यही नहीं, औरंगजेब ने यमुना किनारे हिंदुओं के अंतिम संस्कार, मुंडन संस्कार आदि पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। आज जब मुस्लिम समुदाय को इस औरंगजेब के पक्ष में खड़ा देखता हूं तो लगता है कि हम हिंदू कितने ठगे गये हैं! गंगा-जमुना तहजीब के नाम पर भाईचारा का अफीम ये चटाते रहे और इतिहास बोध से अनजान हिंदू इसे चाटते रहे!
ज्ञानवापी से निकले महादेव के प्रति हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए कोई मुस्लिम मुझे नहीं दिखा अभी तक। या तो वो विरोध कर रहे हैं, महादेव पर अभद्र टिप्पणियां कर रहे हैं या चुप्प रह कर उस विरोध व अपमानजनक टिप्पणियों का समर्थन कर रहे रहे हैं।
मेरी पंचायत की पहली मस्जिद मेरी जमीन पर बनी है। मेरे अपने परदादा ने एक मुस्लिम मास्टर साहब को मस्जिद बनाने के लिए जमीन दान में दी थी। मैं उस परिवार से आता हूं। आज देखता हूं तो पाता हूं कि ‘सेक्यूलरिज्म की उसी जमीन’ पर ये मेरी कब्र खोदकर बैठे हैं!
आखिर सारे समझौते हम ही क्यों करते रहें? हम उन्हें मस्जिद बनाने के लिए जमीन दे सकते हैं, लेकिन यह जानते हुए भी कि हिंदुओं के लिए शिव, राम, कृष्ण की क्या महत्ता है, वो अयोध्या, मथुरा, काशी पर मुस्लिम आक्रांताओं के कुकृत्य को सही ठहरने की निर्लज्जता बार-बार करते रहे हैं। यदि वो जांच करें तो पाएंगे कि कभी उनके पुरखे भी इन्हीं आक्रांताओं के भय से अपना मूल हिंदू धर्म छोड़ने को बाध्य हुए थे, फिर भी वो उन्हीं आक्रमणकारियों के पक्ष में खड़े नजर आते हैं!
एकतरफा सेक्यूलरिज्म अब नहीं चल सकता। हम चार कदम चलेंगे और तुम एक कदम भी नहीं उठाओगे, तो फिर रास्ता तय नहीं हो सकता। जिस अरबी मजहब के लिए तुम अपने ‘मूल’ को भुला बैठे हो, वो अरब तुम्हें तृतीय श्रेणी का नागरिक भी नहीं मानता। और जो हिंदू तुम्हारे हर सुख-दुख में भाईयों की तरह खड़े रहे, तुम लगातार उनका अनादर ही करते रहे।
तुम खुश रहो अपनी बंद दुनिया में,
लेकिन तुम्हें अधिकार नहीं मेरी भावनाओं को कुचलने का,
हमने बहुत निभाई तुम्हारे साथ भाईचारा,
तुमने एकतरफा समझ कर इसको भूल कर दी है,
बाप-दादाओं की गलती हम नहीं दोहराएंगे,
तुम जैसा करोगे बर्ताव हमारे साथ,
हम सूद समेत वह तुम्हें लौटाएंगे।
अब तय करना तुम्हें है, हमें नहीं,
जो देखना चाहोगे, हम तुम्हें दिखाएंगे।