विपुल रेगे। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर जीवन के 92 पड़ाव पार कर गई हैं। इनमें से कुछ वर्ष सुरीले होकर भारत की अनमोल पूंजी बन गए हैं। भारतीय संगीत के शास्त्रीय गुंचों में एक गुंचा लता दीदी ने जोड़ा है। ये कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि लता दीदी एक जीवित किवंदती हैं। इस वर्ष जैसे ही उनका जन्मदिवस आया, सन 2019 की एक कॉल रिकार्डिंग भी सामने आई। ये रिकार्डिंग दो जीवित किवंदतियों के बीच हुई बातचीत की है।
सन 2019 में जब प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका यात्रा के लिए जा रहे थे, तो उन्होंने पहले ही लता दीदी को बधाई दी क्योंकि उनके जन्मदिवस पर वे भारत में नहीं रहने वाले थे। ये रिकार्डिंग सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुई। ये उत्सुकता का विषय है कि भारत के लोगों को इस वार्तालाप में क्या आल्हादित कर गया। सन 2019 में ये रिकार्डिंग प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ में सुनाई थी।
रिकार्डिंग सुनाने से पूर्व उन्होंने विशेष रुप से युवाओं को ये बताया था कि नब्बे की आयु में भी लता दीदी देश में हो रही तमाम बातों के लिए उत्सुक हैं, तत्पर हैं। मैंने इस रिकार्डिंग को ध्यान से सुना और जानने का प्रयास किया कि इस वार्तालाप में भला ऐसा क्या था, जिसने रेडियो सुन रहे आम नागरिक के मन को छू लिया। वे बात शुरु करते हुए कहते हैं ‘प्रणाम लता दीदी मैं नरेंद्र मोदी बोल रहा हूँ।’ ये एक सहज स्वाभाविक संबोधन था। वैसा ही, जैसा हमारे देस में होता है।
उधर से उत्तर भी वैसा ही सहज स्वाभाविक आया। स्वर में आत्मीयता थी। मोदी ने कहा ‘इस बार आपके जन्मदिन पर मैं हवाई जहाज में ट्रेवलिंग कर रहा हूंगा, तो मैंने सोचा जाने से पहले ही आपको जन्मदिवस की अग्रिम शुभकामनाएं दे दूं।’ इस पर लता दीदी कहती हैं ‘आप कब वापस आएँगे।’ भारत के परिवारों में जब घर का बड़ा बाहर जाता है तो इस तरह ही पूछा जाता है कि कब लौटेंगे।
लता दीदी ने कहा आपका आशीर्वाद हम पर बना रहे तो मोदी ने बात काटते हुए कहा दीदी आपका आशीर्वाद तो हम मांगते हैं, आप आयु में हमसे बड़ी हैं। इस पर दीदी कहती हैं ‘उम्र से बड़े तो बहुत लोग होते हैं लेकिन अपने काम से जो बड़ा होता है, उसका आशीर्वाद लेना बड़ी बात है। इस बातचीत में वे एक स्थान पर कहती हैं ‘आप क्या हैं ये आपको ही नहीं पता, आपके आने से भारत की तस्वीर बदल गई है।’
आम आदमी को इस बात ने छू लिया कि दोनों ही जीवित किवंदतियां विनम्रता के शिखर पर विराजमान हैं। हमने देखा कि वार्तालाप विनम्रता के घेरे में रहकर भी औपचारिक नहीं था। प्रधान ने अपने प्रोटोकॉल को फोन लगाने से पूर्व ही टेबल पर रख छोड़ा था। ये देशज भाव हमारी तेज़ी से आधुनिक होती जा रही युवा पीढ़ी को सुनना और उसके भाव को महसूस करना चाहिए। ये अनौपचारिकता कितनी मूल्यवान है, ये कभी अप्रवासी भारतीयों से पूछ लेना।
वहां पश्चिमी देशों में ये देसीपन बहुत याद आता है। आपको उसकी कमी खलती है। ये दोनों ही हस्तियां अपने-अपने क्षेत्र के शिखर पर विराजमान हैं। एक बहुत लंबी यात्रा कर यहाँ तक पहुंचे मोदी और लता दीदी जानते हैं कि आपका शीश भले ही शिखर के सम्मुख हो, किन्तु आपके पाँव धरती पर टिके रहे। वास्तविकता के धरातल को जानने वाले यहाँ से अपने पैर कभी नहीं उठाते। वे जानते हैं कि यात्रा का अंत इसी कठोर धरातल पर होना है।