
कानून बनाने की वर्तमान प्रक्रिया अलोकतांत्रिक ही नहीं बल्कि असंवैधानिक भी है
माननीय प्रधानमंत्री जी,
कानून बनाने की वर्तमान प्रक्रिया अलोकतांत्रिक ही नहीं बल्कि असंवैधानिक भी है। सचिव ड्राफ्ट बना देता है, मंत्रिमंडल उसे पास कर देता है और जब सदन में बहस होती है तब जाकर आम जनता को उस कानून के बारे में थोड़ा बहुत पता चलता है।
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कई बार तो पहले से लागू कानून में संशोधन करने की बजाय एक नया कानून ही बना दिया जाता है। उदाहरण के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 493 में यदि एक वाक्य जोड़ दिया जाए तो लव जिहाद पूरे देश में गंभीर अपराध बन जाएगा और धारा 494 में से यदि एक वाक्य निकाल दिया जाए तो बहुविवाह सभी नागरिकों के लिए गंभीर अपराध बन जायेगा। इसी प्रकार धारा 498A में यदि एक वाक्य जोड़ दिया जाता तो तीन तलाक के लिए अलग से कानून बनाना ही नहीं पड़ता।
कृषि सुधार से संबंधित तीनों कानून किसान हितैसी और बिचौलिया विरोधी हैं लेकिन कानून बनाने के पहले इनका ड्राफ्ट जनता के सामने नहीं रखा गया इसीलिए किसान विरोधी और बिचौलियों के समर्थक इन ऐतिहासिक कानूनों के बारे में भ्रम फैलाने में सफल हो गए। वर्तमान समय में मंत्रिमंडल में चर्चा करने से पहले कानून का ड्राफ्ट जनता के सामने नहीं रखा जाता है इसलिए कानून के बारे में आम जनता को गुमराह करना बहुत आसान है।
माननीय प्रधानमंत्री जी,
कानून बनाने की वर्तमान प्रक्रिया में तत्काल सुधार की आवश्यकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों को छोड़कर जनहित के विषयों पर जब भी कोई कानून बनाना हो तो कम से कम 60 दिन पहले उसका ड्राफ्ट संबंधित मंत्रालय की वेबसाइट पर डालना बहुत जरूरी है। इससे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में चर्चा शुरू होगी, अखबारों में लेख लिखा जाएगा, एक्सपर्ट अपना ओपिनियन देंगे, विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में चर्चा होगी, प्रधान-पार्षद अपने क्षेत्र में चर्चा करेंगे तथा विधायक और सांसद भी आम जनता के साथ सीधा संवाद करेंगे।
जब कानून के ड्राफ्ट पर 2 महीने तक लगातार चर्चा होगी तब सांसद विधायक और मंत्रीयों को भी कानून के सभी पहलुओं का ज्ञान होगा। इस प्रकार सरकार को बहुत अच्छे अच्छे सुझाव मिलेंगे और एक नया ड्राफ्ट बनाया जा सकेगा। जब संशोधित ड्राफ्ट पर मंत्रिमंडल में चर्चा होगी तो मंत्रीगण के सुझावों को भी ड्राफ्ट में शामिल कर लिया तब वह और अच्छा बनेगा और जब इस ड्राफ्ट पर सदन में चर्चा होगी और सदस्यों के सुझावों को शामिल करने के बाद कानून बनेगा तब उसमें गलती की संभावना बहुत कम होगी।
वर्तमान समय में ज्यादातर कानून कोर्ट में चैलेंज कर दिए जाते हैं। जब उपरोक्त व्यवस्था लागू हो जाएगी तब कोर्ट भी याचिकाकर्ता से पूँछेगी कि जिस ग्राउंड पर याचिका दाखिल की गई है उसे सरकार को पहले ही क्यों नहीं बताया
जब कानून निर्माण में आम जनता की भागीदारी बढ़ेगी तब कानून ज्यादा अच्छा और अधिक प्रभावी होगा, लोकतंत्र मजबूत होगा, आम जनता को गुमराह करना भी कठिन हो जाएगा तथा कोर्ट में जनहित याचिकाओं की संख्या भी कम होगी।
इसलिए आपसे विनम्र निवेदन है कि सभी मंत्रियों को निर्देश दें कि जब भी कोई नया कानून बनाना हो तो 60 दिन पहले वे प्रेस कांफ्रेंस कर आम जनता को कानून के बारे में बताएं और ड्राफ्ट वेबसाइट पर डाल दें।
धन्यवाद और आभार
अश्विनी उपाध्याय
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मेरे निजी विचार से साधारणतया यही प्रक्रिया अपनाई जाती है, परन्तु सदैव ऐसा शायद संभव नहीं है इससे अच्छे कार्य भी लंबे समय तक नहीं हो पाएंगे उदाहरण के लिये (१) उत्तर प्रदेश विधि विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिशेध अध्यादेश २०२० (२) लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अध्यादेश २०२०) में यदि यही प्रक्रिया अपनाई जाती तो ये संभव नहीं हो सकता था जबकि ये तो अध्यादेश ही हैं ऐसे कई और कानून भी हैं अच्छे कानूनों के लिए १००% सहमति मिलान थोड़ा मुश्किल ही होता है इसलिए अच्छाई के पहलु को देखना शायद ज्यादा जरूरी होगा
i agree with kamal ji, the strict bill if thrown in public, it will never be a law, 100% acceptance not possible, moreover 546 LS members and 250 RS members are the ELECTED SELECTED authorized representatives of Public.
DRAMEBAAZON NE TOH DRAMA HI KARNA HAI <AAP JO MARZI KAR LO
कमलजी ने सही कहा। लोकतंत्र में जनता को अपना नेता चुनने का अधिकार है लेकिन वह सही नेता जो देश हित, वैदिक संस्कृति का हित करने वाला हो ऐसा एक भी नेता आज तक जनता नहीं चुन सकी। क्यूंकि देश में चुनाव बहुमत से होता है और सही नेतृत्व कर्ता केवल विद्वानों द्वारा पहचाना जा सकता है जबकि बहुमत को आसानी से धोखा दिया जा सकता है।
हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य तंत्र और तानाशाही यह दोनों व्यवस्थाएं समानांतर चलती है कोई भी सजग व्यक्ति बड़ी आसानी से इस व्यवस्था को पकड़ सकता है। देश की जनता केवल नाम के लिए संप्रभु है, असली ताकत चतुर लोगों के पास है जो विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका अपराधियों धनाढ्य और व्यापारी वर्ग सबमें बैठे हैं। यह सारे चतुर और धूर्त लोग आम जनता को कभी भी सजग और सावधान नहीं करेंगे और ना किसी अन्य को करने ही देंगे। और यही सारे धूर्त लोग देश की आम जनता को डराते हैं, भ्रमित करते हैं, आपस में लड़ाते हैं और कमजोर कर देते हैं। इसलिए यदि हम अपने बीच से योग्यतम व्यक्तियों को सामने लाएं और उनका सहयोग करें तो वे योग्यता व्यक्ति कुछ भला कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।