कैसे बचायें हम बेटी को कैसे उसे पढ़ायें ?
चारों तरफ दरिंदे घूमे, अपना मुंह फैलाये ।
गुंडे, लुच्चे और लफंगे, रहते अपनी ताक में;
कानून का शासन ध्वस्त हो गया, भ्रष्टाचार की आग में।
आये दिन बिटिया फंसती है ,बलात्कारियों के जाल में;
धर्म भी जाता , जान भी जाती ,गद्दारों की चाल में ।
गैंगरेप के बाद वो मरती ,पुलिस तो लीपापोती करती;
फिर भी नाटक है स्लोगन का ,अक्ल तुम्हारी घास है चरती
तड़प तड़प कर दिशा मर गई और न जाने कितनी हैं ?
कुछ न हुआ उसकी हत्या पर ,देश की यही कहानी है ।
पढ़ना लिखना व्यर्थ हो गया ,जन्म अकारण जाता है ;
बंद करो ये अपना स्लोगन, क्या कुछ और न आता है?
बंद करो अब कोरी बातें ,जो कि हवा हवाई हैं ;
ठोस काम कुछ करना सीखो, ये ही तो सच्चाई है।
सबसे पहले पुलिस सुधारो ,बंद करो सब भ्रष्टाचार ;
जो भी रिश्वतखोरी करता, छीनो उसका जीवन अधिकार।
पुलिसकोएकदमचुस्तबनाओ, कानूनका शासन वापस लाओ
हरघटनाकीदर्ज शिकायत कानून को फौरन अमल में लाओ
गुंडों के गढ में घुस जाओ ,जहां जरूरत छापा डालो ;
जो भी करता पुलिस मुजहमत सख्ती से तुम फौरन कुचलो
हथियारों को क्यों लटकाये? जहां जरूरी तुरत चलाओ ।
कानूनकाशासनकायम करनाअब मत अपनी पीठ दिखाओ
निर्भय कर दो हर बेटी को और गुंडों को इतना भयभीत ;
अच्छे दिन बेटी के आयें और बुरे दिन जायें बीत ।
ये सब करना बहुत जरूरी ,केवल स्लोगन बंद करो ;
कानून व्यवस्था आदर्श बनाओ ,अब नौटंकी बंद करो।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचयिता :बृजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”