हर मर्यादा टूट चुकी
मुगल – काल से भी ज्यादा , गंदा – शासन है भारत में ;
अंग्रेजी – शासन से भी बढ़कर , अत्याचार है भारत में ।
इसका सबसे बड़ा है कारण , अब्बासी-हिंदू का कामाचार ;
निम्फो चरित्र हो चुका है इसका , रूप ले रहा है साकार ।
अतृप्त-वासना हो गयी असीमित , हर-मर्यादा टूट चुकी ;
बेशर्मी भी शर्मा जाये , लक्ष्मण-रेखा सब छूट चुकी ।
खुला-खेल रावण का चलता , सीता का बचना मुश्किल है ;
अब्बासी-हिंदू सत्ता पर काबिज,अब तो कुछ भी मुमकिन है ।
ये चुनाव सामान्य नहीं है , ये तो टर्निंग – प्वाइंट है ;
गलत-दिशा में अगर मुड़ गया , पूरी बरबादी ज्वाइंट है ।
संभल सके तो संभल ले हिंदू ! आगे रक्त का सागर है ;
खून की नदियां भूल जाओगे , आने वाला महासागर है ।
सदा ही तुमने आंखें मूंदी , जब-जब संकट आता है ;
केवल ये ही कमजोरी है , हिंदू ! गला कटाता है ।
हर हाल में ये कमजोरी छोड़ो , साहस-शौर्य जगाना होगा ;
फिर से धर्म पे संकट आया , वीर – शिवा बनना होगा ।
राणा-प्रताप की तरह बनें हम , असम का फूकन बनना है ;
राजगुरु , सुखदेव , भगत सिंह , चंद्रशेखर बनना है ।
अन्याय को सहने वाला कायर , वो भी पापी होता है ;
नेता जब पापी होता है , जनता को भोगना पड़ता है ।
अब चुनाव आ गया है सर पर , पापी-साम्राज्य बदलना है ;
सोच-समझ कर वोट करें सब , अच्छी-सरकार बनाना है ।
अच्छे-शासन को तरस रहा है , आजादी से भारत-देश ;
सर्वोत्तम-शासन धर्म का शासन , अब हिंदू का ये आदेश ।
“एकम् सनातन भारत” दल ही , धर्मनिष्ठ शासन लायेगा ;
हर हिंदू ! संकल्प करे तो , “राम-राज्य” निश्चित आयेगा ।
सोच-समझ कर वोट को करना, हिंदू ! तुमको धर्म बचाना ;
धर्म बचे तब देश बचेगा , फिर तो सब-कुछ बच जाना ।
अपने अज्ञान से बाहर निकलो , हिंदू ! लो गीता का ज्ञान ;
वरना कुछ भी नहीं बचेगा , निश्चित ही तू इसको जान ।
तेरा सब-कुछ लुट जायेगा , जान-माल-सम्मान जायेगा ;
अबकी बार जो हिंदू ! चूका , फिर न मौका पायेगा ।
सारे हिंदू ! घर से निकलो , सबके सब मतदान करो ;
स्वर्णिम-अवसर पास तुम्हारे , इसका पूरा सम्मान करो ।