संदीप देव। “सामवेद का अनुवाद इकबाल दुर्रानी जैसे म्लेच्छ कर ही नहीं सकते!” आज इसकी अभद्र भाषा मेरे कहे को पुनः सत्य साबित करता है। मैंनै यास्काचार्य और सायणाचार्य के उस वचन को आधार बनाकर कहा था, जिसमें वेद के अध्ययन के लिए उन्होंने तीन आधार बताए हैं:- १) पारंपरिक शास्त्रीय ज्ञान २) तर्क विद्या ३) मनन-चिंतन की क्षमता। अब इस म्लेच्छ में जब यह तीनों ही नहीं है तो वह अनुवाद कैसे कर सकता है?

यह भी पढ़ें-फिल्म निर्माता द्वारा किये ‘सामवेद’ के उर्दू अनुवाद का विमोचन भागवत करेंगे
अब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा का वोट बैंक मजबूत करने के लिए जिस B Grade Films के निदेशक इकबाल दुर्रानी के द्वारा उर्दू में अनुवादित सामवेद का लोकार्पण किया, उसी कार्यक्रम में भागवत के समक्ष जरा महिलाओं के लिए उसकी भाषा सुन लीजिए और अनुमान लगा लीजिए कि उसने सामवेद के अनुवाद में कितना सत्यानाश किया होगा।