भारत उसकी संस्कृति और अकूत धन सम्पदा ने वर्षों से विदेशी आक्रांतों को भारत में आक्रमण के लिए प्रेरित किया। यूनान, तुर्क, अरब से आये विदेशी हमलावरों ने न केवल भारत की संस्कृति, वैभव और सम्पदा को लूटा बल्कि करोड़ों लोगों का नरसंहार भी किया। भारत की धरती को रक्तरंजित करने और गौरवशाली इतिहास को जितना तहस नहस मुस्लिम आक्रमणकारियों और मुग़ल साम्राज्य ने किया उतना शायद किसी ने नहीं किया! लेकिन भारत का दुर्भाग्य मानिये कि यहाँ के वामपंथी इतिहासकारोंऔर बुद्धिजीवियों ने भारत के रक्तरंजित इतिहास में आक्रांताओं और मुगलों की रक्तलोलुपता को अपनी स्याह स्याही से ढक दिया!
जानिये किस किस के आक्रमण और शासन काल में भारत में कितना रक्तपात हुआ :
महमूद ग़ज़नवी:- वर्ष 997 से 1030 तक बीस लाख लोगों को महमूद ग़ज़नवी ने क़त्ल किया और सात लाख पचास हज़ार लोगों को गुलाम बनाकर भारत से ले गया था, भारतीय इतिहास में सबसे ज्यादा(१७) बार भारत में आक्रमण के दौरान जिन्होंने भी इस्लाम कबूल कर लिया उन्हें शूद्र बना कर इस्लाम में शामिल कर लिया गया, इनमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तो थे ही!
कुतुबुद्दीन ऐबक:- (वर्ष 1206 से 1210 ) सिर्फ चार साल में बीस हजार भारतीय गुलाम राजा भीम से लिए और पचास हजार गुलाम कालिंजर के राजा से लिए थे जिन्होंने उनकी दासता स्वीकर नहीं की उनकी बस्तियों की बस्तियां उजाड़ दीं। गुलामों की अधिकता का यह आलम था की कि “गरीब से गरीब मुसलमान के पास भी सैंकड़ों हिन्दू गुलाम हुआ करते थे।”
इल्तुतमिश:- (वर्ष 1211-1236) इल्तुतमिश को जो भी मिलता था उसे गुलाम बना कर, उस पर इस्लाम थोप देता।
बलबन:- (1250-1260) ने राजाज्ञा निकाल दी थी कि 8 वर्ष से ऊपर का कोई भी आदमी मिले उसे मौत के घाट उतार दो। महिलाओं और लड़कियों वो गुलाम बना लिया करता था,बलबन ने भी शहर के शहर खाली कर दिए।
अलाउद्दीन ख़िलजी:- (1296 -1316) सोमनाथ की लूट के दौरान कम उम्र की 20000 हज़ार लड़कियों को दासी बनाया, और अपने शासन में इतने लड़के और लड़कियों को गुलाम बनाया कि गिनती लिखी नहीं जा सकती। उसने हज़ारों लोगों का क़त्ल किया! उसके गुलामखाने में पचास हजार लड़के थे जबकि सत्तर हजार गुलाम लगातार उसके लिए इमारतें बनाने का काम करते थे। ख़िलजी के समय का ज़िक्र आमिर खुसरो के शब्दों में इस प्रकार है “तुर्क चाहे जहाँ से हिंदुओं को उठा लेते और जहाँ चाहे बेच देते थे।”
मोहम्मद तुगलक:- (1325 -1351) इसके समय पर कैदियों और गुलामों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि रोज़ हज़ारों की संख्या में लोगों को कौड़ियों के दाम पर बेचे दिया जाता था।
फ़िरोज़ शाह तुगलक:- (1351 -1388 ) इसके पास एक लाख अस्सी हजार गुलाम थे जिसमे से चालीस हजार इसके महल की सुरक्षा में लगे हुए थे। तत्कालीन लेखक ‘ईब्न-बतूता’ लिखते हैं “क़त्ल करने और गुलाम बनाने की वज़ह से गांव के गांव खाली हो गए थे। गुलाम खरीदने और बेचने के लिए खुरासान ,गज़नी,कंधार,काबुल और समरकंद मुख्य मंडियां हुआ करती थीं। वहां पर इस्तांबुल,इराक और चीन से से भी गुलाम ला कर बेचे जाते थे।”
तैमूर लंग:- (1398-99 ) दिल्ली पर हमले के दौरान एक लाख बेगुनाह गुलामों को मौत के घाट उतारने के पश्चात, दो से ढ़ाई लाख कारीगर गुलाम बना कर समरकंद और मध्य एशिया ले गया।
सैय्यद वंश:- (1400-1451) हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं बदला, इसने कटिहार ,मालवा और अलवर को लूटा और जो पकड़ में आया उसे या तो मार दिया या गुलाम बना लिया।
