यह दुनियाभर के देशों से भारत के व्यापार के आंकड़े है। इन देशों में से ऐसे मुश्किल से 5 – 6 देश ही होंगें जिनकी भाषा अंग्रेजी होगी और इनसे हमारे कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार का महज एक चौथाई भी नहीं होता है मगर देश के उद्योग व व्यापार जगत की भाषा अंग्रेजी ही है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पूरी दुनिया का भ्रमण करते समय हिंदी का भरपूर उपयोग करते हैं व देश का काम धंधा आसानी से चला ले जाते हैं किंतू देश के उच्च शिक्षा संस्थान, कारपोरेट जगत और संभ्रांत वर्ग मात्र अंग्रेजी भाषा का प्रयोग ही करता है, यह समझ से बाहर की बात है।
अंग्रेजी की सच्चाई यह है कि पूरे यूरोप में अंग्रेजों व अंग्रेजी से लोग नफरत करते हैं व जर्मन, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, रूस आदि दर्जनों देश अपनी अपनी भाषाओं में शिक्षा, काम व बात करते है और पूर्णतः विकसित है।
फिर हम भारतीयों पर अंग्रेजी क्यों थोपी जा रही है। मोदी जी दुनियाभर में हिंदी बोलते हैं और देश मे पिछले पांच बर्षो में सभी सरकारी नौकरियों में हिंदी व क्षेत्रीय भाषाओं से परीक्षा देने वाले लोगों का चयन प्रतिशत गिरता जा रहा है, क्यों? क्यों गली गली नुक्कड़ नुक्कड़ अंग्रेजी सिखाने वाले संस्थानों व अध्यापकों की दुकानें खुलती जा रही हैं।
क्या इंटरनेट के प्रसार और दूरसंचार क्रांति के नाम पर हम गूगल और अंग्रेजी की गुलामी नहीं कर रहे? जब दुनिया के दर्जनों देश अपनी अपनी भाषा मे सर्च इंजन विकसित कर सकते हैं तो भारत क्यों नहीं? क्या इंग्लैंड और अमेरिका ही दुनिया है और उनका पिछलग्गू बनकर ही भारत विकसित हो सकता है? अगर ऐसा है तो करोड़ों लोगों को हर बर्ष अंग्रेजी पढ़ाने के बाद भी क्यों नहीं देश मे ज्ञान, इन्नोवेशन व शोध की नई क्रांति ने जन्म लिया? क्या हम अधकचरे असभ्य व अधूरे लोगों का देश नहीं बन गए हैं जो दुहरी व तिहरी जिंदगी जी रहा है? क्या हमारे राजनेता व नोकरशाही अपनी सामंतवादी सत्ता व लूटतंत्र को बनाए रखने के लिए हमें आज भी धोखा नहीं दे रहे?
Sandeep ji..yahi sab to khamiya Modi Government me..Rastrawad k bade muddo par to apne aap ko sabit kar rhi h..lekin basic aur sabse majboot Bhasa k muddo par koi kaam nhi kar rhi h..