यह एक पत्रकार है, लेकिन बारीकी से देखिए तो सिर्फ मजहबी इनसान है। इसका नरेशन देखिए! एक झटके में हिंदुओं को भाई कहते हुए #कासगंज का मुख्य दंगाई और नफरत का सौदागर घोषित कर दिया, जबकि वहां हत्या एक चंदन गुप्ता की हुयी है और हत्यारोपी सलीम और उसका कुनबा दंगाईयों में शामिल है!
अब चिंता की बात देखिए। इसके ट्वीट को RT और Like करने वाले ज्यादातर हिंदू भाई ही हैं! वह केवल इस बात पर लहालोट हैं कि इसने दरगाह की दीवार बनवाने वालों को हिंदू भाई लिखा है! यह लहालोट होने वाले आखिरी लाइन पढ़ते पढ़ते पहली और बीच की लाइन भूल गये, जिसमें इसने अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुओं को दंगाई और नफरत का सौदागर लिखा है!
समस्या नरेशन समझने को लेकर है। वामपंथी और मजहबी नरेशन हमेशा ‘यूटोपियाई’ और मक्खन-मिश्री घुले शब्दों वाला होता है। और चूंकि हिंदुओं ने अपने शास्त्रों को लाल कपड़े में लपेट कर पूजा घर में रख छोड़ा है, इसलिए वह इनके नरेशन के जाल में आसानी से फंस जाते हैं!
गंगी-जमुनी तहजीब में गंगा इनके लिए ‘पवित्रता-बोध’ के साथ उपस्थित नहीं है, लेकिन आपके लिए यमुना किनारे स्थित एक मकबरा बेमिसाल मोहब्बत की निशानी बन जाता है! भले ही वह जिसकी याद में है, वह अपने शौहर के प्रेम से अधिक बच्चा जनने की मशीन बनकर रह गयी थी! वासना कब प्रेम बनी और प्रेम कब यादगार मकबरा बन गया; यह सब नरेशन ने कमाल किया है!
याद रखिए, रावण ने भी सीता का हरण साधु वेश में ही किया था! आज जो यह मजहबी पत्रकार दरगाह की दीवार बनाने के लिए आपको हिंदू भाई लिख रहा है न, राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ जाए तब भी यह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के विरोध में खड़ा मिलेगा! और तब इसके लिए आप भाई नहीं होंगे; होंगे सिर्फ भगवा, सांप्रदायिक, हिंदू गुंडे!