2017 में योगी आदित्यनाथ जब उप्र के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया। अवैध रूप से जितने भी बूचड़खाने चल रहे थे, उसे बंद कर दिया गया। इसके साल दो-साल बाद हिंदू किसान यह कहने लगे कि पशुओं के कत्लखाने बंद होने से आवारा पशुओं की संख्या बढ़ी है, जिसके कारण फसलों को नुकसान पहुंच रहा है।
मेरे पास भी इस पर खबर करने के लिए कई फोन आए कि आवारा पशु जब-तब खेत में घुसकर खेती को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मैं सोचता कि एक सनातनी मुख्यमंत्री ने कितना बड़ा निर्णय लिया, लेकिन हमारा हिंदू समाज ही अपने गोवंश के प्रति निर्मम है, तो दूसरों को दोष क्या दें?
इधर जब मैं अपने गांव में आया हुआ हूं तो देखा कि मेरे गांव के किसान खुले पशु से अपनी फसलों की सुरक्षा भी कर रहे हैं, और पशुपालन भी यहां ठीक-ठाक हो रहा है। खेतों को नेट से घेर दिया गया है, जिससे कोई पशु खेत में नहीं घुस पाता।
आम मवेशी तो गांव में हैं ही, आप नीचे की एक तस्वीर में मेरे गांव में नील गाय को विचरण करते भी देख सकते हैं, लेकिन वो खुले में चरती हैं, जाली वाली खेत के आसपास भी नहीं जाती। एक समय बिहार सरकार ने खेती को बचाने के लिए नील गायों को शूट करने का निर्मम आदेश तक दे दिया था!
यदि हमारे गांव के किसानों की तरह बुद्धिमत्ता का प्रयोग करें तो हमारी फसल भी बची रहेगी और पशुओं को मारना भी नहीं पड़ेगा।
एक आंकडे के मुताबिक एक गाय के मांस से 80 लोगों का पेट भरता है, परंतु वही गाय पूरे जीवन 400 से अधिक लोगों का पेट भरती है, लेकिन चंद हजार के लिए हिंदू ही अपनी बूढ़ी गाय माता को कसाई के हाथों बेच देता है! फिर धर्म कैसे बचे?
गो-वंश की रक्षा हमने छोड़ी, हमारे धर्म ने हमें छोड़ दिया। आधुनिक तरीकों से हम खेती भी सुरक्षित रख सकते हैं और दूध न देने वाली गाय के गोमुत्र, गोबर से स्वरोजगार भी विकसित कर सकते हैं। बस आवश्यकता है सनातनी दृष्टिकोण और आधुनिक तकनीक अपनाने की।