संदीप देव। ISDReport श्रृंखला में इस हेल्थ से जुड़ी खबर के कारण मुझे नोटिस की धमकियों का सामना करना पड़ा था। अप्रैल 2009 में यह नयी दुनिया अखबार के पहले पेज पर छपी थी। यहां लगाई कटिंग में भी आप देख सकते हैं कि पेन से अपनी याद के लिए मैंने लिख रखा है कि इस खबर के कारण मुझे क्या-क्या झेलना पड़ा था।
इसमें जो दवा कंपनी सरकारी और निजी अस्पतालों में फंगस लगी दवाओं की आपूर्ति कर रही थी वह काफी बड़ी दवा कंपनी थी। इसने वकील के रूप में मीनाक्षी लेखी को हायर किया था। यह वही मीनाक्षी लेखी हैं, जो बाद में नई दिल्ली से भाजपा की टिकट पर दो बार लोकसभा सांसद बनी।
इस रिपोर्ट के बाद मेरे प्रधान संपादक Alok Mehta सर ने मेरे मेट्रो एडिटर Ras Bihari ji से कहा कि दवा कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में उनकी वकील मीनाक्षी लेखी मिलना चाहती हैं। एक बार मिल लीजिए। यदि उचित लगे तो उनका पक्ष भी छाप दीजिए।
मैं और रासजी ली-मेरिडियन होटल पहुंचे। मीनाक्षी लेखी वहां अपने क्लाइंट के साथ हमारी प्रतीक्षा कर रही थीं। पहुंचते ही पहले चाय पूछा और फिर अपनी बातों से धमकी के अंदाज में हम पर चढ़ने लगीं। उन्होंने कहा, “कानूनी नोटिस भेजूंगी, फिर पता चलेगा इस खबर को छापने का मतलब।”
रास जी शांत व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा, “आपके क्लाइंट से बात करने की कोशिश संदीप ने की थी। उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। आप चाहें तो अपने क्लाइंट का वर्जन दे दीजिए, यदि उचित हुआ तो हम छाप देंगे।”
मैंने कहा, ‘मैडम, यह तो आप बता रही हैं कि आपके क्लाइंट का नाम क्या है? मैंने तो आपके क्लाइंट अर्थात दवा कंपनी का नाम इस खबर में छापा ही नहीं है! वैसे भी मैंने ड्राग कंट्रोलर ऑफ इंडिया और आपके क्लाइंट की कंपनी से बात करने के लिए बार-बार फोन किया था। हमारे पास इसका रिकार्ड है। दो दिनों तक इसके लिए खबर भी हमने रोकी थी कि कंपनी का पक्ष आ जाए, लेकिन जब आपके क्लाइंट का पक्ष नहीं आया तो हमने ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया में शिकायत करने वाले शिकायतकर्ता से बात कर खबर छापी है। विभिन्न सरकारी व निजी अस्पतालों में आपके क्लाइंट की कंपनी एक लाख बोतल दवा की आपूर्ति कर चुकी थी। यह तो शुक्र मनाइए कि कोई मरीज मरा नहीं, अन्यथा आज मैंने छापा है, कल देश भर की मीडिया इसे छाप रही होती।”
मेरे तर्कपूर्ण बयान से वह थोड़ी शांत हुई। फिर कहा, “आप बहुत चालाक रिपोर्टर हो। ऐसी खबर लिखी है कि ड्रग इंड्रस्टीज में सबको पता भी लग गया कि यह दवा किस कंपनी ने आपूर्ति की है और अखबार में उसका नाम भी नहीं आया।”
मैं मुस्कुराया। वह भी मस्कुराई। माहौल थोड़ा हल्का हुआ। मैंने कहा, “मेरे मेट्रो एडिटर कह ही रहे हैं कि आप अपने क्लाइंट का वर्जन दे दीजिए हम पब्लिश कर देंगे।” इसके बाद हम लोग वहां से निकल आए।
दो दिन बाद उस दवा कंपनी का कर्मचारी बयान लेकर आया। मैंने रख लिया, लेकिन छापा नहीं। मैं अपनी रिपोर्टिंग करियर में कभी धमकियों के आगे नहीं झुका। एक बार तो नजफगढ़ में कुछ बदमाशों ने मेरा अपहरण कर लिया था कि बड़ा रिपोर्टर बनते हो, लेकिन मैं डरा नहीं! वह एक बदमाश परिवार था और दैनिक जागरण में मेरी एक रिपोर्टिंग के कारण उसके परिवार का एक सदस्य पकड़ा गया था। इसीलिए गुस्से में था! 😁
तो खैर! फिर मीनाक्षी लेखी का फोन सीधे मेरे पास आया। उन्होंने कहा, “मैंने अपने क्लाइंट का बयान भेजा था। आपने छापा नहीं? क्या एडिटर से बात करूं?”
मैंने चतुराई बरतते हुए कहा, “मैम, अभी केवल ड्रग इंडस्ट्रीज आपके क्लाइंट का नाम जानती है। यदि मैं इनका बयान छापूंगा तो कंपनी का नाम अखबार में छपेगा, फिर पूरी दुनिया जान जाएगी। आपके क्लाइंट की बड़ी बदनामी होगी। आप कहिए तो कल छाप देता हूं?”
उन्होंने कहा, “रुको मैं इस पर विचार कर बाद में आपको फोन करती हूं।” फिर बाद में उनका फोन कभी नहीं आया और न ही उनके क्लाइंट का कोई कर्मचारी ही फिर हमारे कार्यालय आया! 🤣
रिपोर्टिंग हमेशा से एक चुनौती भरा काम रहा है। जब तक एक पत्रकार के जीवन में चुनौती न हो, पत्रकारिता का मजा नहीं है! मैंने पत्रकारिता का हमेशा आनंद उठाया है।