प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज। पैगम्बर मुहम्मद साहब की जीवनी उनकी मृत्यु के लगभग 100 साल बाद लिखी गई। कुरान का संग्रह और भी बाद में किया गया। जब उस्मान ने खुरासान में अपने कुछ लोग तैयार किये और खुरासान के तुर्कों से दोस्ती की। उसके बाद खुरासान के तुर्कों ने तथा अन्य पारसीकों ने कुरान का संग्रह करने का सुझाव दिया तब जगह-जगह से कुरान की जो आयतें लोगों को याद थीं वे लिख कर देने कहा गया क्योंकि पारसीक क्षेत्र में लेखन की पुरानी परंपरा थी। अरब में तो कुरान लिखी ही नहीं गई थी।
आयतें जो संकलित हुईं वे संख्या में बहुत अधिक थीं और अनेक आयतें एक दूसरे की विरोधीं थीं। तब खलीफा उस्मान ने अपने सलाहकारों के साथ मिलकर एक मानक संग्रह तैयार किया और शेष सभी संग्रहों को खारिज कर दिया। परंतु अन्य समूह उन अलग संग्रहों को ही प्रामाणिक मानते हैं।
कुरान को याद करने वाले को हाफिज कहा जाता है। परंतु आयतों को लेकर मुहम्मद साहब के बाद जीवित उनके साथियों (जिन्हें साहबा कहा जाता है) में मतभेद रहे। अलग-अलग व्याख्यायें की जाती रही हैं। स्वयं अबू बकर और इब्न अब्बास में भी आयतों की व्याख्याओं को लेकर जबर्दस्त मतभेद रहे हैं।
जिन्हें हदीस कहा जाता है, वे मुहम्मद साहब की मृत्यु के बहुत वर्षों बाद याददाश्त के बल पर मुहम्मद साहब के आचार व्यवहार का संस्मरण हैं। जिनमें परस्पर बहुत विरोध है। 3500 से अधिक हदीसें संकलित हुईं और तीन लाख से अधिक हदीसों के संग्रह में से छांटकर कुछ हदीसों को प्रामाणिक ठहराया गया।
नोट:- प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज के फेसबुक वॉल से साभार।