उन्हें अटल जी से नफरत करने की पूरी आजादी होनी जानी चाहिए! भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा देने के बाद भी देश में अभिव्यक्ति की आजादी को खतरे में बताने वाले, जितनी नफरत पैदा करेंगे, अटल के सपनों का भारत मजबूत होता जाएगा। भारत तेरे टूकड़े होगें गिरोह के लिए यह उतना ही विचलित करने वाला होगा। आखिर अटल भीष्म प्रतिज्ञा पूरा करने के बाद ही तो पंच तत्व में विलीन हुए हैं! अटल ने संसद के अंदर ही भीष्म प्रतिज्ञा लिया था, जब 1999 में उनकी 13 महीने की सरकार का अभिमन्यु की तरह वध किया गया था। महज एक वोट से अटल सरकार गिर गई क्योंकि असम के मुख्यमंत्री गिरधर गोमांग ने संसद से इस्तीफ़ा नहीं दिया था और किसी राज्य के मुख्यमंत्री रहते वो संसद की वोटिंग में हिस्सेदार हो गए।
अविश्वास प्रस्ताव जयललीता की पार्टी द्वारा समर्थन वापसी के कारण सामने आया था। अटल जी की जगह कोई और होता तो अविश्वास प्रस्ताव ही सामने नहीं आता क्योंकि बस उन्हें जयललिता की जिद्द पर उनके राजनीतिक विरोधी करुणानिधि की सरकार गिरा कर वहां राष्ट्रपति शासन ही तो लागू करना था। राजनीति में नैतिक मुल्यों का पालन करते हुए अटल जी ने जयललिता की जिद्द नहीं मानी थी। इसीलिए उनकी सरकार की राजनीतिक हत्या कर दी गई। जिसमें एक मुख्यमंत्री से भी वोटिंग करायी गई।
महज एक वोट से अटल सरकार गिर गई। वाजपेयी ने इसकी कल्पना नहीं की थी। तभी सदन में उन्होने कहा था कि सरकारें आएंगी, जाएंगी। पार्टियां बनेगी टूटेंगी। लेकिन ये देश बना रहना चाहिए। इस देश का लोकतंत्र बना रहना चाहिए। अपने उस भावुक भाषण में अटल जी ने कहा था “आज आपने साजिश कर जिस विचारधारा की हत्या की वह एक दिन पूरे देश की सत्ता पर काबिज होगा।” पूरी मजबूती के साथ। अटल जी को पता था कि वे कैसे शून्य से पार्टी को यहां तक लाए थे? 1999 में अटल जी की सरकार साजिश कर गिरा दी गई तो वे दुबारा चुनावी मैदान में गए और अपने गठबंधन के साथ बहुमत हासिल कर लिया। लेकिन पांच साल बाद ही इंडिया साइनिंग का नारा देने वाली अटल सरकार गिर गई। यह उनके लिए बेहद सदमें की बात थी। सदमा इस कदर था कि वो नौ साल तक लगभग कोमा में रहे। मौत को तब गले लगाया जब 1999 में एक वोट से गिरी सरकार के समय सदन में लिया गया उनका प्रण भीष्म की प्रतिज्ञा की तरह पूरा हो गया।
भीष्म की प्रतिज्ञा थी कि वे तभी मौत को गले लगाएंगे जब हस्तिनापुर सुरक्षित हाथों में होगा। हस्तिनापुर सुरक्षित हाथों में आने तक वे वाणो की शय्या पर लेटे रहे। मौत को गले तब लगाया जब हस्तिनापुर युधिष्ठिर के हाथों में सुरक्षित देख लिय़ा। आज का हस्तिनापुर आधुनिक भीष्म के उस शिष्य के हाथों में जिसे उन्होने श्मशान घाट से बुलाकर एक अशांत, प्रांत को संभालने के लिए भेजा था। देश में 29 राज्यों में से 22 राज्य में अटल जी के शागिर्द सरकार में हैं। भारत के राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति,लोकसभा और राज्यसभा के सभापति लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में अटल जी के ही शिष्य हैं। अटल का 1999 में एक वोट से गिराई गई सरकार के समय लिया गया प्रण पूरा हुआ और वें मौत को गले लगा गए।
भारत के टूकड़े करने का सपना देखने वालों के लिए यह किसी सदमें से कम नहीं है। इसीलिए जब अटल जी की मौत पर जब पूरी दुनिया नम आंखों से उन्हे विदा कर रही है वैसे में नफरत के सौदागरों द्वारा उन्हें, खलनायक साबित करने का प्रयास किया जा रहा है। वाजिब है जो देश को खंडित करने का सपना देख रहे हैं उनके लिए ‘अटल’ सपना साकार होते देखना सदमें जैसा है।
अटल के प्रति सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले कामरेड आमोखास हैं। वे कह रहे हैं वाजपेयी को महान वक्ता, कवि,लेखक, पत्रकार मानवातादी कैसे कहा जा सकता है जिसने गुजरात दंगा कराने वाले को सजा न देकर देश के सेकुलरिज्म को नष्ट किया। बाबरी मस्जिद को गिरवाया। नरसंहार करवाया। वे यह भी कहते हैं कि बाबरी मस्जिद को समतल करने वाले खुद समतल हो गए। जिसने भी जन्म लिया है उसे एक दिन समतल हो जाना है। वाजपेयी जी भी हो गए। वे भी हो जाएंगे जो नफरत के सौदागर हैं। देश ने एक राजनेता की अंतिम यात्रा में ऐसा जनसैलाव देखा जो कल्पना से परे था। उस यात्रा में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मुखिया पांच किलोमीटर पैदल चला। ऐसा समर्पण किसी आत्मा के सम्मान में हुआ हो याद नहीं आता।
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