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Reading: कुरान की वह 26 आयतें, जिसे हटाने के लिए वसीम रिजवी ने अदालत का रुख किया है? और जिसको लेकर कट्टरपंथी रिजवी का सिर कलम करना चाहते हैं!
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India Speaks Daily > Blog > धर्म > अब्राहम रिलिजन > कुरान की वह 26 आयतें, जिसे हटाने के लिए वसीम रिजवी ने अदालत का रुख किया है? और जिसको लेकर कट्टरपंथी रिजवी का सिर कलम करना चाहते हैं!
अब्राहम रिलिजन

कुरान की वह 26 आयतें, जिसे हटाने के लिए वसीम रिजवी ने अदालत का रुख किया है? और जिसको लेकर कट्टरपंथी रिजवी का सिर कलम करना चाहते हैं!

Sonali Misra
Last updated: 2021/03/18 at 11:33 AM
By Sonali Misra 471 Views 13 Min Read
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Sonali Misra. पिछले दिनों कुरआन की क्षेपक आयतों को लेकर शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी ने उच्चतम न्यायालय में एक केस फ़ाइल किया है।  इन आयतों को लेकर देश में एक बहस आरम्भ हो गयी है। हालांकि इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता करुणेश शुक्ला भी इन आयतों को हटाए जाने को लेकर एक याचिका दायर कर चुके हैं। करुणेश शुक्ला और वसीम रिजवी दोनों के ही अनुसार यह आयतें क्षेपक हैं और इन्हें बाद में शामिल किया गया और वह भी नफरतें फ़ैलाने के लिए।

आज करुणेश शुक्ला ने भी अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर उन आयतों का उल्लेख किया है, जिन पर विवाद उन्होंने जनहित याचिका दायर की है:

“कुरान की वो आयते जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील करुणेश शुक्ला ने पीआईएल डाली है, और साथ ही में शिया बक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ने समर्थन में एक केस फाइल किया है,  जिसके लिए पूरे देश में हंगामा खड़ा हुआ है।

1- ”फिर, जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको‘ को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घातकी जगह उनकी ताक में बैठो. फिर यदि वे ‘तौबा‘ कर लें ‘नमाज‘ कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो. निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है.” (पा0 10, सूरा. 9, आयत 5,2ख पृ. 368)

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जीसस और ईसाई मत

2- ”हे ‘ईमान‘ लाने वालो! ‘मुश्रिक‘ (मूर्तिपूजक) नापाक हैं.” (10.9.28 पृ. 371)

3- ”निःसंदेह ‘काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं.” (5.4.101. पृ. 239)

4- ”हे ‘ईमान‘ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों‘ से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें.” (11.9.123 पृ. 391)

5- ”जिन लोगों ने हमारी ”आयतों” का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे. जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें. निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं” (5.4.56 पृ. 231)

5- ”हे ‘ईमान‘ लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा ‘कुफ्र‘ को पसन्द करें. और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे” (10.9.23 पृ. 370)

7- ”अल्लाह ‘काफिर‘ लोगों को मार्ग नहीं दिखाता” (10.9.37 पृ. 374)

8- ”हे ‘ईमान‘ लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को अपना मित्र बनाओ. अल्ला से डरते रहो यदि तुम ‘ईमान‘ वाले हो.” (6.5.57 पृ. 268)

9- ”फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे.” (22.33.61 पृ. 759)

10- ”(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम‘ का ईधन हो. तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे.”

11- ‘और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब‘ की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले. निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है.” (21.32.22 पृ. 736)

12- ‘अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ‘गनीमतों‘ का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,” (26.48.20 पृ. 943)

13- ”तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ” (10.8.69. पृ. 359)

14- ”हे नबी! ‘काफिरों‘ और ‘मुनाफिकों‘ के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम‘ है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे” (28.66.9. पृ. 1055)

15- ‘तो अवश्य हम ‘कुफ्र‘ करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे.” (24.41.27 पृ. 865)

16- ”यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (‘जहन्नम‘ की) आग. इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी ‘आयतों‘ का इन्कार करते थे.” (24.41.28 पृ. 865)

17- ”निःसंदेह अल्लाह ने ‘ईमानवालों‘ (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए ‘जन्नत‘ हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं.” (11.9.111 पृ. 388)

18- ”अल्लाह ने इन ‘मुनाफिक‘ (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से ‘जहन्नम‘ की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे. यही उन्हें बस है. अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है.” (10.9.68 पृ. 379)

19- ”हे नबी! ‘ईमान वालों‘ (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो. यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते.” (10.8.65 पृ. 358)

20- ”हे ‘ईमान‘ लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ. ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं. और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा. निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता.” (6.5.51 पृ. 267)

21- ”किताब वाले” जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे ‘हराम‘ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना ‘दीन‘ बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से ‘जिजया‘ देने लगे.” (10.9.29. पृ. 372)

22- 22 ”…….फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं. (6.5.14 पृ. 260)

23- ”वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी ‘काफिर‘ हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो. और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना.” (5.4.89 पृ. 237)

24- ”उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और ‘ईमान‘ वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा” (10.9.14. पृ. 369)

उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं. इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं.

