आज के महाभारत में एकलव्य के संबंध में जो आपने देखा, यदि वह पहले से जानते रहते तो वामपंथियों के उस झूठ को काट सकते थे, जिसका उपयोग कर वह SC/ST वर्ग को हिंदू समाज से काटने का हमेशा प्रयत्न करते रहे हैं! आइए एकलव्य के अंगूठा दान का सत्य जानें:-
१) एकलव्य के पिता हिरण्यधनु हस्तिनापुर के शत्रु जरासंध के राज्य मगध के सेनापति थे।
२) जब एक वनवासी किसी राज्य का सेनापति हो सकता था तो फिर उसके शस्त्र विद्या सीखने की मनाही वाली बात झूठ साबित होती है।
३) एकलव्य का उदाहरण देकर वामपंथियों का यह तर्क की क्षत्रिय को आगे बढ़ाने के लिए शूद्र की बली ले ली गयी, झूठ है। असल में महाभारत काल में भी पद जन्म नहीं कर्म के आधार पर मिलता था, जिसका उदाहरण वनवासी हिरण्यधनु का मगध सेनापति होना साबित करता है।
४) गुरु द्रोणाचार्य हस्तिनापुर की रंगभूमि में साफ कहते हैं कि एकलव्य के वाण में मुझे भविष्य में हस्तिनापुर के लिए खतरा महसूस हो रहा था।
५) अर्थात् हस्तिनापुर के शत्रु देश के सेनापति के पुत्र को हस्तिनापुर का गुरु आखिर कैसे शिक्षा दे सकता था? यह अपने ही राज्य से द्रोह था। अब ‘भारत तेरे टुकड़े’ की सोच रखने वाले ‘पंचमक्कारों’ को यह द्रोह नहीं लगता तो यह उनकी मानसिक समस्या है।
६) गुरु द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य का अंगूठा मांगना जातिवाद का सूचक नहीं, राजनीति और कूटनीति का सूचक है।
७) एकलव्य और कर्ण दोनों ने अनजाने ही अपने-अपने गुरू को भ्रम में रखकर शिक्षा हासिल किया, जिस कारण दोनों को सजा मिली। यह उस काल की गुरु-शिष्य परंपरा की उच्च नैतिकता का द्योतक है। गुरू को जो भ्रम में रख सकता हो, उसके हाथ में ब्रह्मास्त्र थमा देना पूरी सभ्यता को खतरे में डालने के समान था। परशुराम और द्रोण दोनों ने इसका ध्यान रखा।
८) कर्ण को लेकर भी वामपंथियों ने आजतक गलत नरेशन चला रखा है।
९) कृपाचार्य कहते हैं कि रणभूमि में कोई भी किसी से लड़ सकता है, लेकिन रंगभूमि में क्षत्रिय केवल क्षत्रिय और राजा से ही मुकाबला कर सकता है। दुर्योधन के द्वारा अंग-राज बनाए जाने पर कर्ण की राह का रोड़ा हट जाता है, लेकिन सूर्यास्त के कारण अर्जुन से उसका मुकाबला नहीं हो पाता।
१०) कर्ण अंग-राज के रूप में हमेशा हस्तिनापुर की सभा में बैठता रहा, जिससे साबित होता है कि उस समय का समाज जन्म से अधिक कर्म को प्रधान मानता था।
वामपंथियों की साजिशों को आप अपने शास्त्र के ज्ञान से ही धाराशाई कर सकते हैं, शर्त बस इतना है कि अध्ययन-मनन-श्रवण लगातार करते रहिए। धन्यवाद।
Explained wonderfully
Even if considered Eklavya as sishya to Dronacharya the Guru Dakshina is correct as the relationship between Guru and Sishya is of Father and son. Keeping in view of Eklavya’s Life to be for ever in history with golden letters and for saving life from Kouravas and pandavas as Kshatriyas will never allow others to be mighty being the character of Kshatriya Dharma
हे ज्ञान के सागर, अगर द्रोणाचार्य को पता ही नहीं चलता की एकलव्य उनकी मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या सीख रहा है तब क्या होता?
कूटनीति और राजनीती के नाम पर द्रोणाचार्य ने जो पाप किया (चूतियापा किया आज के युग के हिसाब), अच्छा है सिर्फ अंगूठा माँगा, वो तो सर भी काट सकते थे। आप जैसे ज्ञान के सागर उसको भी जस्टिफाई करते। आपने कमेंट का ऑप्शन फेसबुक में अच्छा है बंद कर दिया है।
वैसे सुदर्शन चक्र कृष्ण को परशुराम ने नहीं दिया है (गलत दिखाया है महाभारत में) थोड़ा रिसर्च करते तो पता चल जाता की शिवजी ने नारायण को दिया था।
By the way, I am Kshatriya and not any mixed breed :)
Going ahead in MAHABHARAT war EAklavya fought on side of DURYODHANA n not on sode of ARJUN !! Thus proves the point
Idiot, Eklavya was a child that time, he joined Jarasandh after his thumb was taken.
Stop covering the cruel act of Dron. A Guru should never be like him who is biased and prefer favoritism. Go and read BORI Mahabharat first which is written after years of research unlike your stupid article based on your mentality.
In BORI, it’s clearly written that after watching Eklavya’s superior skill, Arjuna became depressed that he can’t be a greatest Archer anymore and taunted Drona about his promise to make Arjun a greatest archer. So so-called biased Guru took Eklavya’s thumb. Then your dHaRaMvEeR Arjun became Happy.
In Past times, Vanvasi and Shudra people treated like shit and You morons trying to justify their crimes by creating your stories, huh.. and because of this casteism/Varna vyavastha, our country is still behind other countries..
Not every thing was in History of India was great. You idiots call that a “Golden Era” when Shudra/Vanvasi didn’t have any rights and just Brahmin/Kshatriya we’re treated as Superior.
Welcome to the new Golden Age where everyone have equal rights. If you keep following some of yours old and stupid tradition, you won’t gonna come further.