आईएसडी नेटवर्क। बॉलीवुड को लेकर भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग ने एक शोध किया है। आर्थिक अनुसंधान विभाग की रिपोर्ट ने विस्तार से जानकारी देते हुए कई कारण गिनाए हैं, जिनके कारण बॉलीवुड की फ़िल्में लगातार पिट रही है। आर्थिक दृष्टिकोण से किये गए इस शोध में बॉलीवुड का बहिष्कार शामिल नहीं है।
आर्थिक अनुसंधान विभाग की रिपोर्ट के अनुसार देश में सिंगल स्क्रीन थियेटरों की संख्या में कमी आई है। अब फ़िल्में मल्टीप्लेक्स में रिलीज हो रही हैं। मल्टीप्लेक्स में टिकटों की दरें अधिक होती है। रिपोर्ट में इसका कारण राज्यों द्वारा लादा जा रहा मनोरंजन कर भी है। रिपोर्ट में एक उल्लेखनीय बात कही गई है। देश के 62 प्रतिशत सिंगल स्क्रीन थियेटर दक्षिण भारत के हिस्से में आते हैं और हिन्दी पट्टी में इसके मुकाबले केवल सोलह प्रतिशत सिंगल स्क्रीन थियेटर्स बचे हैं।
दक्षिण भारतीय फिल्मों का अधिक राजस्व कमाने का एक कारण ये भी बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार ओटीटी में बढ़ोतरी का बुरा असर सिनेमाघरों के लाभ पर होने की आशंका दिखाई दे रही है। रिपोर्ट बता रही है कि अब देश के पचास प्रतिशत से अधिक लोग एक माह में पांच घंटे से अधिक ओटीटी का उपयोग करने लगे हैं। स्मार्ट टीवी और क्रोमकास्ट जैसे विकल्प मनोरंजन के पारंपरिक तरीकों को प्रभावित कर रहे हैं।
रिपोर्ट बता रही है कि ओटीटी का आना मनोरंजन उद्योग के पारंपरिक ढाँचे में सबसे बड़ा व्यवधान बनकर उभर रहा है। भारत में 45 करोड़ ओटीटी ग्राहक हैं और इसके 2023 के अंत तक 50 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। आर्थिक अनुसंधान विभाग की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के बाद हिन्दी फिल्मों का व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कोरोना से पहले हिन्दी में 70 से 80 फ़िल्में हर वर्ष प्रदर्शित की जाती थी और इनसे लगभग पांच हज़ार करोड़ की कमाई मिलती थी।
यदि पिछले वर्ष से इस वर्ष अगस्त तक का आंकड़ा देखें तो डराने वाला है। पिछले वर्ष से अब तक केवल 61 फ़िल्में ही प्रदर्शित हुई है। इनमे दक्षिण और हॉलीवुड की फ़िल्में भी शामिल है। इन फिल्मों से 3200 करोड़ का कलेक्शन आया है। इस कलेक्शन का लगभग आधा हिस्सा तो दक्षिण की फिल्मों से हुए कलेक्शन से आया है।