विपुल रेगे। शुक्रवार प्रदर्शित हुई ‘गणपत’ टिकट खिड़की पर औंधे मुंह गिर पड़ी है। पहले दिन फिल्म को औसत से कम प्रतिसाद मिला है। एक्शन स्टार टाइगर श्रॉफ की ये एक्शन थ्रिलर सिनेमाघरों में दर्शकों के लिए संघर्ष कर रही है। फिल्म निर्देशक विकास बहल ने इस दफा एक्शन-थ्रिलर में भाग्य आजमाने का प्रयास किया लेकिन इस जॉनर में विशेषज्ञ न होना उनके लिए नुकसानदेह रहा। तकनीकी दृष्टि से बहुत कमज़ोर ‘गणपत’ में गणेश को प्रतीक के रुप में इस्तेमाल करने की ट्रिक ने भी काम नहीं किया।
निर्देशक विकास बहल सामाजिक सरोकार वाली फ़िल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। विकास ने ‘सुपर 30’ और ‘क़्वीन’ जैसी उत्कृष्ट फ़िल्में बनाई है। हालाँकि एक्शन जॉनर में विकास नितांत अप्रभावी सिद्ध हुए। ‘गणपत’ को भारत की पहली डायस्टोपियन फिल्म कहकर प्रचारित किया गया है। डायस्टोपियन याने एक ऐसी भविष्य की दुनिया, जहाँ मानवों पर असीमित अत्याचार हो रहे हो। ‘गणपत’ दर्शक को ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहाँ परमाणु युद्ध के बाद अमीरों ने गरीबों की संपत्तियों पर आधिपत्य जमा लिया है। अमीरों और गरीबों की दुनिया के बीच बड़ी सी दीवार खींच दी गई है।
गरीबों के एक गुरु दलपति की भविष्यवाणी है कि एक ऐसा बच्चा जन्म लेगा, जो उन्हें इस भेदभाव से स्वतंत्र कराएगा। इस बच्चे का नाम ‘गणपत’ होगा। ये बच्चा किस्मत से अमीरों की दुनिया में पैदा हुआ है और उसे भविष्यवाणी के बारे में कुछ पता नहीं है। कहानी आगे बढ़ती है। गणपत एक दिन स्वयं को गरीबों के बीच पाता है। अब उसका लक्ष्य इस विश्व में समानता लाना है। विकास बहल की ये काल्पनिक दुनिया मुझे ‘मेड मैक्स’ फिल्मों की याद दिलाती है। ‘मेड मैक्स’ भी एक ऐसे संसार को रचती है, जहाँ भयंकर तबाही के बाद उच्च वर्ग ताकत का इस्तेमाल कर निम्न वर्ग पर अत्याचार करता है।
विकास बहल को एक्शन-थ्रिलर बनाने का अनुभव नहीं है। वे अब तक सामाजिक सरोकारों और प्रेम पर सॉफ्ट प्रस्तुतिकरण देते आए हैं। लिहाजा ‘गणपत’ एक स्तरहीन फिल्म बनकर रह जाती है। शुक्रवार सुबह से रिलीज के बाद सोशल मीडिया ‘गणपत’ के बचकाने वीएफएक्स और कम्प्यूटर ग्राफिक्स की छीछालेदर से भरा पड़ा है। कहा जा रहा है कि इतने सस्ते वीएफएक्स तो विवादित फिल्म ‘आदिपुरुष’ के भी नहीं थे। जब आप भविष्य का ऐसा काल्पनिक संसार रचते हैं तो बारीकियों पर ध्यान देना पड़ता है। यहाँ इतने घटिया किस्म के ग्राफिक्स और इफेक्ट्स प्रयोग किये गए हैं कि वह काल्पनिक संसार वास्तविकता का आभास नहीं दिला पाता।
पहले सीक्वेंस से लेकर आखिरी तक फिल्म बेदम और बेजान है। टाइगर के एक्शन सीक्वेंस फिल्म की यूएसपी बन सकते थे लेकिन यहाँ भी निर्देशक गलती कर गए। अधिकांश एक्शन रिंग के भीतर फिल्माए गए हैं और रिंग फाइटिंग एक हद तक जाकर उबाऊ लगने लगती है। यदि टाइगर को रिंग के बाहर अधिक एक्शन दिए जाते तो फिल्म औसत रुप से तो टिकट खिड़की पर सुरक्षित हो जाती। 200 करोड़ का ये दांव निर्माता वासु भागनानी को महंगा पड़ा। हालाँकि तकनीकी रुप से बहुत निचले स्तर की ‘गणपत’ की लागत पचास करोड़ भी नहीं होगी क्योंकि सस्ते वीएफएक्स सारी पोल खोले दे रहे हैं।
दर्शक को विकास बहल के काल्पनिक संसार की गहराई का आभास नहीं होता, तो उसका मुख्य कारण कम्प्यूटर ग्राफिक्स हैं। अभिनय की बात करें तो टाइगर श्रॉफ औसत रहे हैं। वे अपनी पिछली सफल फिल्म ‘वॉर’ से आगे नहीं बढ़ सके। एक जैसी एक्टिंग और एक जैसा एक्शन एकरसता लाने लगा है। दर्शक अब उनसे विविधतापूर्ण कैरेक्टर्स की उम्मीद लगाते हैं। कृति सेनन ने अच्छा अभिनय किया है। उनके कुछ एक्शन सीन अच्छे हैं। अमिताभ बच्चन का कैमियो फिल्म के वज़न में ज़रा भी इज़ाफ़ा नहीं कर सका। बच्चन का गेटअप बहुत कमज़ोर बनाया गया है। कथा का मुख्य विलेन सबसे आखिरी में परदे पर आता है और ज़रा भी आतंकित नहीं कर पाता।
निर्देशक ने अपने किरदारों की कैरेक्टर बिल्डिंग पर ध्यान ही नहीं दिया। स्क्रिप्ट, वीएफएक्स, कैरेक्टर बिल्डिंग और एक्शन फिल्म की कमज़ोर कड़ियाँ हैं। पहले दिन पहले शो में 7.42 प्रतिशत की ऑक्युपेंसी रही। पहले दिन फिल्म अधिक से अधिक पांच से दस करोड़ का कलेक्शन कर सकेगी। निष्कर्ष ये निकलता है कि विकास बहल और निर्माता वासु भगनानी एक अड़ियल घोड़े पर सवार हो गए। इस अड़ियल घोड़े की सवारी महंगी पड़ रही है।
घोड़े पर तो टाइगर श्रॉफ भी सवार थे, जिनको सबसे अधिक नुक़सान हुआ है। ये फिल्म अधिक से अधिक एक सप्ताह ही सर्वाइव कर सकेगी। इसके मुकाबले में दक्षिण के दो चीते भी मैदान में उतरे हैं। लोकेश कंगाराज की ‘लियो’ और वामसी की ‘टाइगर नागेश्वर राव’ बड़ी पैन इंडिया फ़िल्में हैं, जो हिन्दी डब होकर रिलीज हुई है। थलापति विजय की फैन फॉलोइंग हिन्दी पट्टी में अच्छी मानी जाती है और ‘टाइगर नागेश्वर राव’ के ज़रिये रवि तेजा पहली बार हिन्दी पट्टी से रुबरु हुए हैं। इन दोनों फिल्मों के बीच ‘गणपत’ सैंडविच बनकर रह जाएगी।