उपरोक्त आयतों में स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं. इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर-मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं.

ऐसा नहीं है कि वसीम रिजवी ने पहली बार ऐसा कुछ कहा है जिसके कारण मुस्लिम समुदाय में उबाल है, पहले भी अपने कई बयानों के कारण वह चर्चा में रह चुके हैं, और उनका विरोध हो चुका है जैसे इस्लामी मदरसों को बंद कर देना चाहिए क्योंकि ये आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं और बहुत से मदरसों में आतंकी ट्रेनिंग दी जाती है, आधुनिक शिक्षा नहीं दी जाती।

वसीम रिजवी का कहना है कि इन आयतों के कारण आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है।

वसीम रिजवी द्वारा उच्चतम न्यायालय में केस फ़ाइल किए जाने के बाद मुस्लिम समुदाय में गुस्सा छा गया है।  उनका सिर काट कर लाने की भी घोषणाएं होने लगी हैं। मुरादाबाद में राहत मोलाई कोमी एकता संगठन के एक कार्यक्रम में भी वसीम रिजवी का सिर काटने पर इनाम की घोषणा की गई  तो वहीं बार के पूर्व अध्यक्ष अमीरुल हसन ने रिजवी का सिर काटककर लाने वाले को 11 लाख रुपए देने का एलान किया है। यही नहीं इससे पहले भी शियाने हैदर-ए कर्रार वेलफेयर एसोसिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हसनैन जाफरी ने रिजवी का सिर कलम करने वाले को 20 हजार रुपये इनाम देने का ऐलान किया था।

हालांकि ऐसा लगता है जैसे वसीम रिजवी अपनी इस माँग को लेकर मुसीबत में आ गए हैं क्योंकि भारतीय जनता पार्टी द्वारा भी इस वक्तव्य का विरोध किया गया है। और पार्टी के मुस्लिम चेहरे श्री शहनवाज़ हुसैन ने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी ऐसे कदम का विरोध करती है

इस याचिका और मामले पर माननीय न्यायालय का रुख अत्यंत महत्वपूर्ण होगा क्योंकि शायद पूर्व में भी कुछ आयतों को लेकर विवाद न्यायालय तक पहुँच चुका है।

दैनिक जागरण में प्रकाशित एक ब्लॉग के अनुसार श्री इन्द्रसेन (तत्कालीन उपप्रधान हिन्दू महासभा दिल्ली) और राजकुमार ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ।प्र। 1966) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छापा जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा 153ए और 265ए के अन्तर्गत (एफ।आई।आर। 237/83यू/एस, 235ए, 1 पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) में मुकदमा चलाया गया।

परन्तु जब मामले की सुनवाई हुई तो मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने 31 जुलाई 1986 को फैसला सुनाते हुए लिखाः ”मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें 2,5,9,11 और 22 कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।”

तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- ”कुरान मजीद” की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।” (ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली 31.7.1986)

कुरान की चौबीस आयतें और उन पर दिल्ली कोर्ट का फैसला

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TAGGED: #QuranAyat, #wasimrizvi
Sonali Misra March 17, 2021
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Sonali Misra
Posted by Sonali Misra
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सोनाली मिश्रा स्वतंत्र अनुवादक एवं कहानीकार हैं। उनका एक कहानी संग्रह डेसडीमोना मरती नहीं काफी चर्चित रहा है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति कलाम पर लिखी गयी पुस्तक द पीपल्स प्रेसिडेंट का हिंदी अनुवाद किया है। साथ ही साथ वे कविताओं के अनुवाद पर भी काम कर रही हैं। सोनाली मिश्रा विभिन्न वेबसाइट्स एवं समाचार पत्रों के लिए स्त्री विषयक समस्याओं पर भी विभिन्न लेख लिखती हैं। आपने आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक किया है और इस समय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से कविता के अनुवाद पर शोध कर रही हैं। सोनाली की कहानियाँ दैनिक जागरण, जनसत्ता, कथादेश, परिकथा, निकट आदि पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
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