रामेश्वर मिश्र पंकज। 15 अगस्त 1947 के बाद भारत में कोई राजा नहीं रहा । अंग्रेजों की जूठन का एक शासन तंत्र है । इसके विभिन्न पदों के लिए प्रत्याशी खड़े होते हैं और चुने जाते हैं ।। उसमें से विधायिका के लिए प्रत्याशी चुनने की विधि वोट है। शेष तीन अंगों के लिए प्रत्याशी चुनने की विधि स्वयं उन उन अंगों के अधिकारी हैं और रूढ़िगत नियम हैं।
भारत का कोई भी राजा नहीं है। और कोई अपने को राजा गौरवपूर्वक कहता भी नहीं है । कोई भी राजा अश्वमेध यज्ञ या राजसूय यज्ञ नहीं कर रहा है क्यो कि कोई भी राजा नहीं है। कम से कम पांचवें वर्ष हर एक प्रधानमंत्री के बदलने की पूरी आशंका बनी रहती है।।
अश्वमेध यज्ञ संपूर्ण राष्ट्र के हित में किए जाते थे और उसे करने का अधिकार केवल सम्राट को है। विधायिका और कार्यपालिका के पदाधिकारी राजा नहीं कहे जा सकते और उन्हें सामान्य गृहस्थ या सामान्य शासकीय अधिकारियों की तरह पूजा पाठ करने का पूरा अधिकार है।।प्रोपगंडा करने से वर्तमान ईसाइयत प्रेरित लोकतंत्र के प्रधानमंत्री को राजा नहीं कहा जा सकता। राजा बनाया तो नहीं ही जा सकता उन्हें।
प्राण प्रतिष्ठा एक ऐसा अनुष्ठान है जो वस्तुत: वही व्यक्ति करेगा जिसका वह मंदिर है। अगर मंदिर किसी ट्रस्ट का है तो प्रधान ट्रस्टी ही यजमान होगा और पुरोहित पूजा के समय मन्त्रों के द्वारा अपने भीतर चेतना का आवाहन कर मूर्तियों का स्पर्श मन्त्रों के साथ करते हुए प्राण की प्रतिष्ठा करेंगे। प्राण की यह प्रतिष्ठा पुरोहित करता है ।
समर्थ पुरोहित करते हैं। और यजमान उसमें केवल साक्षी रहते हैं । श्री राम मंदिर के यजमान कौन है ? श्री राम जन्मभूमि या राम मंदिर न्यास के प्रधान ट्रस्टी ही प्रधान यजमान हैं। अन्य गृहस्थो की तरह अथवा अन्य बंधु जनों की तरह बांधवों की तरह ही शासन के अधिकारी और प्रधानमंत्री उसमें शामिल हो सकते हैं और हो रहे हैं।।
प्रधानमंत्री से जो पूजा कराई जाएगी वह प्रधान यजमान वाली पूजा नहीं हो सकती क्योंकि वह प्रधान यजमान नहीं हैं। प्राण प्रतिष्ठा के समय वैसे भी पत्नी का होना आवश्यक नहीं है । अकेला सद्गृहस्थ यजमान भी अपने पुरोहित से प्राण प्रतिष्ठा की क्रिया संपन्न करा सकता है ।
श्री नरेंद्र मोदी की पत्नी का प्रसंग लाना तो उन्हें सम्राट मानना और वर्तमान में भारत में परंपरागत राज्य व्यवस्था होना और शास्त्र सम्मत शासन होना मानना है जो मूढ़तापूर्ण है और तमस की पराकाष्ठा है। यह घोर अंधकार को ही प्रकाश मान लेना है। वर्तमान भारतीय शासन व्यवस्था ईसाई शासन व्यवस्था है ।
इसका सनातन धर्म से कोई भी संबंध नहीं है और वर्तमान हिंदू समाज में हिन्दू संस्कारों का तथा ईसाइयत के बौद्धिक आधारों का संकरण है। ऐसे में बिना संदर्भ के कोई बात कहना मनोरंजन तो है परंतु उसमें कोई गंभीरता नहीं है।
रामेश्वर मिश्र पंकज