिक्षा ग्रहण करने की आवश्यकता है। जब वे इसे पढ़ेंगे तो समझेंगे कि पत्रकारिता सनसनी फैलाने का नाम नहीं है, ये एक साधना है, जो जीवन के साथ अनवरत चलती रहती है।