सुशांत सिंह राजपूत के पिता ने उनकी संदिग्ध हत्या के बाद कहा था कि किसी भी व्यक्ति ने उनके बेटे के नाम पर फिल्म बनाने या किताब लिखने का प्रयास किया तो क़ानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा। चेतावनी का उल्लंघन करते हुए एक फिल्म सुशांत की मौत के ठीक बाद शुरु कर दी गई थी। इस फिल्म का नाम ‘न्याय द जस्टिस’ है। उपरी तौर पर तो लगता है कि ये फिल्म सुशांत की मौत की पड़ताल करने वाली फिल्म होगी। फिर जब हम इसे बनाने वालों के बैकग्राउंड देखते हैं तो समझ आता है कि सुशांत की मौत की जाँच को प्रभावित करने के उद्देश्य से इस फिल्म का निर्माण किया गया है।
सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत पर एक निर्देशक दिलीप गुलाटी ने ‘न्याय: द जस्टिस’ फिल्म बनाई है। इसके निर्माता सरला सरावगी और राहुल शर्मा हैं। इस फिल्म को रोकने के लिए एक समाजसेवी मनीष मिश्रा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दो बार याचिका दायर की। एक बार दिसंबर 2020 में उन्होंने न्यायालय की शरण ली और दूसरी बार इसी माह में कोर्ट ने उनकी याचिका ठुकरा दी।
मनीष मिश्रा के वकील ने दलील दी थी कि ये फिल्म सुशांत सिंह राजपूत की प्रतिष्ठा को खराब करेगी और उनकी मौत की जाँच से संबंधित विकृत तथ्यों को प्रस्तुत करेगी। कोर्ट की ओर से मनीष मिश्रा को कहा गया कि बिना फिल्म देखे कैसे कहा जा सकता है कि ये सुशांत की प्रतिष्ठा को भंग करेगी। मनीष मिश्रा की चिंता में तथ्य छुपे हुए हैं। उनकी चिंता जायज़ है।
इस मामले को मुंबई में कार्यरत केंद्रीय एजेंसिया संभवतः देख नहीं सकी हैं। इस फिल्म के बैकग्राउंड से जुड़े लोगों की प्रोफाइल खंगालने के बाद मुझे ये मामला विचित्र और संदिग्ध दिखाई देता है। सबसे पहले फिल्म के निर्देशक दिलीप गुलाटी की बात करते हैं। दिलीप गुलाटी सन 1990 से फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में हैं। मिथुन चक्रवर्ती को लेकर उन्होंने पहली फिल्म बनाई थी।
उनकी तक़रीबन सभी फ़िल्में फ्लॉप हैं। दिलीप गुलाटी की किसी फिल्म ने उनको नाम नहीं दिलवाया है। आईएमडीबी रेटिंग रसातल में है। ऐसे निर्देशक को कौन निर्माता साइन करना चाहेगा, जिसकी फ़िल्में सिरे से पिटी हैं। निश्चय ही एसएसआर का प्रोजेक्ट फिल्म निर्माता के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा, तो उसने एक अच्छे नामी निर्देशक को साइन क्यों नहीं किया। क्या दिलीप गुलाटी नामक फिल्म निर्देशक केवल मोहरा है? जिसके कंधें पर बंदूक रखकर निशाना लगाया जा रहा है।
अब फिल्म के निर्माता को भी जान लीजिये। सरला सरावगी इस फिल्म की निर्माता हैं। सरला प्रसिद्ध वकील अशोक सरावगी की पत्नी हैं। अशोक सरावगी श्रुति मोदी के वकील हैं और उनकी ओर से सुशांत सिंह राजपूत की बहनों के विरुद्ध कोर्ट में लड़ रहे हैं। कनेक्शन के तार साफ़-साफ़ दिखाई देते हैं। याचिकाकर्ता मनीष मिश्रा की शंका को अकारण नहीं माना जा सकता।
अशोक सरावगी सक्रिय रुप से फिल्म निर्माण में शामिल रहे हैं। ये कैसे मान लिया जाए कि सुशांत की बहनों के विरुद्ध कोर्ट में लड़ने वाला, उनके और उनके परिवार को लेकर ऐसी फिल्म बनाएगा, जिससे उन्हें न्याय मिल सके। अशोक सरावगी के विभिन्न बयान आप न्यूज़ चैनलों की वेबसाइट पर जाकर पढ़ सकते हैं। इनमे एक बयान ये भी है कि ‘सुशांत तो फिल्म इंडस्ट्री छोड़ना चाहते थे।’ क्या ये तथ्य उन्होंने फिल्म में शामिल नहीं किया होगा, जो कि सिद्ध ही नहीं हुआ है।
वे तो ये भी कह चुके हैं कि सुशांत ड्रग्स का सेवन करते थे। अशोक सरावगी से इस फिल्म की नजदीकी सुशांत की प्रतिष्ठा पर आंच तो लाएगी ही, साथ ही केंद्रीय एजेंसियों की जाँच को प्रभावित करने का काम भी करेगी। केंद्रीय एजेंसियों को जाहिर है कि इस फिल्म के जरिये पकाई जा रही खिचड़ी की महक अब तक नहीं आई है। मामला बहुत गंभीर है।
कोर्ट में जज के समक्ष ये दलील दी गई थी कि अभी तक ये सिद्ध ही नहीं हुआ है कि सुशांत की मौत हत्या थी या आत्महत्या, फिर इस पर फिल्म बनाकर रिलीज कैसे की जा सकती है। सीधी सी बात है कि जो लोग सुशांत के परिवार के खिलाफ न्यायालय में हैं, वे उनके साथ क्या न्याय-द जस्टिस करेंगे।