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India Speaks Daily > Blog > राजनीतिक विचारधारा > संघवाद > हम हैं राम के रक्तबीज!
संघवाद

हम हैं राम के रक्तबीज!

Courtesy Desk
Last updated: 2018/05/23 at 10:38 AM
By Courtesy Desk 192 Views 7 Min Read
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7 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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विपुल विजय रेगे। सेतुसमुद्रम नौवहन नहर परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को छह सप्ताह का समय दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि तय वक्त के भीतर सरकार को राम सेतु पर अपना स्टैंड साफ करना होगा। केंद्र को यह बताना होगा कि वह राम सेतु को हटाना चाहते हैं या उसे बचाना चाहते हैं। जब सरकार पहले ही कह चुकी है कि परियोजना के लिए सेतु नहीं तोड़ा जाएगा, तो माननीय सुप्रीम कोर्ट को क्या तकलीफ़ हो रही है, समझ नहीं आ रहा। विश्व में न्याय व्यवस्था को सबसे पहले प्रभु श्रीराम ने ही जन्म दिया था लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि उनकी बनाई व्यवस्था एक दिन स्वयं अजानबाहु को कटघरे में खड़ा कर देगी।

श्रीराम का नाम हमारे रक्त के साथ निरंतर प्रवाहित होता रहता है।

सनातनी विचारधारा के वाहक वस्तुतः ‘राम के रक्तबीज’ हैं। ऐसे ही रक्तबीजों ने कई वर्ष पूर्व से प्रभु की प्रामाणिकता सिद्ध करने का सेतु बांधना शुरू कर दिया था। सन 2003 में आईआरएस कमिश्नर रही सरोज बाला हो या दिल्ली में चल रहे रामायण सर्किट का शोध हो, श्रीराम के लिए हज़ारों लोग आज भी काम कर रहे हैं। माननीय न्यायालय के सम्मुख एक बार फिर प्रमुख तथ्य सलंग्न कर रहा हूँ।

सरोज बाला ने रामायण काल की घटनाओं की सही तारीख बताने के लिए जिस सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया। उसमे महर्षि वाल्मीकि द्वारा दी गई जानकारी फीड कर नए तथ्य सामने लाए गए। सरोज बाला जी के शोध पर दृष्टि डालें, फिर आगे बढ़ते हैं। उनके पास सारी घटनाओं की तिथि उपलब्ध नहीं है लेकिन हम इतना जरूर जान गए कि रामेश्वरम द्वीप में दक्षिण पूर्वी तट के किनारे सेतु बनाना सन 5076 बीसीई के मानसून से कुछ पहले बनाना शुरू कर दिया गया था।

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जन्म समय दोपहर 12:30 मिनट

भरत का जन्म
11 जनवरी सन 5114 बीसीई

राज्याभिषेक की पूर्व संध्या
4 जनवरी सन 5089 बीसीई

खरदूषण प्रकरण ( इस दिन सूर्य ग्रहण हुआ था)
7 अक्टूबर सन 5077 बीसीई

बाली का वध
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12 सितंबर सन 5076 बीसीई

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मेघनाथ वध
24 नवंबर सन 5076 बीसीई

सागर की प्रचंड उठती लहरों को इंगित कर नल में घोषणा की

मैं विश्वकर्मा का वंशज हूँ। मैं विश्वकर्मा के समकक्ष हूँ। मैं इस अथाह सागर पर सेतु बनाने की क्षमता रखता हूँ। सबसे पहले सागर में विशाल वृक्षों के तने काट कर डाले गए। इस काम में नल ने दैत्याकार वानरों को साथ लिया। इन वानरों का कद अन्य वानरों की अपेक्षा लंबा था। सागर में शाल, अश्वकर्णा, सप्तर्णा, अर्जुन, कर्णिका, आम और अशोक के वृक्ष काटकर बिछाए गए। पहले दिन चौदह योजन तक सेतु बन सका। पांचवे दिन तक काम करने की गति 23 योजन तक पहुँच गई। इस तरह पांच दिन में लगभग 50 किमी लम्बा पुल बनाया गया। वृक्षों के तने बिछाने के बाद इन पर पत्थरों की तीन परत बिछाई गई। इस बात का भी कहीं उल्लेख है कि सेतु में रेडियोधर्मी पदार्थ पाया गया है।’

श्रीराम के लिए आलोक का मिशन

उनका नाम आलोक त्रिपाठी हैं। वे पेशे से एक ‘मरीन आर्कियोलॉजिस्ट’ हैं। उन्होंने गत वर्ष इंडियन काउंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च को राम सेतु पर एक गोताखोरी अभियान चलाने का प्रस्ताव दिया है। आलोक को विश्वास है कि नौ फ़ीट पानी में धंस चुके सेतु की नींव अब भी सुरक्षित है। वे 52 साल की आयु में भी नीचे गहराई में जाने के लिए लालायित हैं। उन्हें श्रीराम की प्रामाणिकता पर कोई संदेह नहीं है। आलोक कहते हैं कि वहां नीचे सेतु की नींव के पास अब भी कई प्रमाण मौजूद हैं।

आखिरी पैरा बड़ा रहस्यपूर्ण है।

लंका विजय के बाद प्रभु पुष्पक विमान में सीता को लेकर लौटे थे। उन्होंने इस अद्भुत इंजीनियरिंग को आकाश से सीता को दिखाया था और बताया था कि कितने श्रम से ये सेतु बनाया गया। उन पलों में प्रभु ने इस सेतु को ‘नल सेतु’ नाम दिया था। 10 मार्च 2013 को एक क्रिस नामक खोजी रामेश्वरम में भटक रहा है। जब वह होटल लौटकर लैपटॉप चेक करता है तो उसे सुखद आश्चर्य और 440 वॉट के झटके का अहसास साथ ही होता है।

जब एक ईमेल ने रहस्य को और बढ़ाया

एक ईमेल आया है उसकी माँ का। माँ यानि प्रोफेसर रॉजर लिख रही हैं “मैंने तुम्हे पहले ही कहा था कि जिस शिलालेख का एक हिस्सा तुम्हे प्राप्त हुआ है, वो ‘सर्प शैली’ में लिखा हुआ है। इसमें कौंदंदम,कांतिका और पुष्पक का उल्लेख है। ये विवरण एक पहेली की तरह लिखा गया है। कौंदंदम राम का धनुष था, जिसे उन्होंने श्रीलंका में ही युद्ध के बाद नष्ट कर दिया था। कांतिका एक छुपा हुआ स्थान है, जहाँ सूर्यवंशी ने कुछ अस्त्र-शस्त्र छोड़ दिए थे। पुष्पक को एक संत ने उसी जगह पहुंचा दिया है, जहाँ वह हमेशा रखा रहता था। इस हिस्से के अध्ययन से मुझे बस इतना ही ज्ञात हुआ है।

मुझे तकलीफ ये है कि एक महत्वपूर्ण खोज 2013 में ही भारत से या तो जा चुकी है, या फिर उस शिलालेख का ये हिस्सा कहीं छुपाकर रखा गया है…

साभार: विपुल विजय रेगे की फेसबुक वाल से

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TAGGED: Indian Council Of Historical Research, Rama, ramayana
Courtesy Desk November 15, 2017
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