लोधी वंश:– (1451-1525 ) इसके सुल्तान बहलूल ने नीमसार से हिन्दुओं का पूरी तरह से वंशनाश कर दिया और उसके बेटे सिकंदर लोधी ने यही हाल रीवां और ग्वालियर का किया।
मुग़ल राज्य (1525 -1707)
बाबर:- (1526-1530) बाबर,इतिहास में क़ुरान की कंठस्थ आयतों ,कत्लेआम और गुलाम बनाने के लिए ही जाना जाता है।
अकबर:- (1556 -1605) इतिहास कहता है, अकबर बहुत महान था लेकिन सच्चाई एक दम उलट है!जब चित्तोड़ ने इनकी सत्ता मानने से इंकार कर दिया तो अकबर ने तीस हजार काश्तकारों और आठ हजार राजपूतों को या तो मार दिया या गुलाम बना लिया! एक दिन अकबर ने भरी दोपहर में दो हजार कैदियों का सर कलम किया था। कहते हैं की इसने गुलाम प्रथा रोकने की बहुत कोशिश की फिर भी इसके हरम में पांच हजार महिलाएं थीं। इनके समय में ज्यादातर लड़कों को खासतौर पर बंगाल की तरफ से अपहरण किया जाता था और उन्हें हिजड़ा बना दिया जाता था। इसके मुख्य सेनापति अब्दुल्लाह खान उज़्बेग की अगर मानी जाये तो उसने पांच लाख पुरुषों को गुलाम बना कर मुसलमान बनाया और उसके हिसाब से क़यामत के दिन तक वह लोग एक करोड़ हो जायेंगे।
जहांगीर:- (1605 -1627)- जहांगीर के हिसाब से इनके पिता और इनके शासन काल में 5 से 6 लाख मूर्तिपूजकों का कत्ल किया गया और सिर्फ 1619-20 में ही इसने 2 लाख हिन्दू गुलामों को ईरान में बेचा दिया था।
शाहजहाँ:- (1628-658 ) इसके राज में बस इस्लाम ही कानून था, या तो मुसलमान बन जाओ या मौत के घाट उतर जाओ। आगरा में एक दिन इसने 4 हजार हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा था। जवान लड़कियां इसके हरम में भेज दी जाती थीं। इसके हरम में 8000 औरतें थी।
औरंगज़ेब:- (1658-1707) इसके बारे में तो बस इतना ही कहा जा सकता है की ,जब तक सवा मन जनेऊ नहीं तुलवा लेता था पानी नहीं पीता था। काशी मथुरा और अयोध्या इसी की देन हैं। मथुरा के मंदिर 200 सालों में बने थे इसने अपने 50 साल के शासन में मिट्टी में मिला दिए। गोलकुंडा में सन 1659 में बाईस हजार लड़कों को इसके द्वारा हिजड़ा बनाया गया।
फर्रुख्सियार:- (1713 -1719) यही शख्स है जो नेहरू परिवार को वजूद में लाया था, और गुरदासपुर में हजारों सिखों को मारा और गुलाम बनाया था।
नादिर शाह:- 1738 में भारत आया 200000 लोगों को मौत के घाट उतार कर हज़ारों सुन्दर लड़कियों को और बेशुमार दौलत ले कर चला गया।
अहमद शाह अब्दाली:- (1757–1761) पानीपत की लड़ाई में मराठा युद्ध के दौरान हज़ारों लोग मरे ,और एक बार में यह 22 हजार लोगों को गुलाम बना कर ले गया।
टीपू सुल्तान:- (1750 – 1799) त्रावणकोर के युद्ध में इसने 10 हजार हिन्दू और ईसाईयों को मारा था एक मुस्लिम किताब के हिसाब से कुर्ग में रहने वाले 70 हजार हिन्दुओं को इसने मुसलमान बनाया।
गुलाम हिन्दू चाहे मुसलमान बने या नहीं ,उन्हें नीचा दिखाने के लिए इनसे अस्तबलों का, हाथियों को रखने का, सिपाहियों के सेवक होने का और साफ सफाई करने के काम दिए जाते थे। उच्च वर्ण के जो लोग गुलाम नहीं बने और अपना धर्म न छोड़ने के फेर में जजिया और तमाम तरीके के कर चुकाते-चुकाते समाज में वैसे ही नीचे की पायदान, ‘शूद्रता’ पर पहुँच गए। जो आतताइयों से जान बचा कर जंगलों में भाग गए जिन्दा रहने के उन्होंने मांसाहार खाना शुरू कर दिया तत्कालीन प्रथा अनुसार अछूत घोषित हो गए।
हिन्दू धर्म में शूद्र कृत्यों वाले बहरूपिये आवरण ओढ़ कर इसे कुरूप न कर दें इसीलिए वर्णव्यवस्था कट्टर हुई!
