बच्चों के लिए किताबों का निर्माण करने वाली संस्था एनसीईआरटी क्या हमारे बच्चों के मन में पढ़ाई के बजाय मनगढ़ंत कहानियाँ भरती है? और यदि मनगढ़ंत कहानियाँ ही उनके मन में भरी जा रही हैं तो यह कौन कर रहा है और वह भी राष्ट्रवादी सरकार की नाक के नीचे? एनसीईआरटी द्वारा पढ़ाई जा रही इतिहास की किताबों के कुछ उदाहरणों पर आइये हम नज़र डालते हैं।
शुरुआत करते हैं, हालिया विवाद की जिसमे कक्षा बारह की इतिहास की पुस्तक में यह दावा किया गया कि मुग़ल बादशाहों ने युद्ध के दौरान नष्ट हुए मंदिरों का दोबारा निर्माण कराया।
जब सूचना के अधिकार के तहत यह पूछा गया कि यह वाक्य किन प्रमाणों के आधार पर लिखा गया है, तो एनसीईआरटी ने उत्तर दिया कि इस बात के कोई साक्ष्य उनके पास नहीं हैं।
अब प्रश्न यहाँ पर यह उठता है कि जब कोई साक्ष्य ही नहीं हैं तो यह पंक्ति कैसे आ सकती है? क्या किसी खास एजेंडे के अंतर्गत यह हो रहा है, बच्चों के दिमाग के साथ खेला जा रहा है?
यदि हाँ, तो यह प्रश्न सरकार से अवश्य ही पूछे जाने चाहिए, कि एनसीईआरटी की इन पुस्तकों को तैयार करने की जिम्मेदारी जिनके पास है, क्या उनके पास ऐसी दृष्टि है जो भारतीयता को समझ सकें?
यदि पाठ्यपुस्तक निर्माण समिति पर नज़र डालेंगे तो यह पाएंगे कि जिन भी व्यक्तियों ने यह पुस्तक तैयार की, उनकी सोच तनिक भी भारतीय नहीं है, या कहें कि उनकी पूरी सोच वही वामपंथी सोच है, जो भारत को भारत नहीं मानती है।
सलाहकार समिति के अब तक अध्यक्ष रहे थे कोलकता विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर हरि वासुदेवन, जिन्होनें वर्ष 2005 से यह उत्तरदायित्व सम्हाला था, (याद रखा जाए वर्ष 2005) तथा उन्होंने सामाजिक विज्ञान पाठ्यपुस्तक सलाहकार समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए,
नीलाद्रि भट्टाचार्य, योगेन्द्र यादव, कुमकुम रॉय आदि के साथ इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र की एजेंडापरक किताबें तैयार करने में अपना योगदान दिया। कोरोना वायरस ने मई 2020 में उन्हें अपना शिकार बना लिया था।
जिन्हें भारतीय इतिहास के विषय में यह सब तैयार करने का उत्तरदायित्व दिया गया था, उनके पूरे बायोडाटा में कहीं भी भारतीय इतिहास परिलक्षित नहीं होता है।
उनकी विशेषता थी रूस और यूरोप का इतिहास और भारत-रूस सम्बन्ध। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अपना शोध किया था और वह वर्ष 1978 में कोलकता विश्वविद्यालय में यूरोपीय इतिहास के प्रोफ़ेसर थे।
हाँ, उनकी एक और पहचान है कि वह एशियाटिक सोसाइटी के साथ जुड़े थे और भारत और रूस के सम्बन्धों पर एशियाटिक सोसाइटी एवं मास्को इंस्टीटयूट ऑफ ओरिएंटल स्टडीज के लिए शोध कार्य किया था।
तथा Purabi Roy, Hari Vasudevan, Sobhanlal Datta Gupta (Eds), Indo-Russian Relations : 1917-1947.Select Documents from the Archives of the Russian Federation। Part I : 1917-1928 ; Part II : 1929-1947 (Calcutta : The Asiatic Society, 1999 and 2000) के नाम से दस्तावेज़ प्रकाशित हुए थे।
कोलकता विश्वविद्यालय में भी उपलब्ध उनके विवरण में कहीं पर भी यह एक भी शब्द नहीं है कि उन्होंने भारतीय इतिहास में कोई शोध पत्र भी प्रस्तुत किया हो, परन्तु उन्हें भारतीय इतिहास के पाठ्यपुस्तक निर्माण समिति का अध्यक्ष बना दिया गया।
यह माना जा सकता है कि यूपीए के शासनकाल में एक एजेंडा परक इतिहास प्रस्तुत करने के लिए प्रोफ़ेसर हरि वासुदेवन को यह पद प्रदान किया हो, जिन्होनें अपनी भूमिका का बखूबी निर्वाह किया,
परन्तु यह नहीं माना जा सकता कि कथित राष्ट्रवादी सरकार के आने के बाद भी हम लोग वही मनगढ़ंत इतिहास पढ़ते रहें, जिसका कोई साक्ष्य भी प्रस्तुत करने के लिए एनसीईआरटी तैयार नहीं है।
रूस के इतिहास में पारंगत व्यक्ति उस देश के इतिहास को अनुमोदन दे रहा था, जिस देश के विषय में उन्होंने एक लेख तक नहीं लिखा, या फिर पढ़ा भी हो।
फिर आते हैं, मुख्य सलाहकार नीलाद्रि भट्टाचार्य पर। नीलाद्रि भट्टाचार्य कक्षा 6 से कक्षा 12 तक की इतिहास की पुस्तकों के मुख्य सलाहकार हैं, और वह जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज (इतिहास अध्ययन केंद्र) में प्रोफ़ेसर रहे हैं।
