संदीप देव। मैं समाजशास्त्र का विद्यार्थी हूं। समाजशास्त्र में भारतीय हिंदू परिवार व्यवस्था में परिवार की तीन अवधारणा पढ़ाई जाती है।
१) Extended Family (विस्तृत परिवार):- इसमें आपके परिवार के साथ आपके सबसे नजदीकी नातेदार आते हैं।
विस्तृत परिवार के दायरे में आपका ननिहाल, आपके चाचा, आपकी बुआ एवं मौसी का परिवार और विवाह के उपरांत आपका ससुराल पक्ष भी आ जाता है।
२) Joint family (संयुक्त परिवार):- इसमें कम से कम तीन पीढ़ियां एक साथ रहती हों, ऐसा परिवार आता है। तीन पीढ़ियों में दादा-दादी, माता-पिता और बेटे/बेटियां सम्मिलित होते हैं।
३) Nuclear family(एकल परिवार):- पति-पत्नी और उसके बच्चे तक सीमित है यह परिवार।
क) नीचे दिए हमारे परिवार के इस फोटो को देखें तो आपको पहली बड़ी तस्वीर में हमारा विस्तृत परिवार दिखेगा, जिसमें हमारे माता-पिता के साथ हम दोनों भाई का ससुराल पक्ष भी सम्मिलित है। साथ ही इस फोटो में हमारे पुरोहित पंडित जी भी हैं।
ख) नीचे बाईं ओर के फोटो में हमारा संयुक्त परिवार दिखेगा। माता-पिता और दोनों भाई का बच्चों सहित परिवार। इसमें तीनों पीढ़ी सम्मिलित है।
ग) नीचे दायीं तरफ हमारा एकल परिवार दिखेगा। पति-पत्नी और बेटा उमंग।
मेरी भार्या Shweta Deo ने जब यह फोटो बनवाया और अतिथि कक्ष में लगाया, तब मेरा ध्यान गया कि अरे इसमें तो पूरी हिंदू परिवार व्यवस्था की झलक आ गई।
आज के बच्चों को ऐसे फोटो के जरिए अपने पूरे परिवार से अवगत कराएं ताकि वो अपने पूरे विस्तृत परिवार, नातेदार-रिश्तेदार से परिचित हों। कम से कम उन्हें पहचानें और उनसे अपने रिश्तों को समझें।
सनातन में परिवार ही वर्णाश्रम धर्म का मूल आधार है। यज्ञ, अनुष्ठान और पितरों की मुक्ति के लिए परिवार की अनिवार्यता सिद्ध है। समाजशास्त्र हिंदू समाज व्यवस्था का प्रथम ईकाई परिवार को ही मानता है।