विपुल रेगे। भूमिगत जल का पता लगाना, ख़जाने की ख़ोज करने जैसा काम है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इस विद्या को जानने वाले लोग बचे हुए हैं। भूमि के नीचे प्रवाहित जल का पता लगाने का एक संपूर्ण शास्त्र है, जो पांचवीं शताब्दी के विख्यात गणितज्ञ और खगोलज्ञ वाराहमिहिर ने लिखा था। वाराहमिहिर के लिखे ग्रंथ ‘बृहत्संहिता’ में एक ऐसी विद्या का वर्णन है, जो भूगर्भीय जल का पता लगाने में सहायक होती है। वाराहमिहिर आज नहीं हैं, किंतु उनकी ‘बृहत्संहिता का आलोक शताब्दियों तक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रवाहमान रहा। वाराहमिहिर का ये उपयोगी ग्रन्थ भारत की सीमाओं को पार कर विदेश जा पहुंचा।
‘बृहत्संहिता’ में जिस विद्या का वर्णन किया गया है, उसे ‘उदकार्गल’ कहा जाता है। इसका अर्थ होता है एक छड़ी के माध्यम से भूगर्भीय जल स्त्रोत का पता लगाना। आचार्य वराहमिहिर ने जल को धर्म और यश के साधन के रुप में स्वीकारते हुए बताया कि ‘जिस तरह मनुष्य के अंग में नाड़ियां हैं, उसी तरह भूमि के नीचे जल की अनेकों धाराएं बह रही है।’
उन्होंने बताया कि आकाश से बरसात का जल जब विभिन्न स्थानों पर गिरता है, तो मिट्टी की विशेषताओं के कारण उसकी प्रकृति भी बदल जाती है। ‘बृहत्संहिता’ में लिखित उदकार्गल अध्याय में 125 श्लोक है, जिनके माध्यम से भूगर्भस्थ जल की विभिन्न स्थितियों और जल का पता लगाने की विधियों के बारे में बताया गया है। उदकार्गल में विभिन्न वृक्षों और वनस्पतियों का उल्लेख है।
मिट्टी के रंग, पत्थर, क्षेत्र और देश की स्थिति के अनुसार जल की उपलब्धि का एक अनुमान भी इसमें दिया हुआ है। ये भी बताया है कि श्लोकों में बताई स्थितियों के अनुसार कितनी गहराई पर जल होने की संभावना है। अशुद्ध जल को शुद्ध कैसे बनाया जाए, इसका विवरण भी अध्याय में दिया गया है। वाराह मिहिर ने ये अध्याय लिखने से पूर्व उस समय प्रचलित तरीकों और लोगों के अनुभवों के बारे में जाना था और इसके बाद ये सटीक अध्याय लिखा गया, जो वर्तमान में भी लोगों के लिए उपयोगी सिद्ध हो रहा है।
अमेरिका के जॉन बेकर को उनके देश के लोग ‘डाउजर’ यानी छड़ी से पानी खोजने वाले के रुप में जानते हैं। वे कई वर्षों से पानी खोजने के लिए अपनी पेशेवर सेवाएं देते आ रहे हैं। जब लोगों को भूमिगत जल नहीं मिलता तो वे जॉन के पास जाते हैं। हमारे भारत में गाँव-देहात में भी ऐसे कार्य के लिए पेशेवर सेवाएं ली जा रही है। अंतर बस इतना है कि भारत में अधिकांश लोग इस सुंदर विज्ञान के जानकारों को ओझा मान लेते हैं।
जबकि ये विशुद्ध विज्ञान है, इसमें तंत्र-मन्त्र जैसी कोई बात नहीं है। आचार्य वराहमिहिर ने एक अध्याय को लिखने के लिए कितना गहन शोध किया होगा, कितने लोगों से वार्तालाप किया होगा, कितने ही प्रयोग किये होंगे, तब जाकर ये उपयोगी अध्याय जन्म ले सका। भारतवर्ष की आंतरिक दृष्टि गहन है। उसके ग्रंथों के श्लोकों में विज्ञान है। वह श्लोकों में लिखा गया ताकि सर्व साधारण तक वह अनूठा ज्ञान पहुँच सके। वाराह मिहिर का उद्देश्य ज्ञान को लोकहित के लिए अर्जित करना था और वह उन्होंने अविश्वसनीय ढंग से किया है।