भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामलों में देश के कई हिस्सों में छापेमारी के बाद पांच शहरी नक्सलियों-गौतम नवलखा, वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनोन गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया गया। इनकी गिरफ्तारी के बाद हंगामा मच गया। पत्रकार के वेश में बैठे एक लुटियन बकैत ने तड़क से एक ब्लॉग लिखकर शहरी नक्सलियों को क्लीन चिट भी दे दिया! इस बकैत को अपने घर में अपने ही बड़े भाई द्वारा चलाए जा रहे सेक्स रैकेट का पता नहीं चला, लेकिन नक्सलियों की निर्दोषिता का पता तुरंत चल गया, ताज्जुब है! बहन का भ्रष्टाचार यह सूंघ नहीं पाया, लेकिन नक्सली सुधा भारद्वाज की जीवनशैली के अंदर तक झांक कर भी आ गया! यह है इस शहरी नक्सली बकैत की असलियत!
इसे बकैती नहीं तो और क्या कहेंगे, जो किसी प्रदेश की प्रशासनिक कार्रवाई को सीधे केंद्र सरकार से जोड़कर झूठा नैरेटिव सेट करने का प्रयास करे। जो किसी व्यक्ति की करतूत की वजह से पूरे पेशे को बदनाम करने की कोशिश करे। व्यवस्था को सेलेक्टिव रूप में ले। बकैत पांडे आज तक यही करता रहा। उसकी इसी बकैती की वजह से उसके न्यूज चैनल और उसके शो को दर्शक नहीं मिल रहा है। भीमा कोरेगांव हिंसा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की हत्या की साजिश के मामले में पुणे पुलिस ने पांच नक्सली समर्थकों को गिरफ्तार किया है। बकैत पांडे, बरबरा राव को 70 के दशक में जब इंदिरा ने गिरफ्तार करवाया तो क्या तब भी मोदी ही दोषी थे?
यहाँ लोगों को पता नहीं होता कि अपना भाई सेक्स रैकेट चलाता था और वो उनलोगों के नक्सली कनेक्शन न होने की गारेंटी ले रहे हैं जिनसे ठीक से 10 बार मिले नहीं होंगे।जांच हो जाने दीजिए न। कोई कमज़ोर लोग तो है नहीं जो पकड़े गए। यूँ ही कोई फंसा नहीं देगा उनको।न्याय व्यवस्था पर भरोसा रखिए
— Sushant Sinha (@SushantBSinha) August 29, 2018
यह मामला प्रादेशिक है न कि केंद्रीय। सभी की गिरफ्तारी व्यक्ति के रूप में हुई है पेशे के रूप में नहीं। बकैती करने से पहले बकैत पांडे को ध्यान रखना चाहिए कि गिरफ्तार लोगों में शामिल सुधा भारद्वाज 40 की आयु में वकील बनीं थीं, और आज उनकी आय लॉ शिक्षक के रूप मे हो रही। उनके दोषी होने या न होने का फैसला अदालत करेगी बकैत पांडे नहीं। बकैत पांडे ने जिस प्रशांत भूषण या अरुंधती राय के विचार से अपनी बात को पुष्ट करने का प्रयास किया है उसे खुद समझना चाहिए कि यहां मामला अभिव्यक्ति की नहीं बल्कि हिंसा को अंजाम देने तथा बड़ी साजिश रचने का है।
बकैत पांडे देखो! जिन शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी पर तुम बाप-बाप कर रहे हो, उसे तुम्हारे बाप यानी गांधी परिवार की सरकारों ने कितनी ही बार गिरफ्तार कराया है! चूंकि उस समय तुम राहुल के पीडी बने दुम हिला रहे थे और सोनिया की गोदी में खेल रहे थे, इसलिए चुप थे!
वरवरा राव
बकैत पांडे आज जिस कवि वरवरा राव के 70 साल की उम्र का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश में शामिल होने को खारिज कर रहे हो, उस समय कहां थे जब बुजुर्ग स्वामी असीमानंद को हिंदू आतंकवादी बताकर गिरफ्तार करने के बाद जेल में डाल दिया गया था? क्या उनकी उम्र तुम्हें आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने जैसी लगी थी?
इस वरवरा राव को 1975 और 1986 के बीच कई बार गिरफ्तार किया गया और फिर रिहा किया गया। 1986 में रामनगर कांड में उन्हें गिरफ्तार किया जा चुका है। राव को एक बार फिर आंध्र प्रदेश लोक सुरक्षा कानून के तहत 19 अगस्त 2005 को गिरफ्तार कर हैदराबाद के चंचलगुडा केन्द्र जेल में भेज दिया गया।
इस वरवरा राव को तो 70 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार, इंदिरा के बेटे और वर्तमान में तुम्हारे मालिक राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी और 2005 में सोनिया गांधी की मनमोहन सरकार भी गिरफ्तार करवा चुकी है। यानी यह शुरु से देशद्रोही रहा है। अब देशद्रोही बुजुर्ग साजिश नहीं रच सकता? ऐसा मानसिक दिवालियापन तुम्हारा ही हो सकता है?
अरुण फेरेरा
अरुण फरेरा कहने मुंबई में रहता है। कहने को वह मानवाधिकार कार्यकर्ता है, लेकिन असल में वह माओवादियों और आतंकवादियों का हित चिंतक है। उसे 2007 में प्रतिबंधित भाकपा माओवादी की प्रचार शाखा में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। देशद्रोह और अनलॉफल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट में वह चार साल की सजा भी भुगत चुका है। भीमा कोरेगांव हिंसा में गिरफ्तार सुधीर धवले के साथ मिलकर फरेरा काम करता था। 1993 के मुंबई बम धमाके के बाद वह आतंकवादियों के पक्ष में एक संस्था ‘देशभक्ति युवा मंच’ की आड़ में काम करने लगा था। यह संस्था माओवादियों की फ्रंट संस्था है।
वर्नोन गोंजाल्विस
वर्नोन गोंजाल्विस मुंबई के रूपारेल एवं एचआर कॉलेज में पूर्व लेक्चरर रह चुका है। जांच एजेंसियों के अनुसार, वह नक्सलियों की महाराष्ट्र राज्य समिति के पूर्व सविच और केंद्रीय कमेटी का पूर्व सदस्य है। इसे भी संदिग्ध गतिविधियों सहित 20 से अधिक मामलों में यह आरोपी है। इसे 2007 में भी गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद यह छह साल तक जेल में रहा। हालांकि बाद में साक्ष्य के अभाव में उसे बरी कर दिया गया था।
इन पांचों नक्सली समर्थकों की तो अभी गिरफ्तारी भी ठीक से नहीं हुई है, और फैसला अभी से सुनाने लगे। इसी को गलत नैरेटिव सेट करना कहते हैं। अभी तो मामला सामने आया है कई खुलासे होने हैं, मामला अदालत में जाएगा। अदालत फैसला करेगा कि कौन दोषी है और कौन निर्दोष, तब तक धैर्य तो रखो! अपनी बकैती से प्रशासनिक कार्रवाई को प्रभावित करने का प्रयास मत करो!
URL: left wing media establishing wrong narratives on arresting of 5 urban naxal
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