फिल्म रिव्यू
कृष्णा एंड हिज लीला
इस फिल्म के साथ कृष्ण का नाम न जुड़ा होता तो ये औसत से भी कम प्रदर्शन करती। निर्देशक रविकांथ पेरेपु की फिल्म ‘कृष्णा एंड हिज लीला’ एक दोयम दर्जे की फिल्म है, जो केवल कृष्ण नाम होने के कारण चर्चा में है। फिल्म हिट करवाने के लिए विवादित बनाना आज के दौर का ट्रेंड बन चुका है।
कोई सामान्य सी फिल्म बनाओ और उसके टाइटल में भगवान का नाम जोड़ दो, फिर सामान्य फिल्म असामान्य हो जाएगी और मीडिया मुफ्त में आपकी फिल्म का प्रचार करेगा। सदमे की बात ये है कि सेक्स संबंधों पर बनी ये फिल्म विवादित हो जाने के कारण सबसे ऊपर ट्रेंड कर रही है, जबकि गुणवत्ता की कसौटी पर इसे समीक्षकों ने बेहद भंगार फिल्म बताया है।
कृष्णा सत्या नामक लड़की से प्रेम करता है लेकिन सत्या से उसके संबंध टिक नहीं पाते। सत्या से ब्रेकअप के बाद कृष्णा के जीवन में एक और लड़की राधा आती है। राधा से रिलेशनशिप आगे चले, उसके पहले ही सत्या उसके जीवन में फिर से लौट आती है।
अब राधा गर्भवती हो चुकी है और कृष्णा विवश होकर दो नाव में सफर करने को विवश हो जाता है। इस कहानी पर फिल्म बनेगी तो उसके चलने की उम्मीद आखिर कितनी होनी चाहिए। एक सामान्य कहानी कई बार फिल्मों में दोहराई जा चुकी है, उस पर कृष्ण का लेवल चिपकाकर बेचने की कोशिश की गई है।
दरअसल इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं था कि ये दर्शकों को पसंद आए। जबसे ओटीटी पर हिन्दी फिल्मों का प्रदर्शन शुरू हुआ है, लगभग 80 प्रतिशत कंटेंट एडल्ट दिया जा रहा है। दूसरी भाषाओं में बन रही फिल्मों का भी यही हाल है। अब तेलगु भाषा में भी ये गंदगी घुसा दी गई है।
जबकि इस भाषा की फ़िल्में हमारी संस्कृति को बढ़ावा देने वाली होती है। ‘कृष्णा एंड हिज लीला’ में न कुछ देखने योग्य है, न इस पर कुछ सकारात्मक रिव्यू दिया जा सकता है। हालांकि अंग्रेजी भाषा में लिखने वाले कुछ समीक्षक इसे ‘एक्सीलेंट’ बता रहे हैं। होता है। जब हिन्दू संस्कृति पर प्रहार करने वाली फ़िल्में बनाई जाती हैं तो अंग्रेज़ी दा समीक्षकों को बड़ी पसंद आती है।
सवाल ये उठता है कि निर्माता-निर्देशक ने फिल्म के किरदारों का नाम कृष्ण और राधा क्यों रखा। निश्चय ही इसके पीछे कृष्ण के चरित्र को लेकर जो विषवमन कई वर्षों से किया जा रहा है, जो जिम्मेदार है। फिल्म निर्देशक युवा पीढ़ी को बताते हैं कि कृष्ण रसिया थे।
अंग्रेज़ो और देश की बड़ी पार्टी से घूस खाकर कुछ इतिहासकारों ने ऐसा इतिहास लिख दिया, जिसमे हमारे पौराणिक नायकों को भ्रामक तथ्यों से अपमानित करने का प्रयास किया गया। झूठ का ये खेल पिछली सरकारों के कार्यकाल में जारी रहा और वर्तमान सरकार भी इस विषवमन को रोकने के लिए कुछ ठोस प्रयास नहीं कर पा रही है।
शर्म की बात है कि इस फिल्म के निर्माता राणा दग्गुबाती हैं, जो स्वयं एक हिन्दू अभिनेता हैं। राणा ने इस फिल्म से उठे विवाद पर सफाई देते हुए इसे निर्देशक का साहसिक कर्म बताया है। राणा ने कुछ समय पहले खुलासा किया था कि उनकी दायीं आँख बेकार है। वे इस आँख से नहीं देख सकते।
इस फिल्म के प्रदर्शित होने के बाद ऐसा लग रहा है कि शायद राणा अपनी दोनों आँखों से नहीं देख सकते हैं। देख सकते तो सोचते कि तेलगु भाषा का सिनेमा भारतीय संस्कृति के विरुद्ध रचनाकर्म नहीं करता है। विरोध के बाद उनके बेशर्मी से भरे बयान सुनकर निराशा ही हुई। उन्हें तो अपने प्रशंसकों से दंडवत होकर क्षमा मांगनी चाहिए।
कृष्णा एंड हिज लीला बनाने वाले राणा अगले कुछ माह में शादी करने जा रहे हैं जबकि उनकी फिल्म का नायक कुंवारा बाप बन जाता है। क्या राणा को अपनी फिल्म के नायक से प्रेरणा लेकर कुंवारा बाप नहीं बन जाना चाहिए। उन्हें अपनी होने वाली पत्नी मिहिका बजाज से इस बारे में बात करनी चाहिए। क्योंकि जो प्रेरणा वे देश के युवाओं को दे रहे हैं, क्या खुद उससे प्रेरित होकर कुंवारे पिता नहीं बन सकते। अभी उनकी शादी में वक्त है और उन्हें इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।
भारत के पौराणिक नायकों को लेकर युवा पीढ़ी में जो ज़हर बोया गया है, उसका ज्वलंत उदाहरण हिन्दुतान टाइम्स की रिपोर्टर श्रिष्टि जायसवाल हैं। उन्होंने इस फिल्म के बारे में ट्वीट करते हुए लिखा ‘कृष्ण वुमनाइजर थे’। पिछले तीस वर्षों में इतिहास और फिल्मों के जरिये जो विषवमन किया गया है, उसकी शिकार श्रिष्टि जैसी युवा पत्रकार हो रही हैं, जो वामपंथियों के इतिहास और बॉलीवुड की फ़िल्में देखकर श्रीकृष्ण के बारे में अपनी राय बना लेती हैं। इतना होने पर भी रिपोर्टर की नौकरी नहीं गई है, बल्कि उन्हें महज कुछ दिन के लिए निलंबित किया गया है।
ट्विटर उबल रहा है और भारत सरकार से इस मामले में दखल देने की मांग उठाई गई है। कुछ यूजर्स ने तो स्पष्ट रूप से सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा है कि इस सरकार के कार्यकाल में वे ऐसी उम्मीद नहीं करते थे। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर गंदगी परोसने का इल्जाम हम विदेश पर नहीं धर सकते, जिन्होंने हमे ये मंच प्रदान किया। उन्होंने तो कांच की ही बोतल दी थी, हमने गंगाजल की जगह दारू भर ली।