छप्पन छेद, फटेहाल देश पाकिस्तान का प्रधानमंत्री एक अख़बार की रिपोर्ट पढ़ने के बाद महाशक्ति भारत को सहायता करने का हास्यापद प्रस्ताव देता है। अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 34 प्रतिशत घर खाने के लिए बिना मदद के एक सप्ताह से अधिक नहीं चल सकते हैं। क्या एक अख़बार की रिपोर्ट इतनी विश्वसनीय हो सकती है कि एक देश का प्रधानमंत्री उसके आधार पर भारत को मदद करने की बात कह दे और विश्वभर में उसके इस प्रस्ताव की हंसी उड़ाई जाए। पड़ोसी का ये हास्यापद प्रस्ताव हमें एक बार फिर ये देखने का मौक़ा देता है कि भारतीय मीडिया की इस प्रकरण में कितनी भूमिका हो सकती है और भारत में कौन है जो ऐसा सोचता है कि यहाँ के 34 प्रतिशत घरों में मदद के बिना एक सप्ताह में भुखमरी की नौबत आ सकती है।
जब इमरान खान भारत को मदद का प्रस्ताव दे रहे थे, उस समय तक पाकिस्तान में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़कर एक लाख बीस हज़ार हो चुकी थी। गुरुवार यानी कल ही आर्थिक समीक्षा की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान की जीडीपी में गिरावट आई है और अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। ये पाकिस्तान में पिछले 68 साल में आई सबसे बड़ी गिरावट है। पाकिस्तान में लॉकडाउन की वजह से ढाई लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है। यहा पौने दो करोड़ लोगों की नौकरी पर संकट है और भुखमरी सामने खड़ी है। पाकिस्तान में लॉकडाउन खोलने का निर्णय अर्थव्यवस्था को ढहने से रोकने के लिए लिया गया। आप देख सकते हैं कि वहां के हालात कितने भयावह हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने जिस अख़बार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए भारत को मदद का प्रस्ताव दिया, वह एक पाकिस्तानी अख़बार है और पाकिस्तान के अलावा न्यूयॉर्क से प्रकाशित होता है। ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने 10 जून को छपी खबर में जिस रिपोर्ट का हवाला दिया है, वह यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो और मुंबई की एक निजी संस्था की बनाई हुई है। Centre for Monitoring the Indian Economy (CMIE) की सबसे ख़ास बात ये है कि ‘द वॉयर’, लाइवमिंट। द इकोनॉमिक टाइम्स जैसे मीडिया संस्थान इसकी ही रिपोर्ट के आधार पर ख़बरें छापते हैं। ये कुछ भी स्पष्ट नहीं है कि CMIE की इन रिपोर्टों का आधार क्या होता है। जाहिर है कि इनकी रिपोर्ट इमरान खान जैसे प्रधानमंत्री के काम आती है।
सिर्फ यही संस्था क्यों, देश के और भी मीडिया संस्थान फर्जी ख़बरें प्रकाशित कर देश की छवि ख़राब करने की कोशिश कर रहे हैं। एनडीटीवी ने एक खबर प्रकाशित कर कहा है कि लॉकडाउन के कारण अरुणाचल प्रदेश के लोगों की हालत खराब हो रही है। राज्य में चावल की कमी है और लोग आजकल सांप खाने को मजबूर है लेकिन ये खबर झूठी पाई गई। ‘द वायर’ के प्रमुख सिद्धार्थ वरदराजन ने एक खबर शेयर करते हुए कहा कि पंजाब और हिमाचल की बॉर्डर रेखा के पास मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग भूखे मर रहे हैं लेकिन ये खबर भी झूठ साबित हुई थी।
स्पष्ट है कि केवल मीडिया संस्थान ही नहीं बल्कि CMIE जैसी संस्थाएं भी भारत विरोधी आचरण करती दिखाई दे रही हैं। कोरोना आपदाकाल में मीडिया को तो भारत का पक्षधर होना चाहिए लेकिन यहाँ तो मीडिया विपरीत ही चल रहा है। भारत सरकार ने देश के मीडिया को स्वतंत्रता देकर और उसके विरुद्ध कोई कड़ी कार्रवाई न कर उन्मुक्त मदमस्त हाथी बना दिया है, जो मद में अपना ही बगीचा उजाड़ने पर उतारू है। समस्या ये है कि महावत( प्रकाश जावड़ेकर) खुद इनकी मस्ती में मस्त हैं। उनको मीडिया का देश विरोधी आचरण दिखाई ही नहीं दे रहा है।
The man with begging bowl