श्वेता पुरोहित। सनत्कुमार के प्रति देवर्षि नारद के वचन –
रामायणमहाकाव्यं सर्ववेदार्थसम्मतम् ।
रामचन्द्रगुणोपेतं सर्वकल्याणसिद्धिदम् ।।
आदिकवि-कृत रामायण महाकाव्य सर्ववेदार्थ-सम्मत और सब पापों का नाश करने वाला तथा दुष्ट ग्रहों का निवारण करनेवाला है। यह दुःस्वप्नों का नाश करनेवाला, मुक्ति-भुक्ति प्रदान करनेवाला रामायण धन्य है।
आदिकाव्य रामायण स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाला है। जिसके पूर्वजन्म के पाप निश्चयपूर्वक नष्ट हो जाते हैं, उस मनुष्य को अवश्य ही रामायण में अटल महाप्रीति उत्पन्न होती है। मानव-शरीर में पाप तभी तक रह सकते हैं, जबतक मनुष्य श्रीमद्रामायण की कथा सम्यक् प्रकार से नहीं सुनता ।
रामायण सब दुःखों का नाश करनेवाला, सब पुण्योंका फल प्रदान करनेवाला और सब यज्ञों का फल देनेवाला है। जो द्विज रामनाम-रत होकर रामायण में लवलीन रहते हैं, इस घोर कलियुग में वे ही कृतकृत्य हैं। जो मनुष्य नित्य रामायण में लवलीन रहते हैं, गंगास्नान करते हैं और धर्म-मार्ग का उपदेश करते हैं, वे मुक्त ही हैं, इसमें कुछ भी संशय नहीं।
जो जितेन्द्रिय और शान्तचित्त हो रामायणका नित्य पाठ करता है, वह उस परम आनन्दधामको प्राप्त होता है जहाँ जानेपर उसे कभी शोक नहीं सताता। क्षमा के समान कोई सार पदार्थ नहीं, कीर्तिके समान कोई धन नहीं, ज्ञानके समान कोई लाभ नहीं और श्रीरामायण से बढ़कर कुछ भी नहीं है। जगत्का हित करनेवाले जो सज्जन रामायण में लगे रहते हैं, वे ही सर्वशास्त्रार्थमें पण्डित हैं और धन्य हैं।
जिस घरमें नित्य रामायण की कथा होती है, वह घर तीर्थरूप है और दुष्टों के पाप का नाश करनेवाला है।
रामनामैव नामैव नामैव मम जीवनम् ।
संसारविषयान्धानां नराणां पापकर्मणाम् ॥
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥
रामनाम ही मेरा जीवन है, नाम ही मेरा जीवन है। इस कलियुग में संसार के विषयों में अंधे हुए पापकर्मी मनुष्यों के लिये दूसरी गति नहीं है, नहीं है (स्कन्दपुराण) ।
भगवान् शिवजी कहते हैं-
मुनि दुर्लभ हरि भगति नर पावहिं बिनहिं प्रयास।
जे यह कथा निरंतर सुनहिं मानि बिस्वास ॥
राम चरन रति जो चह अथवा पद निर्बान।
भाव सहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान ॥
जय सियाराम