क्या होता यदि फिल्म निर्माता नीरज पांडे उत्तरप्रदेश के सिनौली को अपनी डाक्यूमेंट्री का विषय नहीं बनाते। संभवतः आधे से अधिक भारतवासी जान ही नहीं पाते कि हमने सिनौली के द्वारा अपने खोए इतिहास की कड़ियों को जोड़ने का काम सन 2005 से ही शुरु कर दिया था। सिनौली में उस रथ के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिसे विश्व कोरी कल्पना बताता था। फिल्म अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है। जो काम समाचारपत्रों के सैकड़ों समाचार न कर सके, वह काम ‘सीक्रेट्स ऑफ़ सिनौली’ के एक ही एपिसोड ने उत्कृष्ट ढंग से कर दिखाया है। भारत सोने की चिड़िया है और उसका एक स्वर्ण पंख सिनौली की माटी से निकल कर भारत के स्वर्णिम अतीत की कथा कह रहा है।
भारत के कुछ लोग मानते हैं कि आर्य आक्रमणकारी थे व बाहर से आए थे। सिनौली की खोज इस झूठे तथ्य को हमेशा के लिए दफन कर देगी। सिनौली में प्राप्त पुरा-अवशेष चार हज़ार साल से भी अधिक प्राचीन बताए जा रहे हैं। नीरज पांडे की ये सुंदर डाक्यूमेंट्री सिनौली की खोज को सिलसिलेवार ढंग से दर्शक के सामने रखती है।
डाक्यूमेंट्री के पहले एपिसोड में बताया गया कि सिनौली विश्व का एकमात्र ऐसा स्थल है, जहाँ पर अंतिम संस्कार के दो तरीकों के प्रमाण पाए गए हैं। यहाँ मृतकों का शवदाह किया जाता था और कुछ मृतकों को दफनाया भी जाता था। डाक्यूमेंट्री बिना भूमिका बांधे सीधे कथा में प्रवेश करती है। मनोज वाजपेयी बिना किसी औपचारिकता के दर्शक को चार हज़ार वर्ष प्राचीन भारत में ला खड़ा करते हैं।
डाक्यूमेंट्री का स्तर और प्रस्तुतिकरण बहुत भव्य है। मनोज वाजपेयी का चुटीलापन किसी भी प्रकार की बोरियत को स्थान नहीं लेने देता। कम्प्यूटर ग्राफिक्स और स्पेशल इफेक्ट्स विश्वस्तरीय होने का आभास देते हैं। निर्देशक ने डिस्कवरी चैनल की गरिमा के अनुरुप प्रस्तुतिकरण दिया है। दृश्य-श्रव्य माध्यम का यही प्रभाव है कि अब सिनौली पर चर्चा होगी। लोग जानेंगे कि सरकार ने इस खोज को सहेजने के लिए कौनसे आवश्यक कदम उठाए हैं।
किसी पुराविद को सितारे का दर्जा मिलते देखना इस देश में एक असंभव सा स्वप्न प्रतीत होता था लेकिन इस डाक्यूमेंट्री के कारण ऐसा संभव हो रहा है। सिनौली की ख़ोज ने अनेक रहस्यों का अनावरण किया है तो कई नए रहस्यों को जन्म दे दिया है। जैसे ये पता चलता है कि ये स्थल योद्धाओं के अंतिम संस्कार का था। यहाँ कई योद्धाओं को दफनाया गया था। उनके साथ उनकी तलवारें और रथों को भी रखा गया था।
रथों के अवशेषों को देखकर जो रोमांच मन में घुमड़ता है, वर्णित नहीं किया जा सकता। ये भी पता चला कि इस अज्ञात सभ्यता की स्त्रियां वीरोचित स्वभाव की थी। वे रण में जाकर अपना युद्ध कौशल दिखाती थी। यहाँ कई नारी कंकाल ऐसे मिले हैं, जिनके या तो हाथ या पैर गायब हैं। जैसे-जैसे खोज आगे बढ़ती जा रही है, पता चल रहा है कि इस पुरातात्विक साइट के आसपास के बहुत बड़े क्षेत्र में जमीन के नीचे बहुत कुछ दफन है।
यहाँ से एक सम्पूर्ण नगर मिलने की शक्तिशाली संभावना बन गई है। मुझे डाक्यूमेंट्री में ये देखकर बहुत ख़ुशी हुई कि एक कृषक अनुसंधान के लिए अपना पूरा खेत देने के लिए तैयार है। ये भी एक किसान है, जो देश का स्वर्णिम इतिहास सामने लाने के लिए अपनी भूमि का बलिदान सहर्ष करना चाहता है। सिनौली एक ऐसी उन्नत सभ्यता थी, जिसकी संस्कृति व लोक कलाएं मोहनजो-दारो से भी उन्नत थी।
यहाँ मिले रथ और तलवारों की तकनीक विश्व की किसी सभ्यता के पास नहीं थी। कितना रोचक है उनके समाज के बारे में जानना। एक ऐसा समाज, जहाँ स्त्री इतनी स्वतंत्र थी कि रणक्षेत्र में जाकर युद्ध का शंखनाद कर सकती थी। वह एक ऐसा उदारवादी समाज था, जो अंतिम संस्कार के लिए दो विधियों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता दे रहा था।
उनके अंतिम संस्कार के ढंग में वह दर्शन दिखाई देता है, जो ऋग्वेद के माध्यम से विश्व में प्रचारित और प्रसारित हुआ। नीरज पांडे की ये डाक्यूमेंट्री उस स्वर्ण पंख की कथा कह रही है, जो भारतवर्ष के अनगिनत स्वर्ण पंखों से झरा है। समय की रेत में दबा ये स्वर्ण पंख शताब्दियों तक प्रतीक्षारत रहा कि कोई उसे निकालकर उसकी कथा सुनेगा। नीरज पांडे और मनोज वाजपेयी के माध्यम से भारत उस कथा को सुन रहा है।