आदित्य जैन। भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ी थी । क्योंकि दुर्योधन की जंघा तोड़ी ही जानी चाहिए थी। दुर्योधन ने द्रौपदी को अपमानित किया था। दुर्योधन ने अभिमन्यु की छल से हत्या की थी। दुर्योधन ने कुटिलता पूर्वक पांडवों को लाक्षा गृह में लगभग जला ही दिया था। दुर्योधन ने शांति दूत बनकर आए निहत्थे श्री कृष्ण को बंदी बनाकर कारावास में डालने की कोशिश की थी। दुर्योधन ने प्रत्येक स्थिति में नियमों और मर्यादाओं को ताक पर रख दिया था। आज भी समाज में दुर्योधन जैसे चरित्र मिल जाएंगे। दुर्योधन से मर्यादा पूर्वक लड़ाई नहीं करनी चाहिए। दुर्योधन की जंघा भीम की गदा से ही तोड़ी जानी चाहिए।
कुछ कुपढ़ गांधीवादी कहेंगे कि मर्यादाहीन व्यक्ति से मर्यादाहीन व्यवहार नहीं करना चाहिए। ये तो आंख के बदले आंख वाला दंड है। चोर को दंड देने के लिए उसके घर में चोरी करना है। अपराधी के साथ अपराध करना है। ऐसा करना तो अनैतिक है और फिर इसी तरह का राग अलापने लगेंगे। लेकिन सच तो यह है कि उनके राग में वास्तविकता का कोई भी सुर नहीं होगा। जंघा तोड़ने का तात्पर्य रणनीति परिवर्तन से है। दुर्योधन का चरित्र बहुत विशिष्ट है , वह कोई साधारण चोर या अपराधी नहीं है।
ऐसे व्यक्ति जो राजनीति , समाज में उच्च पदस्थ हैं। जिनके पास अपार शक्ति है । जो मर्यादा को बार – बार तोड़ते हैं ।जिनका उद्देश्य दूसरे का शोषण और अपने स्वार्थ की पूर्ति है , उनकी प्रवृत्ति दुर्योधन की है। ऐसे लोगों से लडने के लिए नियमों में परिवर्तन करना आवश्यक है। जैसे चीन की आर्थिक कूटनीति , जैव रासायनिक युद्ध, विचारधारा रूपी उपनिवेशवाद से जन्मे जेएनयू के राष्ट्र विरोधी बहकाए गए युवा, फिल्म इंडस्ट्री में मौजूद हरे टिड्डों के शक्तिशाली दलाल आदि दुर्योधन के ही प्रतीक हैं। इनसे भारत केवल सॉफ्ट पॉवर बनकर नहीं लड़ सकता। लड़ेगा तो हार निश्चित है। इनकी तो जंघा ही तोड़नी पड़ेगी ।
जंघा तोड़ने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार भीम ने गदा युद्ध के समय युद्ध के नियमों और रणनीति में परिवर्तन किया , वैसे ही वर्तमान समय में राष्ट्र में मौजूद पंच मक्कारों से निपटने के लिए सनातनी को अपनी रणनीति में परिवर्तन करना चाहिए । लुंजपुंज बनकर राष्ट्र विरोधी तत्त्वों का सामना नहीं किया जा सकता है और ” जंघा तोड़ना ” एक प्रतीक है। जो बताता है कि अब दुष्ट मर्यादाहीन व्यक्ति को उसी की भाषा में लठियाने और गदियाने ( गदा भांजना ) का वक्त आ गया है। आज की द्रौपदी को भी इन जेहादी बलात्कारियों की जंघा तोड़ने के लिए गदा युद्ध सीख लेना चाहिए। अर्थात आत्म रक्षा की तकनीकी का प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए।
ध्यातव्य है कि भीम ने श्री कृष्ण के कहने पर रणनीति बदली थी। श्री कृष्ण प्रतीक हैं – दीर्घकालिक दृष्टि रखने वाले इतिहास बोध से भरे हुए ऐसे व्यक्ति के जिन्हें तत्कालीन समाज और राजनीति के नग्न यथार्थ की समझ है। अगर हमें भीम बनना है तो श्री कृष्ण को भी पहचानना पड़ेगा । हमारे लिए कृष्ण की भूमिका में श्री संदीप देव जी जैसे सनातनी हिन्दू मौजूद हैं , जिनके मस्तिष्क में स्पष्टता, कर्मों में पराक्रम तथा हृदय में करुणा भी है। जो कम्युनिस्टों की कहानी भी जानते हैं । जिन्हें विषैले वामपंथ का तोड़ भी पता है और जो मार्क्सवाद के अर्द्ध सत्य को भी उजागर करते रहते हैं। जो साजिश की कहानी तथ्यों की जुबानी बताते हैं । जो सनातन के प्रतिनिधियों स्वामी रामदेव, योगी आदित्यनाथ और आशुतोष महराज जी की जीवनगाथा भी कहते हैं।
