श्वेता पुरोहित। आज दिनांक २९ मार्च २०२४ को चंद्र विशाखा नक्षत्र में गोचर कर रहा है। इस नक्षत्र के ग्रह स्वामी गुरु हैं।
चन्द्रमण्डल भी अवतारों में (क्षरकी आधिदैविक कलाओंमें) आया है, उसके ‘प्राणों’ का प्रतिफल भी कृष्णचरितों में बहुत कुछ दीख पड़ता है। चन्द्रमा समुद्रमें (आपोमय मण्डल में) रहता है-
‘चन्द्रमा अप्स्वन्तरा सुपर्णो धावते दिवि।’
(ऋग्वेद)
इसलिये भगवान् श्रीकृष्ण भी समुद्र के बीच में ‘द्वारका’ बसाकर रहे । चन्द्रमण्डल श्रद्धामय है – इस कारण भगवान् श्रीकृष्णमें भी श्रद्धा बहुत अधिक थी। सामान्य ब्राह्मणों के भी अपने हाथों से चरण धोना, स्वयं उनके चरण दबाना, देवयजन, शिवाराधन आदि श्रद्धाके बहुत-से निदर्शन हैं ।
रासलीला का भी चन्द्रमा से बहुत सम्बन्ध है। चन्द्रमा राशिचक्र से रासलीला करता रहता है। प्राचीनकाल में नक्षत्रों की गणना कृत्तिका से की जाती थी, उसके अनुसार विशाखा (नक्षत्र) सब नक्षत्रों की मध्यवर्तिनी होने से ‘रासेश्वरी’ है, उसका दूसरा नाम राधा भी है, अतएव उसके आगे के नक्षत्र को ‘अनुराधा’ कहते हैं। विशाखा पर जिस पूर्णिमा को चन्द्रमा रहता है – उस दिन सूर्य कृत्तिका पर रहता है। सम्मुख स्थित सूर्य की सुषुम्णारश्मि से विशाखायुत चन्द्रमा प्रकाशित होता है, कृत्तिका का सूर्य ‘वृष’ राशि का है।
अतएव, यह राधा वृषभानुसुता कही जाती है। फिर जब पूर्णचन्द्रमा (पूर्णिमा का चन्द्रमा) राधा के ठीक सम्मुख भाग में कृत्तिका पर आता है, तो कार्तिकी पूर्णिमा रास का मुख्य दिन है। इत्यादि । ये सब घटनाएँ भगवान् श्रीकृष्ण की ‘रासलीला’ में भी समन्वित होती हैं।
आप सबका दिन मंगलमय हो। राधा रानी की कृपा आप पर बनी रहे।
राधे राधे