वह अपने विद्यार्थियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और इस सरकार के आने के बाद उनके आज़ादी के कांसेप्ट के वीडियो यूट्यूब पर देखे जा सकते हैं।
इनकी एक और पहचान यह है कि उन्होंने बाबरी विवादास्पद ढाँचे को सही साबित करने के लिए भी एक लेख The Anatomy of a Confrontation, में Myth, History and the Politics of Ramjanmabhumi” नाम से लिखा था।
जिसमें वह स्पष्ट लिखते हैं कि इस बात के कोई भी प्रमाण नहीं प्राप्त होते कि बाबरी ढाँचे का निर्माण किसी राम मंदिर के अवशेषों पर किया था। वह पूरी तरह से भारतीय इतिहास को या कहें हिन्दू इतिहास को झूठ साबित करते हैं।
वह नीलाद्रि भट्टाचार्य जो यह कहते हैं कि वीएचपी मिथक को अपना सत्य प्रमाणित कर रही है और जो यह कहते हैं कि रामजन्मभूमि के कई मिथकीय इतिहासों को यह समझने की आवश्यकता है कि किस प्रकार मिथक, इतिहास और साम्प्रदायिक राजनीति एक जटिल रूप से परस्पर जुड़ी हुई हैं,
वही नीलाद्रि भट्टाचार्य एनसीईआरटी की इतिहास की उन किताबों के मुख्य सलाहकार हैं, जो कक्षा छ में ही कह देती हैं कि हमारा इतिहास चन्द्रगुप्त मौर्य से आरम्भ होता है, पर उससे पहले वह राजाओं का उल्लेख करते हुए अश्वमेघ यज्ञ के विषय में विष घोलना नहीं भूलती हैं।
इसके साथ ही मुख्य सलाहकार हैं कुमकुम रॉय! कुमकुम रॉय भी नीलाद्रि भट्टाचार्य के ही विभाग से हैं। उन्होंनें जो पुस्तकें लिखी हैं उन पर तो विस्तार में चर्चा हो सकती है,
परन्तु यहाँ पर यह ध्यान दिया जाना है कि एक इतिहासकार के रूप में भारत और संस्कृत के विषय में वह का सोचती हैं। हाल ही में भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति की घोषणा की थी।
उस शिक्षा नीति के लिए जो ड्राफ्ट में सुझाव मांगे गए थे, तो कुमकुम रॉय की क्या सोच थी? जब कहा गया कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, चाणक्य तथा कई अन्य विद्वान हुए हैं,
जिन्होनें महत्वपूर्ण योगदान दिया है, तो कुमकुम रॉय ने एक पेपर में लिखा था कि चरक गणितज्ञ नहीं थे और न ही सुश्रुत कोई खगोलविद नहीं थे, तो कैसे उन्हें विद्वान माना जा सकता है। इतना ही नहीं वह नई शिक्षा नीति को दलित और महिला विरोधी बता चुकी हैं।
यही कुमकुम रॉय कक्षा 6 से लेकर 12 तक एनसीईआरटी की पुस्तकों की सलाहकार हैं। कक्षा बारह की इतिहास की पुस्तक में एक और बात है जो ध्यान देने योग्य है, जिसे छलपूर्वक फैलाया गया है।
यह सभी को ज्ञात है कि सनातन में या कहें मनुस्मृति में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन है, जिसमें गन्धर्व विवाह, अर्थात प्रेम विवाह भी है। बड़ी ही चतुराई से यह तथ्य इस पुस्तक में छिपाकर केवल उन्हीं विवाहों का वर्णन किया है जिसमें वह हिन्दू समाज को पिछड़ा दिखा सकें।
सदस्यों की हालत भी कुछ अलग नहीं है, लगभग सभी सदस्य जवाहर लाल नेहरु या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, या फिर जामिया मिलिया से हैं। जिस अध्याय पर आरटीआई माँगी गयी थी और जिस झूठ पर कोई भी प्रमाण नहीं मिला है,
उसे भी जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के इतिहास अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफ़ेसर नजफ हैदर ने लिखा है, जिनका बायोडाटा चीख चीख कर मध्यकाल और मुगलों के प्रति उनके प्रेम को बता रहा है, और जिन्होनें यह सपाट झूठ लिखा, कि मुगलों ने मंदिरों का निर्माण कराया था। उनके पास एक भी सबूत नहीं है, कहाँ से सबूत होगा, जब हुआ ही नहीं।
प्रश्न यह है कि आखिर इतनी हिम्मत नजफ़ हैदर के पास कहाँ से आई कि उन्होंने यह सपाट झूठ लिखा। यह सत्य है कि किताबों में परिवर्तन 2005 के बाद आया था, परन्तु अब इस सरकार को आए हुए छ साल हो गए हैं,
क्या एक बार भी यह कदम उठाने की बात की गयी कि इस जहर को या इस झूठ को अब मिटाया जाए? क्या यह कहने की हिम्मत की जाए कि या तो भारत का इतिहास प्रस्तुत करें या फिर अपने अपने पद से हट जाएं?