दुर्योधन के चरित्र की तरह ही आज भी आपको भीष्म जैसे चरित्र मिल जाएंगे । भीष्म यानि जिसने भगवान परशुराम से शस्त्र विद्या प्राप्त की है । भगवान परशुराम अर्थात अपने समय की महान व संसाधनों से भरपूर प्रशिक्षण शाला चलाने वाले गुरु, जिनके यहां से शिक्षा प्राप्त करना सभी योद्धाओं का स्वप्न होता है। भीष्म यानि जिसका संकल्प अटूट है। भीष्म यानि जो अपने राजा के लिए पूर्ण समर्पित है। भीष्म यानि जो न्याय की तरफ रहना चाहता है, लेकिन अपनी शपथ के कारण या व्यक्तित्व की अन्य किसी दुर्बलता के कारण अन्याय के साथ खड़ा हुआ है ।
आज भी कई सारे क्षमतावान सनातनी हिन्दू जानकर या अनजाने में वामियों और कामियों का ही साथ दे रहे हैं । वो भीष्म की तरह क्षमतावान भी हैं , और उनका समर्पण उनकी जवानी से ही मार्क्स – माओ – लेनिन के स्वप्नदर्शी आदर्श की ओर हो गया है , जिसे कभी पाया ही नहीं जा सकता है । यदि इनका समर्पण इस तिकड़ी के प्रति नहीं है तो कोई ना कोई छुपा हुआ पंच मक्कारी का रोग उन्हे लगा हुआ है। ऐसे भीष्म चरित्र के व्यक्ति में सनातनी बोध जगाना चाहिए।
उन्हें बताना चाहिए कि किसी भी राजा, विचारधारा के प्रति समर्पण करने से पहले जन कल्याण और राष्ट्र हित के पहलुओं पर चिंतन करना उनका प्राथमिक कर्तव्य है। क्या आपको पता है कि महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने से पहले युधिष्ठिर के आह्वान से कौरवों के पक्ष से लडने जा रहे युयुत्सु का बोध जागृत हो गया था। और उसने दुर्योधन का पक्ष त्यागकर पांडवों की तरफ से युद्ध किया था। आज भी लाखों युयुत्सु सनातन के आह्वान का इंतज़ार कर रहें है। आप आह्वान करें , वह सनातन के न्याय के साथ आकर खड़े हो जाएंगे।
कलियुग में या तो भीष्म जैसे चरित्र अपनी ग़लत प्रतिज्ञा को तोड़ेंगे या बाणों की शैय्या में सदा के लिए सोएंगे । अर्जुन जैसे चरित्रों को भीष्म जैसे चरित्रों का सामना करने के लिए शिखंडी कूटनीति को सीखना चाहिए । शिखंडी अर्थात समाज जिस पक्ष के लिए व्यक्ति का उपहास उड़ाए , उसे कमजोर माने ; उसी उपहास और उसी कमजोरी से नए अवसरों की तलाश करने की नीति । उन्ही व्यक्तियों से सहयोग प्राप्त करने के लिए आह्वान करना । मैं इस नीति के बारे में फिर कभी विस्तार से चर्चा करूंगा।
महाभारत का प्रत्येक पात्र वर्तमान समाज के व्यक्ति के मनोविज्ञान को प्रदर्शित करता है । प्रत्येक घटना किसी एक नीति की ओर संकेत करती है । महाभारत जितना जीवंत ग्रंथ दुनिया में कहीं नहीं है। गीता तो महाभारत का केवल एक हिस्सा मात्र है । महाभारत में ऐसा बहुत कुछ है , जिससे सनातनी हिन्दू सीख सकता है । महाभारत के विषय में कहा जाता है कि – ‘जो यहां है वह आपको संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जाएगा, जो यहां नहीं है वो संसार में आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा’ ।
