विपुल रेगे। टी सीरीज की ‘आदिपुरुष’ हैवी ओवरबजट होकर रिलीज के लिए तैयार है। 550 करोड़ की ये फिल्म तथाकथित रुप से 432 करोड़ की रिकवरी कर चुकी है। बजट का 85 प्रतिशत रिलीज से पहले ही रिकवर कर लेने को राम कृपा न कहे तो और क्या कहे ? ट्रेलर में दर्शकों द्वारा नकार दिए जाने के बावजूद फिल्म का इतनी लागत पर बिकना एक चमत्कार है। आगामी 15 जून को ‘आदिपुरुष’ रिलीज होने जा रही है। दर्शकों में इसे लेकर कोई उत्साह नहीं दिखाई दे रहा लेकिन फिल्म निर्माता सफलता को लेकर पूरी तरह आश्वस्त दिखाई देते हैं।
‘बॉलीवुड हंगामा’ नामक एक वेबपोर्टल के अनुसार ‘आदिपुरुष’ अपने बजट का 85 प्रतिशत वसूल चुकी है। 550 करोड़ में से 432 करोड़ की वसूली हो चुकी है। रिपोर्ट कहती है कि सेटेलाइट, संगीत और डिजिटल अधिकार बेचकर फिल्म निर्माता ने 247 करोड़ कमा लिए हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत में मिनिमम गारंटी के साथ थिएटर रेवेन्यू के साथ 185 करोड़ बटोर लिए हैं। इस प्रकार फिल्म ने रिलीज हुए बिना ही आधी से अधिक जीत हासिल कर ली है। फिल्म निर्माताओं ने प्रभास और ओम राउत के नाम पर ये फिल्म बेची है।
प्रभास एक पैन इंडिया अभिनेता हैं। हिन्दी पट्टी में उनकी अच्छी फॉलोइंग है। फिर भी प्रश्न तो उठता है कि जिस फिल्म की प्रारंभिक रिपोर्ट पूर्णतः निगेटिव जा रही हो, उसे इतने अच्छे दाम कैसे मिल सकते हैं। शुरु से देखा जाए तो फिल्म निर्माताओं ने इस मामले में अपनी मनमानी ही दिखाई है। फिल्म निर्माता इस फिल्म को पब्लिक में उस समय लेकर आए, जब फिल्म पूर्णतः शूट होकर पोस्ट एडिट के लिए भेजी जा चुकी थी। यानी तीर चल चुका था और वापस नहीं लिया जा सकता था।
हनुमान की मूंछे नहीं उगाई जा सकती थी और राम की मूंछे नहीं हटाई जा सकती थी। और न ही रावण को बदला जा सकता था। एक बार फिल्म शूट हो जाए तो उसमे परिवर्तन करना बहुत समय और धनराशि की मांग करता है। फिल्म निर्माताओं ने कदम वापस लिए लेकिन बदलाव कुछ नहीं किये। जिन बातों से दर्शकों को आपत्ति थी, उन पर काम ही नहीं किया गया और ऊपर से कहा गया कि दर्शकों की मांग पर वीएफएक्स में सौ करोड़ और लगा दिए। रामायण को लेकर हिन्दुओं के मन में एक निश्चित छवि बनी हुई है, उसमे सूत बराबर परिवर्तन बड़ा विपरीत परिणाम लेकर आ सकता है।
राम-सीता-हनुमान-रावण की इस सिनेमाई इमेज को दर्शक ने पहले ही नकार दिया है। इतने नकारात्मक माहौल में भूषण कुमार ने फिल्म अच्छे दाम पर बेच दी, ये उनका व्यवसायिक कौशल है। नए वाले ट्रेलर में रावण को नहीं दिखाया गया क्योंकि रावण के सीन रीशूट करना संभव नहीं था। 15 जून को जब फिल्म रिलीज होगी तो दर्शकों को उसी त्रिपुंड हीन रावण के दर्शन होंगे, जिसे उन्होंने नकार दिया था। रामायण की सादगी, राम की विनम्रता, हनुमान का ओज और रावण के मूल चरित्र के नए ट्रेलर में कहीं दर्शन नहीं हुए। पहले वाले में भी नहीं हुए थे। दर्शकों को रुला देने वाला ‘फ़ील’ इसमें से गायब है। नए और पुराने ट्रेलर में सूत बराबर का अंतर् नहीं दिखाई देता।
वे सौ करोड़ कहाँ खर्च किये गए, पता नहीं। ऐसा तो नहीं कि फिल्म रिलीज में विलम्ब होने पर बजट पर चढ़ने वाला ब्याज ही सौ करोड़ हो गया हो। आदिपुरुष को बेचने की इस ललक और मार्केटिंग में से ‘दर्शक’ गायब है, दर्शक की पसंद और उसकी सोच गायब है। जब फिल्म का संगीत लोगों की जुबान पर नहीं चढ़ सका तो रविंद्र जैन साहब की एक पुरानी धुन कॉपी कर गाने में डाल दी। ये गीत रविंद्र जैन ने सन 1975 में फिल्म ‘गीत गाता चल’ के लिए रिकार्ड किया था। आदिपुरुष में यही धुन कॉपी की गई है और संगीत निर्देशक के नाम पर Sachet-Parampara का नाम डाल दिया गया है। निर्देशक ओम राउत की टीम को राम का ‘फ़ील’ लाने के लिए 1975 के एक गीत की आवश्यकता पड़ गई। इससे ही समझा जा सकता है कि टीम ओम राउत रचनात्मक रुप से दरिद्र है और इन्होने रामायण के पात्रों की इमेज बदलने का ‘रामद्रोह’ किया है।