शत्रु विजय! कल रात का लाइव मैं व्यस्तता के कारण देख नहीं पाया था. अभी देखा. देख–समझ कर इस निष्कर्ष पे पहुंचा, कि मैं यति जी को अपना समर्थन जारी रखूंगा. विडियो के अंत में संदीप जी ने स्पष्ट किया कि उनका मार्ग भिन्न है और यति जी का मार्ग भिन्न है. ये बात सत्य है. यहां पर संदीप जी के मार्ग की और यति जी के मार्ग की आपस में तुलना नहीं की जानी चाहिए. दोनों मार्गों का अपना महत्व है. संदीप जी का मार्ग तो परम श्रेष्ठ है ही, पर यति जी का मार्ग हीन नहीं है. यति जी का मार्ग “आवश्यक” है. मुझे प्रसन्नता होती अगर यति जी को तुफैल जैसे निकृष्ट की आवश्यकता ना पड़ती, पर, उनका यथार्थ इस समय विकट है.
जैसे किसी पे अंधश्रद्धा उचित नहीं, वैसे ही किसी का अंधविरोध भी उचित नहीं. ग्रुप में कई बंधु अंधविरोध पर हैं. उन बंधुओ को मैं प्रेमपूर्वक समझाना चाहता हूं कि मित्र, धर्म को केवल पढ़ कर समझना कई बार पूर्ण नहीं होता, कई बार धर्म को ग्रंथों के साथ–साथ संसार के यथार्थों से भी समझना पड़ता है. आप जिस फोन/लैपटॉप का उपयोग कर टेलीग्राम चला रहे हैं इस फोन/लैपटॉप की निर्माण–प्रक्रिया से धर्म को हानि हो रही है, पर फिर भी आप (और मैं) इसका उपयोग कर रहे हैं क्योंकि इस अधर्म के माध्यम का उपयोग कर के धर्म की स्थापना करना और अधर्म का नाश करना हमारा उद्देश्य है. आपका नहीं पता पर मेरा तो यही उद्देश्य है. यति जी को अज्ञात स्थितियों की वजह से तुफैल जैसे निकृष्ट का उपयोग करना पड़ रहा है, पर ऐसा करने में यति का उद्देश्य धर्म की उपासना करना ही प्रतीत होता है.
यति जी कई विषयों में अभी अज्ञानी हैं, पर अज्ञानी अधर्मी कब से हो गया? वो अज्ञानी जो ज्ञान को प्राप्त करने की चेष्टा ना करता हो वो अधर्मी है. ज्ञान को प्राप्त करने हेतु सामान्य जनता को भूमि चाहिए, जो म्लेच्छो के कब्जे में जाती जा रही है. क्या इस भूमि को म्लेच्छो से रिक्त कर के सामान्य जनता को ज्ञानार्जन के लिए उपलब्ध कराना धर्म का कार्य नहीं? क्या इस युद्ध को छोड़ वो ध्यान में बैठने और अपने बाकी अज्ञान को ज्ञान में परिवर्तित करने “पहले” वन चले जाएं? इस समय पहले अपना बचा हुआ अज्ञान मिटाना आवश्यक है या उस अज्ञान को मिटाने जो भूमि चाहिए उस भूमि पे कब्जा करना आवश्यक है? आवश्यक दोनों हैं, पर अगर दोनों एक साथ उपस्थित हो जाएं तो पहले ज्ञान की माध्यम भूमि पे कब्जा करना पड़ेगा, फिर ज्ञान प्राप्ति हेतु ध्यान करना पड़ेगा. अज्ञान मिटाने में यति को कई जन्म लग सकते हैं, पर समाप्ति की चौखट पे खड़े भारत के पास इतना समय शेष नहीं बचा है. भूमि पे धर्मार्थ कब्जा करने हेतु जितना ज्ञान अनिवार्य है, वो संभवतः उनमें है. सामान्य जनता की अपेक्षाकृत अधिक अध्यात्मिक यात्रा किए हुए मनुष्य तो बिना भूमि के भी कदाचित ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, पर, सामान्य जनता हेतु भी किसी को कुछ करना पड़ेगा. *यहां भूमि का अर्थ भूमि/ग्रंथ/संपदा/संसाधन आदि है.
धर्म से विचलन अभी मुझे उनमें नहीं दिख रहा है. अज्ञान उनमें अवश्य दिख रहा है मुझे. मुझे इच्छा है कि पहले उनका अज्ञान मिटे और फिर वो युद्ध करें. पर अगर अज्ञान नहीं मिट पाया, और पहले युद्ध पे गए, तो भी मैं उनसे समर्थन वापिस नहीं खींच सकता. हां धर्म से विचलन होने पे मैं अवश्य उनसे समार्थन वापिस ले लूंगा, पर अभी वो विचलन मुझे नहीं दिख रहा. उस विचलन की सीमा तक आ गए हैं वो, पर सीमा लांघ कर विचलन घटित हुआ नहीं है अभी तक. ना हो यही मेरा आग्रह है.
अंत में वही प्रस्ताव जो हमेशा करता हूं –
उपरोक्त कमेंट मेरे वर्तमान के बोध/स्तर/यात्रा के अनुसार है. स्तर/बोध/यात्रा आगे बढ़ने पर यदि यह समझ में आया कि मैं इसमें कहीं गलत हूं, तो मैं स्वयं में सुधार करूंगा.