पद से हटाना तो दूर, इस सरकार का शिक्षा विभाग, किसी सदस्य को छूने की हिम्मत भी नहीं कर सका है? तभी रामचन्द्र गुहा भी अभी तक सदस्य हैं, जो कहने के लिए इतिहासकार हैं, परन्तु उनके पास इतिहास की कोई भी डिग्री नहीं हैं। अर्थशास्त्र में स्नातक और परास्नातक होकर और संस्कृत का एक भी शब्द न जानने वाला व्यक्ति भारत में न केवल इतिहासकार हो सकता है बल्कि राष्ट्रवादी सरकार में भी बच्चों के लिए किताबें लिखने वाली समिति के सदस्य के रूप में अध्याय लिख सकता है।
तभी आज भी छोटे बच्चों के दिमाग में जहर घोलने वाली किताबें कक्षा छ से नहीं बल्कि कक्षा एक से हैं। कक्षा एक की हिंदी की किताब में बेसिरपैर की कविताएँ हैं, उनमें एक भी कविता ऐसी नहीं है जिसमें कोई सन्देश हो!
मजे की बात यह है कि जिस कक्षा एक की हिंदी की किताब में बुढ़िया के विषय में अपमानजनक कविता लिखी गयी है और स्त्रियों के शरीर पर अपमानजनक टिप्पणी जैसी कविता है,
उस पाठ्यपुस्तक निर्माण समिति की अध्यक्ष हैं अनिता रामपाल, जिनके एक भी लेख हिंदी में कहीं परिलक्षित नहीं होते हैं, वह छोटे बच्चों के लिए हिन्दी पाठ्यपुस्तक निर्माण समिति की अध्यक्ष हैं। और इसके साथ ही उन्होंने भी नई शिक्षानीति को जनविरोधी कहा है।
ये सभी नाम महज बानगी ही हैं, क्योंकि बच्चों के लिए किताबें तैयार करने में ऐसे ही लोग शामिल हैं, यही लोग मुख्य हैं, जिनके लिए भारत का आरम्भ मात्र मौर्य काल से आरम्भ होता है अर्थात बौद्ध धर्म से! यह वही लोग हैं,
जो हिन्दू नाम से इस हद तक घृणा करते हैं, कि उन्हें इतिहास से मिटा देना चाहते हैं, यह जानबूझ कर उल्लेख नहीं करते और यही घृणा बच्चों के मन में कक्षा एक से बैठते हैं। हमारे बच्चे समय पढ़ना चाहें तो वह उन्हें “वक्त” पढ़ाते हैं।
इनके हृदय में हिन्दुओं, संस्कृत, हमारी पूजा पद्धति, हमारी पहचान, हमारे खानपान, हमारे वस्त्रों, हमारी एक एक चीज़ के प्रति घृणा भरी है और दुखद यह है कि इस घृणा को लेकर इस राष्ट्रवादी सरकार के भी यह दुलारे हैं, बल्कि गर्व से मंत्री कहते हैं कि हमने एक भी व्यक्ति को समिति से निकाला नहीं है।”
यह गर्व से भरी उक्ति आपके मतदाताओं के साथ किया गया सबसे बड़ा छल है। यह वामपंथियों के सामने किया गया सबसे बड़ा समर्पण है, जो कहीं न कहीं कायरता को ही प्रदर्शित करता है। आपके सरकार नौनिहालों के भविष्य के साथ सबसे बड़ा खिलवाड़ कर रही है, और मतदाताओं के साथ छलावा!