तवलीन सिंह। वामपंथी बुद्धिजीवियों और जिहादियों के बीच एक अजीब हमदर्दी है, जो दुनिया भर में दिखती है, खासकर भारत में। सो, जब भी मैंने ध्यान दिलाने की कोशिश की है अपने किसी लेख में कि कश्मीर में हिंसा अब जिहादी किस्म की हो रही है, तो मुझे खूब गालियां सुननी पड़ती हैं। इसलिए अच्छा लगा जब पिछले हफ्ते कश्मीर के एक पूर्व उपमुख्यमंत्री ने यही बात कही। और भी अच्छा लगा, जब वर्तमान मुख्यमंत्री ने भी ‘तशद्दुद’ के खिलाफ आवाज उठाई, यह कहते हुए कि दुनिया के कई मुल्कों में तशद्दुद फैल गई है और इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ और न होगा। महबूबा मुफ्ती ने जिहादी शब्द इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन स्पष्ट किया कि उनका इशारा उन्हीं की तरफ है। साथ में यह भी कहा कि कुछ लोग कश्मीर घाटी के बच्चों को गुमराह कर रहे हैं।
पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर बेग ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब आंदोलन कश्मीर में सिर्फ आजादी के लिए नहीं चल रहा है, अब यह है कश्मीर को एक इस्लामी मुल्क बनाने के लिए। आगे यह भी कहा बेग साहब ने कि जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक पहुंच चुका है आइएस का असर तो इसको कश्मीर से दूर नहीं समझा जा सकता है। कश्मीर में ऐसी कट्टरपंथी इस्लामी ताकतें अगर पहुंच चुकी हैं, तो भारत की सुरक्षा को गंभीर खतरा है। इन जिहादी ताकतों को पराजित करना बहुत जरूरी है और ऐसा करना असंभव होगा, जब तक प्रधानमंत्री और भारत सरकार के अन्य मंत्री नई नीति तय करने के बदले अटल बिहारी वाजपेयी के उस पुराने ‘इंसानियत, कश्मीरियत, जम्हूरियत’ वाले नारे को दोहराते हैं। इन तीन शब्दों का खास मतलब था, जब अटलजी प्रधानमंत्री बने थे। कश्मीर घाटी उस समय दशक लंबे हिंसक दौर से गुजर कर निकल रही थी, जिसमें न इंसानियत थी, न जम्हूरियत। रही बात कश्मीरियत की, तो इसके नाम पर कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगा दिया था कश्मीरियत के मुसलिम ठेकेदारों ने।
आज की तारीख में कश्मीर की समस्या कुछ और है। बुरहान वानी किसी हिंसक दौर में पैदा नहीं हुआ था। उसका नाम मैंने पहली बार सुना पिछले साल, जब श्रीनगर में शांति का ऐसा माहौल था कि भारत के दूरदराज प्रांतों से टूरिस्ट आने शुरू हो गए थे। एक नई सरकार बनी थी इतने निष्पक्ष चुनावों के बाद कि भारतीय जनता पार्टी पहली बार इस गठबंधन सरकार का हिस्सा बन सकी थी। सो, कोई खास वजह नहीं थी बुरहान वानी को भारत के खिलाफ हथियारबंद होने की, इस्लाम के अलावा। अपने हर वीडियो में उसने स्पष्ट किया कि उसकी जिहाद अल्लाह के नाम पर है और हर वीडियो में कश्मीरी नौजवानों को इस जिहाद में शामिल होने के लिए उसने आग्रह किया। यानी न उसका अपना, न उसके साथियों का कोई वास्ता था उन पुराने अलगवादियों से, जो हुर्रियत में कई सालों से शामिल हैं।
गृहमंत्री इन लोगों से मिलने की बातें कर तो रहे हैं आजकल, लेकिन शायद उन्होंने गौर नहीं किया कि इनमें से एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो घाटी की वर्तमान हिंसा को रोक सकता है। सो, कौन रहनुमाई कर रहा है उन बच्चों की, जो कर्फ्यू में ढील देते ही निकल आते हैं सड़कों पर सुरक्षा कर्मियों पर पत्थरों से हमला करने? जो बहादुर पत्रकार अब भी घाटी से खबरें भेजने की हिम्मत रखते हैं, उनको थोड़ी-सी खोजी पत्रकारिता करके इन लोगों के नाम मालूम करने चाहिए। मुझे यकीन है कि जब इनके चेहरों से नकाब उतारे जाएंगे तो मालूम होगा कि इनके खास रिश्ते हैं पाकिस्तान में बैठे उन आतंकवादी तंजीमों से, जिनको पाकिस्तान के जरनैलों ने बनाया है सिर्फ इस मकसद से कि कश्मीर घाटी को भारत से अलग कर दिया जाए।
सो, भारत सरकार का अगला कदम क्या होना चाहिए? मेरा मानना है कि पहले एक नई नीति बननी चाहिए कश्मीर के लिए। इस नीति का एक अहम मुद्दा होना चाहिए आइएस जैसे जिहादियों की असलियत आम कश्मीरी लोगों के सामने पेश करना। क्या आम कश्मीरी चाहता है उस किस्म का निजाम, जिस तरह का आइएस की खिलाफत में लागू है? क्या आम कश्मीरी चाहता है कि औरतों का यह हाल कर दिया जाए कि जिनका चेहरा दिखता है हिजाब से उनको गोली मार दी जाए? क्या आम कश्मीरी चाहता है कि शरीअत की सजाएं नाफिज कर दी जाएं कश्मीर घाटी में? क्या आम कश्मीरी चाहता है कि कश्मीर घाटी बिल्कुल उस तरह बन जाए जैसे पाकिस्तान बन चुका है?
मुझे यकीन है कि इन चीजों को नहीं पसंद करते हैं कश्मीर घाटी के आम लोग। जैसे महबूबा मुफ्ती ने खुद स्वीकार किया पिछले हफ्ते कि घाटी के पंचानबे फीसद लोग अमन-शांति से ढूंढ़ना चाहते हैं कश्मीर की पुरानी राजनीतिक समस्याओं का समाधान। नई कश्मीर नीति जब बनेगी, उसका दूसरा अहम मुद्दा होना चाहिए भारत के प्रधानमंत्री को स्पष्ट करना कि कश्मीर के बारे में वे पाकिस्तान से बात करने को कभी तैयार नहीं होने वाले हैं। बातचीत का नया दौर अगर शुरू होता है हमारे पड़ोसी इस्लामी देश से तो सिर्फ उसके द्वारा फैलाई गई दहशत के बारे में बातचीत होनी चाहिए। साथ-साथ भारत सरकार को यह भी साबित करना होगा कि हम उन लोगों को दंडित करने की शक्ति रखते हैं, जो हमारे देश में आतंक फैलाने के बाद वापस जाकर पाकिस्तान में अपनी बिलों में छुप जाते हैं। इस बात को जब भी मैंने भारत सरकार के आला अधिकारियों के सामने उठाई, अक्सर जवाब मिला कि हमारे पास ऐसा करने की ताकत नहीं है। अब इस तरह के जवाब देने का समय गुजर गया। ताकत नहीं है, तो इसे पैदा करना होगा नई कश्मीर नीति बना कर।
साभार: जनसत्ता