पुस्तक का नाम: हिमाचल टेम्पल्स एंड द बंगाल कनेक्शन: व्हाई टेम्पल्स ऑफ़ मंडी, कुल्लू रेसेम्ब्ल दिएर बंगाल कॉउंटरपार्ट्स
लेखक: मोनीदीपा डे बोस
प्रकाशक: गरुड़ प्रकाशन
भाषा: अंग्रेजी
पृष्ठ: 173
मूल्य: 299 प्रिंट
ट्वीट की गति से चलने वाले इस सोशल मीडिया के युग की बात ही निराली है। आज सब कुछ आपके एक क्लिक पर उपलब्ध है। दूरियां अब नजदीकियां बन गयीं है और जो अगम्य जैसा लगता था अब वो दर्शनीय तो हो ही गया है। सोशल मीडिया के अपने लाभ और हानियां हैं। लेकिन जब मंदिरों या तीर्थ स्थलों के परिप्रेक्ष्य में मैं इसे देखता हूँ तो मुझे अच्छा लगता है कि लोगों में मंदिरों के प्रति जिज्ञासा बढ़ी है। युवा वर्ग मंदिर दर्शन की ओर आकर्षित तो हुआ है। अब ये एक अलग विषय हो जायेगा कि वो लोग वहां जाकर क्या करते हैं। मंदिर दर्शन की इसी कड़ी में आता हैं मंदिरों से जुडी पुस्तकों का बाजार में आना। भारत मंदिरों की भूमि है और हर मंदिर अपने आप में अनुपम है, उसके साथ एक अनुपम कथा या मान्यता जुडी हुई है। भारत में चारों दिशाओं में मंदिरों के स्वरुप भी अलग-अलग मिलते हैं। लेकिन एक बात सामान्य है और वह है भगवान के प्रति श्रद्धा भाव। मंदिरों से जुडी अंग्रेजी भाषा में लिखी हुई एक पुस्तक मुझे मिली जिसका नाम है ‘हिमाचल टेम्पल्स एंड द बंगाल कनेक्शन: व्हाई टेम्पल्स ऑफ़ मंडी, कुल्लू रेसेम्ब्ल दिएर बंगाल कॉउंटरपार्ट्स’, पुस्तक की लेखिका है मोनीदीपा डे बोस और प्रकाशक है गरुड़ प्रकाशन।
यह पुस्तक हिमाचल के मंदिरों से जुड़ी है इसलिए मेरे लिए विशेष हो जाती है, क्योंकि मैं हिमाचल से हूँ। जिन मंदिरों के बारे में इस पुस्तक में वर्णन किया गया है वहां मैं दर्शन हेतु जा चुका हूँ। कोई भी पुस्तक कैसी होगी यह उसका प्राक्कथन बता देता है। इसलिए मैं एक आदत के रूप में प्राक्कथन बहुत ध्यान से पढ़ता हूँ। इस पुस्तक का प्राक्कथन सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और सुप्रसिद्ध लेखक आभास मल्दहियर ने लिखा है। आभास के प्राक्कथन की विशेषता है कि इन्होने अंग्रेजी भाषा का संस्कृतकरण या हिंदीकरण किया है। मतलब इन्होने अंग्रेजी के ‘टेम्पल’ शब्द की जगह ‘मंदिर’ शब्द का उपयोग किया है और भी ऐसे कई शब्द मिलेंगे। दूसरा रिलिजन और धर्म एक नहीं है इस बात को स्पष्ट करते हुए आभास ने बहुत सुंदरता के साथ अपना तर्क प्रस्तुत किया है। कुल मिलाकर पुस्तक का प्राक्कथन बहुत रोचक है। पाठक इसे बिल्कुल स्किप न करे।
लेखिका मोनीदीपा की इस पुस्तक में संदर्भों सहित 7 अध्याय हैं और कुल 173 पृष्ठ हैं। पुस्तक का पहला अध्याय आपको बताता है कि शास्त्रों के अनुसार हिन्दू मन्दिर का क्या अर्थ है। इसी अध्याय में वास्तुशास्त्र के अनुसार मंदिर निर्माण के 12 बिंदु बड़ी ही सरल भाषा में दिए गए हैं जो किसी भी मंदिर निर्माण में काम आ सकते हैं। दूसरे अध्याय में मंदिर निर्माण में वास्तुशास्त्र की भूमिका पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है