सबसे पहला खतरा जो धर्म पर मंडराया था ,वो था मलेच्छों का हिन्दू धर्म में प्रवेश रोकना!जिसका जैसा वर्ण था वो उसी को बचाने लग गया। लड़कियां मुगलों के हरम में न जाएँ, इसलिए लड़की का जन्म अभिशाप लगा, छोटी उम्र में उनकी शादी इसलिए कर दी जाती थी कि सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इसका पति संभाले, मुसलमानों की गन्दी निगाह से बचने के लिए पर्दा प्रथा शुरू हो गयी। विवाहित महिलाएं पति के युद्ध में जाते ही दुशमनों के हाथों अपमानित होने से बचने के लिए जौहर करने लगीं, विधवा स्त्रियों को मालूम था की पति के मरने के बाद उनकी इज़्ज़त बचाने कोई नहीं आएगा इसलिए सती होने लगीं, जिन हिन्दुओं को घर से बेघर कर दिया गया उन्हें भी पेट पालने के लिए ठगी लूटमार का पेशा अख्तियार करना पड़ा। कोई अतिशियोक्ति नहीं कि इस पूरी प्रक्रिया में धर्म रूढ़िवादी हो गया या वर्तमान परिभाषा के हिसाब से उसमे विकृतियाँ आ गयी! मजबूरी थी वर्णों का कछुए की तरह खोल में सिकुड़ना! यहीं से वर्ण व्यवस्था का लचीलापन जो कि धर्मसम्मत था ख़त्म हो गया।
वैसे जब आप लोग डा. सविता माई(आंबेडकर की ब्राह्मण पत्नी) के संस्कारों को ज़बरदस्ती छुपा सकते हैं, जब आप लोग अपने पूर्वजो के बलिदान को याद नहीं रख सकते हैं जिनकी वजह से आप आज भी हिन्दू हैं!आज आप उन्मुक्त कण्ठ से ब्राह्मणो और क्षत्रिओं को गाली भी दे सकते हैं, जिनके पूर्वजों ने न जाने इस धर्म को ज़िंदा रखने के लिए क्या-क्या कष्ट सहे! आज आप भी अफगानिस्तान, सीरिया और इराक जैसे दिन भोग रहे होते। और आज जिस वर्णव्यवस्था में हम विभाजित हैं उसका श्रेय 1881 एवं 1902 की अंग्रेजों द्वारा कराई गयी जनगणना है जिसमें उन्होंने demographic segmentation को सरल बनाने के लिए हिंदु समाज को इन चार वर्णों में चिपका दिया।
भील, गोंड, सन्थाल और सभी आदिवासियों के पिछड़ेपन के लिए क्या वर्णव्यवस्था जिम्मेदार है? कौन ज़िम्मेदार है इस पूरे प्रकरण के लिए अनजाने या भूलवश धर्म में विकृतियाँ लाने वाले पंडित या उन्हें मजबूर करने वाले मुसलमान आक्रांता? या आपसे सच्चाई छुपाने वाले इतिहास के लेखक?
साभार: सुरेश व्यास
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