विपुल रेगे। महेश भट्ट को साहसी फ़िल्मकार माना जाता है। उनकी ये छवि ‘सारांश’, ‘डैडी’ और ‘अर्थ’ के कारण बनी थी। तीन सामाजिक सरोकारों वाली फ़िल्में बनाने के बाद वे चलताऊ मसाला निर्देशक बन गए थे। महेश भट्ट का अतीत और निजता उनकी फिल्मों में झलकती रही है। ‘रंजिश ही सही’ महेश भट्ट के जीवन को दिखाती वेब सीरीज है। इस वेब सीरीज को देखने के बाद दर्शक कम से कम ये तो स्वीकार करेगा कि भट्ट एक साहसी फ़िल्मकार कतई नहीं थे।
ओटीटी मंच : Voot
इस वेब सीरीज के निर्माता महेश भट्ट नहीं हैं लेकिन प्रस्तुति में उनका नाम आता है। निश्चय ही ये महेश भट्ट के निजी जीवन से प्रेरित कहानी है। महेश भट्ट के कई निजी अध्यायों में से एक उनका और परवीन बाबी का रिश्ता रहा है। उनकी फिल्म ‘अर्थ’ में ये प्रेम कथा रिफ्लेक्ट हुई थी और अब ‘रंजिश ही सही’ में उस कथा को पुनः प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
ऐसा बहुधा सुनने में आता है कि बड़े प्रभावशाली लोग अपनी आत्मकथाओं के प्रति निष्ठावान नहीं रह पाते। वे अतीत में हुई गलतियों को या तो छुपाते हैं या उन्हें ग्लैमराइज कर प्रस्तुत करते हैं ताकि अपराधी होते हुए भी वे लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर सके। ‘रंजिश ही सही’ में ऐसा ही कुछ हुआ है। महेश भट्ट की गलतियों को जस्टिफाई करने की कोशिश की गई है।
परवीन बाबी के साथ उनकी प्रेमकथा में महेश भट्ट को कटघरे में खड़ा नहीं किया गया। ये वेब सीरीज कौनसे काल की है, ये भी समझना मुश्किल है। यदि ये कहानी परवीन बाबी की है तो तथ्यों का कचूमर निकाल दिया गया है। परवीन की युवावस्था में उनके पिता जीवित नहीं थे। जबकि फिल्म में उन्हें परवीन के युवा होने तक जीवित बताया गया है।
परवीन के पिता वली मोहम्मद का सन 1959 में निधन हो गया था, जब वें सिर्फ पांच वर्ष की थी। महेश भट्ट का पहला प्रेम किरण से हुआ था। किरण के बाद उन्होंने सोनी राजदान से विवाह किया। हालाँकि फिल्म में किरण को ही अंत समय तक उनकी पत्नी बने दिखाया गया है। ऐसी बुनियादी गलतियां फिल्म को बहुत नुकसान पहुंचाती है।
महेश भट्ट वास्तव में साहसी नहीं, एक कायर फिल्म निर्देशक हैं। वे इतने भयभीत थे कि फिल्म में किरदारों के नाम ही बदल दिए गए। महेश भट्ट ‘शंकर वत्स’ बना दिया गया और परवीन बाबी को ‘आमना परवेज’ बना दिया गया। जिस अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ में परवीन ने अभिनय किया था, उस फिल्म का नाम तक इस वेब सीरीज में बदल दिया गया।
फिल्म के कई दृश्यों में महेश भट्ट का संघर्ष दिखाया गया है। निर्देशक ने महेश के अंदर के खलनायक को छुपाते हुए उन्हें नायक की तरह प्रस्तुत किया है। फिल्म में बार-बार एक संवाद आता है। महेश भट्ट का किरदार कहता है ‘यूँ तो हम दोनों को एक दूसरे की जरूरत थी लेकिन आमना को मेरी ज़्यादा ज़रूरत थी। महेश भट्ट को इस प्रकरण में निर्दोष बताने के लिए इस तरह के संवादों का प्रयोग किया गया है।
महेश भट्ट ने एक निर्देशक के रुप में बड़ी सफलताएं प्राप्त की थी। सारांश-डैडी-अर्थ ने उन्हें जो पहचान दी थी, उससे वे एक अच्छे निर्देशक तो कहलाते लेकिन एक सफल निर्देशक नहीं माने जाते। सफलता के लिए वे मसाला फिल्मों की ओर मुड़े। उन्होंने संजय दत्त को लेकर ‘सड़क’ बनाई। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर आय के कीर्तिमान स्थापित कर दिए। बस इसके बाद भट्ट के अंदर का साहसी फ़िल्मकार मर चुका था।
वे भी अपने समकालीन मनमोहन देसाई जैसे मसाला निर्देशक बन चुके थे। उनके निजी जीवन पर एक वेब सीरीज बनाने का हासिल आख़िरकार क्या होगा। ये वेब सीरीज न तो युवा फिल्म निर्देशकों को कोई प्रेरणा देती है और न ही बॉक्स ऑफिस पर सफल होने लायक इसमें कंटेट है। ये महेश भट्ट का झूठा कन्फेशन है। ये एक ऐसा कन्फेशन है, जिसमे परवीन के साथ किया गया धोखा शामिल नहीं है। इसमें वह तथ्य भी शामिल नहीं है कि कैसे एक साहसी फ़िल्मकार आर्थिक सफलता के लिए उसी राह चल पड़ा, जिस पर चलना वह खुद की तौहीन समझता था।