और साथ ही साथ मंदिर निर्माण में कैसे पूजा अनुष्ठान करने चाहिए उन पर भी शास्त्र संगत प्रकाश डालने का उद्यम किया गया है। तीसरा अध्याय ‘बिल्डिंग ए हिन्दू टेम्पल’ मंदिर निर्माण के अनेक घटकों जैसे मंदिर गर्भगृह के प्रवेशद्वार, विद्याधर, गंदर्भ, अप्सरा, गण और मिथुन के साथ साथ कीर्तिमुख या सिंहमुख आदि की विशेषताओं का चित्रों सहित विस्तृत वर्णन किया गया है। सच कहूं तो ये महत्वपूर्ण जानकारी मुझे नहीं थी। अध्याय चार में हिन्दू मंदिरों के प्रकारों और प्रमुख भागों पर प्रकाश डालने का उत्कृष्ट प्रयास किया गया है। इस अध्याय में पाठक को हिन्दू मंदिरों के विविध प्रकारों अथवा स्वरूपों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी। पाठक यहाँ उत्तर भारत और दक्षिण भारत के मंदिरों के स्वरूपों को चित्रों और प्रमाणों सहित समझ सकते हैं। इस अध्याय में पाठक को नागर, द्रविड़, वेसर और कलिंग शैली के मंदिरों और उनके भागों या घटकों के बारे में सुंदर जानकारी मिलेगी।
पुस्तक के अगले 2 अध्याय हिमाचल प्रदेश के मंडी और कुल्लू जिला के मंदिरों पर विशेष रूप से केंद्रित हैं। यहाँ पर इन दोनों जिलों के मंदिरों का संबंध बंगाल के मंदिरों से जोड़ने का प्रयास भी किया गया है। जहाँ तक मंदिरों के स्वरुप और दर्शन संबंधी बात है तो लेखिका ने बहुत सुंदर तरीके से विषय का प्रस्तुतिकरण किया है। मुझे लगता है हिमाचल में बहुत कम लोगों को ये जानकारी होगी। लेकिन जहाँ तक बंगाल के पाल और सेन राजवंशों के लोगों का हिमाचल आकर स्थापित होना और मंदिर निर्माण कराने का लेखिका का दावा है, उस पर मैं अभी टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं हूँ क्योंकि मुझे इस विषय के बारे में कोई जानकारी नही है और मुझे अपने स्तर पर शोध करने की आवश्यकता महसूस हो रही है और साथ हिमाचल के संदर्भों या स्त्रोतों से पुष्टि करने की आवश्यकता भी लग रही है। भले ही लेखिका ने अपनी बात के लिए संदर्भ दिए हैं, लेकिन एक हिमाचली होने के नाते शायद ये मेरा पूर्वाग्रह है जो मुझे ये शोध अपने हिसाब से करने के लिए प्रेरित कर रहा है। मुझे ये भी लगता है कि शायद ही ऐसा शोध हुआ हो। तो इस बात के लिए लेखिका को हार्दिक आभार। सम्भव हुआ तो इस विषय पर काम करके लेखिका की बात की पुष्टि करूंगा। अगला अध्याय पुस्तक का निष्कर्ष है जो और भी रोचक है।
कुल मिलाकर, यह पुस्तक मंदिर निर्माण के विषय को हिमाचल के मंदिरों के आधार पर पाठकों तक पहुंचाने का एक उत्कृष्ट प्रयास है या यूँ कहूं तो गागर में सागर भरने का प्रयास है। मुझे लगता है जिनकों मंदिरों में रूचि है उन्हें यह पुस्तक जरूर पढ़ना चाहिए और हिमाचल के लोगों को तो अपरिहार्य रूप से पढ़ना चाहिए बल्कि मैं तो यहाँ तक कहूंगा कि अपने मित्रों को उपहार भी देना चाहिए। पुस्तक लेखन के ऐसे सार्थक प्रयास होने चाहिए तभी भारत उदय संभव हो पायेगा।
यह पुस्तक निम्न लिंक से प्राप्त की जा सकती है :