रामेश्वर मिश्र पंकज। सच यह है कि लोकतंत्र में किसी भी सरकार को किसी भी रूप में यह अधिकार नहीं है कि वह अपने nation-state के मुख्य समाज के बच्चों को झूठ पढ़ाएं, उनमें अज्ञान फैलाए, उनको किसी मतवाद की ओर नियोजित करें और जो सर्वविदित सत्य हैं उनको छुपाए तथा जो मुख्य समाज है उनके पूर्वजों के विशाल ज्ञान को कूड़ेदान की चीज की तरह बरतकर उनका कोई सम्मान नहीं करें ,बच्चों को उन ज्ञानियों के विषय में नहीं पढाए,उस ज्ञान को छुपाए और बच्चों में हीनता तथा क्लैव्य पैदा करें ।किसी सरकार को यह अधिकार नहीं है।
परंतु हिंदुओं ने इसकी मांग नहीं की।
अब तक नहीं की तो किसी कारण से नहीं की।
उसकी मीमांसा हो सकती है ।
परंतु अब तो करनी चाहिए।
इसके लिए कोई राजनीतिक दल हो तो और अच्छा।
नहीं हो तो भी राजनीतिक दल आवश्यक नहीं है,
अपने अपने स्तर पर सनातन धर्म महासभा या हिंदू समाज सभा या कुछ भी नाम से जगह-जगह मांग उठा सकते हैं, वातावरण बना सकते हैं कि हमारे बच्चों को इतना अधिक झूठ पढ़ाया जा रहा है और उनके साथ इतना अन्याय किया जा रहा है और हमें अलग से अपने बच्चों को सत्य पढ़ाने की कोई अनुमति नहीं है ,हमारे पास इतने संसाधन नहीं हैं कि हम दोहरी शिक्षा दें ।एक तो सरकारी झूठ की शिक्षा दें और साथ साथ सत्य की शिक्षा अलग से दें। जबकि कतिपय अन्य बड़ी संख्या वाले समुदायों को यह सुविधा सरकारी खजाने के अनुदान से दी गई है ।
इस भयंकर अन्याय की ओर ध्यान दिलाने के लिए हजारों हजार सभाएँ भारत में होनी चाहिए। अब तक नहीं हुईं तो कोई बात नहीं ।अब होनी चाहिए। आवश्यक नहीं है कि आप एक राष्ट्रीय संगठन की प्रतीक्षा करें।अपने अपने क्षेत्र में मोहल्ले में ,नगर में इलाके में ऐसी सभाएं बनाई जा सकती हैं।उनसे वातावरण बनता है।
1890 से 1910ईस्वी के बीच देशभर में गौरक्षिणी सभाएं बनीं तो स्वयं विक्टोरिया डरने लगी थी कि यह 1857 से भी ज्यादा बड़ाखतरा है और किसी भी तरह से इसे रोको।तब कमीने फिरंगियों ने ठगी और डकैती विभाग बनाकर गौ रक्षा के कार्य में लगे सारे सन्यासियों को ठगी एवं डकैती विभाग की फाइल में ठग और डकैत की तरह अंकित किया और उनके प्रतिबन्धक उपाय किए।
इसके तथ्य मैंने अपनी पुस्तक” सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतीक गोमाता ” में दिए हैं। गुप्त दस्तावेज प्रकट होने के नियम के अंतर्गत जब वे 1960 के बाद प्रकट हो गए उसके बाद।