विपुल रेगे। 70 वर्षीय रजनीकांत जीवन के उस पड़ाव पर हैं, जहाँ उनकी कोई फिल्म ब्लॉकबस्टर होना या दादा साहेब फाल्के के नाम का गौरवशाली पुरस्कार मिल जाने से उन्हें रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ेगा। उन्हें प्रभु ने जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार पहले ही दे रखा है। वह है अपार लोकप्रियता और दर्शकों का अमिट प्रेम। उनकी फिल्मों की रिलीज से पहले आज भी थलाइवा के विशाल पोस्टर को दूध से स्नान करवाया जाता है। वह एक जीवित किवंदती है। उसके नाम से सबसे अधिक चुटकुले बने हैं, जिनमे वह महामानव होता है। ऐसी छवि आज तक न किसी सितारे की बनी है और न कभी बन सकेगी।
इंटरनेट पर रजनीकांत के बारे में कई प्रश्न लाखों बार पूछे जा चुके हैं। उनमे से एक प्रचलित प्रश्न है रजनी को थलाइवा क्यों कहा जाता है? एक अख़बार ने तो इस प्रश्न के सत्तर कारण खोज निकाले थे कि उन्हें थलाइवा क्यों कहा जाता है। उनमे से कुछ कारण ऐसे थे ‘उन्हें डेमी गॉड की संज्ञा दी जाती है, उन्हें वर्सेटाइल अभिनेता माना जाता है, उन्होंने ही सौ करोड़ी क्लब की नींव रखी थी, उन्हें उनके लोकोपकार के लिए जाना जाता है।
इन सबमें मुझे सबसे सहज कारण दिखाई देता है, रजनी का लोकोपकार करना। Philanthropy को कई तरह से अनुवादित किया जा सकता है। लोकोपकार, मानव प्रेम, परोपकार, लोक कल्याण की भावना और मानव सौहार्द की बात होते ही हमें सहृदय रजनीकांत का मुखमंडल स्मरण हो आता है।
हर अभिनेता की ऑनस्क्रीन छवि और ऑफस्क्रीन छवि में धरती-आकाश का अंतर होता है लेकिन रजनी सर के मामले में ऐसा नहीं है। उनकी ऑनस्क्रीन छवि और ऑफस्क्रीन में कोई अंतर है ही नहीं। वह आपस में गड्डमड्ड हो चुकी है। जो रजनी फिल्म के बाहर है, वही फिल्म के अंदर भी होता है। छवियों के अंतराल को उन्होंने मिटा दिया है।
वह घटना याद आती है, जब सन 2007 में उनकी फिल्म शिवाजी ब्लॉकबस्टर हो गई। वे इतने खुश हुए कि वेश बदलकर मंदिर में दर्शन करने चले गए। वहां सीढ़ियों से उतरती एक महिला ने उनको भिखारी समझकर दस रुपये का नोट थमा दिया। उन्होंने वह नोट लिया और साथ में पैसे भगवान को अर्पित कर दिए। वह महिला उस समय मंदिर में ही थी।
उसने रजनी से क्षमा मांगी लेकिन रजनी ने कहा वे दस रुपये मेरे लिए बड़ा आशीर्वाद है। जैसा कि मैंने ऊपर लिखा, उन्होंने छवियों के अंतराल को ही मिटा दिया है। तमिलनाडु की जनता के बीच वे लगभग पांच दशक से हैं। उन्होंने बहुत सी ब्लॉकबस्टर फ़िल्में दी हैं। वे आज भी बॉक्स ऑफिस पर संभावनाएं जगाने की क्षमता रखते हैं।
वे इतने सहज हैं कि शूटिंग के अलावा कोई मेकअप नहीं करते। वे अपने गंजे सिर और लुंगी लपेटे सार्वजनिक समारोह में स्वाभाविकता के साथ चले जाते हैं। दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिलने के बाद रजनीकांत ने प्रशंसकों का विनम्र धन्यवाद दिया और अपने परममित्र राज बहादुर का भी आभार व्यक्त किया।
राज बहादुर उस बस के ड्राइवर थे, जिसमे रजनीकांत कभी कंडक्टर बनकर टिकट काटा करते थे। जीवन की पूर्णता उसकी सांझ में ही सिद्ध हो पाती है। बस से शुरू हुई रजनीकांत की यात्रा उस पहाड़ी नदी की भांति है, जो अनगिनत संघर्ष करने के बाद अब वृक्ष आच्छादित वन के सुंदर वातावरण में मंथर गति से प्रवाहमान है। कुछ समय मंथर गति से बहने के बाद ये फिर वेगवान होगी, क्योंकि थलाइवा के जीवन में राजनीतिक जलप्रपात आने को है।