विपुल रेगे। कभी एक हिन्दू धार्मिक स्थल रही क़ुतुब मीनार ख़बरों में है। क़ुतुब मीनार परिसर में रखी गणेश की दो मूर्तियां केंद्र सरकार हटाना चाहती है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण ने कहा है कि वह गणेश जी की मूर्तियों को वहां से हटाना चाहता है। मीडिया रिपोर्ट्स बता रही है कि प्राधिकरण को इस बात से आपत्ति है कि गणेश की मूर्तियां क़ुतुब मीनार परिसर में रखी जाए। इस पर सोशल मीडिया उबाल खा रहा है। कभी-कभी सरकार के कुछ क्रियाकलाप समझ से बाहर होते हैं।
भारत की सरकारें स्वतंत्रता के बाद के सत्तर वर्ष में ये तय नहीं कर सकी कि भारत का अधिकृत इतिहास कितना सत्य है और कितना मनगढंत। क़ुतुब मीनार की तरह देश में सैकड़ों ऐसी पुरातात्विक संपत्तियां हैं, जिन पर अवैध कब्जे किये गए हैं। उन अवैध अतिक्रमणों में हम केवल राम मंदिर को मुक्त करा सके हैं और इसके लिए हमें सैकड़ों वर्ष संघर्ष करना पड़ा था।
मध्यप्रदेश के धार में भोजशाला विवाद आज तक नहीं सुलझ सका। महान राजा भोज द्वारा निर्मित भोजशाला पर अब अयोध्या जैसा विवाद है। यदि सरकार भोजशाला और क़ुतुब मीनार पर हिन्दू दावे को लेकर न्यायालय चली जाए तो निर्णय एकतरफा हिन्दुओं के पक्ष में होगा। जज साहब छोड़िये, आप एक आम आदमी को भोजशाला और क़ुतुब मीनार के भीतर ले जाइये, वह अपनी सामान्य समझ से इसको हिन्दुओं द्वारा निर्मित ही मानेगा।
आज भी भोजशाला और क़ुतुब मीनार की दीवारों और द्वारों पर हिन्दुओं के मांगलिक चिन्ह प्रमाण के रूप में हमारे सामने हैं। ऐसा कब तक रहेगा, कहा नहीं जा सकता। धार की भोजशाला में मांगलिक चिन्ह षड्यंत्रपूर्वक धीमे-धीमे साफ़ किये जा रहे हैं। कुछ वर्ष बाद न्यायालय में ये सिद्ध करना अत्यंत मुश्किल होगा कि भोजशाला भोज द्वारा बनाई गई थी। भोजशाला एक सनातनी विश्वविद्यालय हुआ करता था।
इस विश्वविद्यालय में संपूर्ण विश्व से विद्यार्थी ज्ञानार्जन के लिए आया करते थे। क़ुतुब मीनार अभी भारत के हिन्दू समुदाय के लिए ट्रेंडिंग विषय नहीं है और न ही भोजशाला हिंदूवादी पार्टियों के एजेंडे में कहीं दिखाई देती है। सन 2014 में नरेंद्र मोदी धार वासियों से वादा कर गए थे कि अवैध रुप से इंग्लैंड ले जाए गई माँ वाग्देवी की मूर्ति वे वापस लेकर आएँगे। आज उस वादे को आठ वर्ष होने आए हैं।
आज भी धार समेत मध्यप्रदेश के हिन्दुओं को वाग्देवी की प्रतीक्षा है। राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण के प्रमुख तरुण विजय ने कहा ‘ मैंने कुतुब मीनार का कई बार दौरा किया। हर बार के दौरे में मुझे यह इस बात का एहसास हुआ कि कुतुब मीनार भगवान गणेश की मूर्तियों के लिए सम्मानजनक स्थल नहीं है।’ उन्होंने कहा कि यहां भ्रमण के लिए आने वाले पर्यटकों के कदम के नजदीक ये दोनों मूर्तियां होती है।
इसलिए इन दोनों मूर्तियों को राष्ट्रीय संग्रहालय में रखने का आग्रह किया गया। तरुण विजय वहीं करने का प्रयास कर रहे हैं, जो प्रयास भोजशाला में मांगलिक चिन्ह मिटाने का किया जा रहा है। एक समय ऐसा आएगा, जब क़ुतुब मीनार की सच्ची कथाएं बस कथाएं ही बनकर रह जाने वाली है। आज पर्यटक वहां आते हैं और गणेश जी की मूर्तियों को देखते हैं तो उनके मन में प्रश्न उठते हैं।
तरुण विजय उस प्रश्न की हत्या कर देना चाहते हैं। क़ुतुब मीनार कुतुबुद्दीन ऐबक के जन्म से पहले से अस्तित्व में है। इसे विष्णु स्तम्भ कहा जाता था। इस स्तम्भ का उपयोग खगोलीय गणनाओं के लिए किया जाता था। कुतुबुद्दीन ने स्वयं लिखा है कि उसने विष्णु स्तम्भ को उजाड़ दिया था। उसने यहाँ के मंडपों को नष्ट कर दिया था। उसने कभी नहीं लिखा कि उसने दिल्ली में कोई मीनार का निर्माण करवाया था।
तरुण विजय जी, वैसे भी हमारी आधी से अधिक पुरातन धरोहरें म्यूजियम में ही धूल खाती पड़ी है। सैकड़ों सुंदर विग्रह पश्चिमी देशों के संग्रहालयों में बंदी बने पड़े हुए हैं। क्या तरुण विजय में साहस है कि वह ये कह सके कि गणेश मूर्तियों को क़ुतुब मीनार परिसर में ही विधि-विधान से स्थापित किया जाना चाहिए। जिस दिन आप लोग ऐसा साहस कर लेंगे, हमारे विग्रह स्वयं ही स्वतंत्र हो जाएंगे।