प्रत्येक सनातनी को यह समझ लेना चाहिए कि भारत के आदर्श गांधी नहीं हैं। भारत की नीति गांधीवाद नहीं है । भारत के आदर्श परशुराम, राम, कृष्ण, गुरु गोविंद सिंह, महाराणा प्रताप, विवेकानंद, दयानंद, श्रद्धानंद, तिलक, सावरकर हैं। अहिंसा परम धर्म है। लेकिन धर्म अर्थात कर्तव्य व न्याय के लिए हिंसा भी आवश्यक है । (अहिंसा परमो धर्म:,धर्म हिंसा तथैव च ) । भारत को शौर्य , साहस व वीरता से युक्त युवा चाहिए । महाभारत में विदुर नीति कहती है
कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम् ।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत् ॥
जो जैसा करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करो । जो तुम्हारे साथ हिंसा करता है, तुम भी उसके प्रतिकार में उसकी हिंसा करो ! इसमें मैं कोई दोष नहीं मानता; क्योंकि शठ के साथ शठता ही करने में प्रतिद्वंदी पक्ष की भलाई है। भारत को सनातन नीति चाहिए। सनातन नीति के अंतर्गत अलग – अलग शत्रुओं के लिए अलग – अलग महापुरुषों की देश – काल – परिस्थिति – क्षमता विशिष्ट नीति आती है। विदुर नीति, कृष्ण नीति, चाणक्य नीति, परशु नीति आदि को भूलने के कारण ही 1000 वर्षों से अधिक समय तक हम गुलाम रहें। बकरे की तरह कटने की अपेक्षा सिंह की तरह दहाड़ना ज्यादा बेहतर है।
महाभारत घर – घर में होनी चाहिए , पढ़ी जानी चाहिए , समझी जानी चाहिए । दु: शासन, शकुनि, दुर्योधन, धृतराष्ट्र आदि सभी चरित्र आपको समाज व देश में मिल जाएंगे। इनको पहचाने और उनके गुण – धर्म – क्षमता के अनुसार ही उनको परास्त करने की रणनीति बनाए। इनका संहार होना ही चाहिए। इनकी पहचान और वैचारिक संहार तभी होगा जब भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रारम्भ होगा। इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण का शंखनाद अपने शास्त्रों के निहितार्थ को समझने से होगा । तो आइए सनातनी बोध को जागृत करें और कोई दुर्योधन जैसा चरित्र अपनी मर्यादा को तोड़ते हुए लगातार दुष्टता करे तो भीम की तरह ही गदा से उसकी जंघा तोड़ दें ।
उठाओ गदा , तोड़ दो जंघा !
दुष्ट पापी दुर्योधन की
उठाओ धनुष , चला दो तीर !
व्यभिचारी बालि पर
उठाओं सुदर्शन रण भूमि में !
तोड़ दो शपथ केशव की तरह
बढ़ाओ नाखून , फाड़ दो पेट !
हिरण्यकश्यप जैसे शैतानों का
जागृत करों स्वयं में ऋषभदेव !
जिन्होंने असि – मसि – कृषि सिखाया था
असि यानि युद्ध कला ,
मसि यानि लेखन कला ,
कृषि यानि पोषण कला ।
आइए स्वयं में भीम जगाएं !
आइए स्वयं में राम जगाएं !
आइए स्वयं में योगेश्वर जगाएं !
आइए स्वयं में नरसिंह जगाएं !
आइए स्वयं में दार्शनिक राजा जगाएं !
आइए हम चलते – फिरते सनातन बन जाएं।।
।। जय भारत , जय सनातन परंपरा ।।
।। जयतु जय जय पंचम वेद महाभारत ।।
( लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के गोल्ड मेडलिस्ट छात्र हैं । कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में अपने शोध पत्रों का वाचन भी कर चुके हैं। विश्व विख्यात संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के युवा आचार्य हैं । भारत सरकार द्वारा इन्हे योग शिक्षक के रूप में भी मान्यता मिली है । भारतीय दर्शन , इतिहास , संस्कृति , साहित्य , कविता , कहानियों तथा विभिन्न पुस्तकों को पढ़ने में इनकी विशेष रुचि है और यूट्यूब में पुस्तकों की समीक्षा भी करते हैं । )
लेखक आदित्य जैन
सीनियर रिसर्च फेलो
यूजीसी प्रयागराज
adianu1627@gmail.com