रामेश्वर मिश्र पंकज। 3 अप्रैल निर्मल वर्मा जी का जन्मदिन है और 4 अप्रैल अज्ञेय जी की पुण्य तिथि। दोनों तिथियां और दोनो विभूतियां बहुत महत्वपूर्ण रही हैं। दोनों में आयु में 18वषों का अंतर था। अज्ञेय जी बड़े थे।
निर्मल जी और अज्ञेय जी में रोचक समानताएं रहीं।दोनों कुल 75वर्ष का सुंदर जीवन जीकर 76वें वर्ष में गए। दोनों अंग्रेजी साहित्य के अच्छे अध्येता रहे और जानकार थे । दोनों पश्चिमी यूरोप वअमेरिका तथा सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप दोनों ही पक्षों के साहित्य के अध्येता रहे थे । अज्ञेय जी ने कम्युनिज्म से बहुत ही आरंभ में दूरी बना ली।पर पहले वे मानवेंद्र नाथ राय के अनुयायी बने और बाद में धीरे-धीरे भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसंधान और अध्ययन मनन में लग गए ।
निर्मल वर्मा ने हंगरी और चेकोस्लोवाकिया में कम्युनिस्टों की क्रूरता और नृशंसता देखने के बाद गहरे मानसिक और बुद्धिगत आघात से आहत होकर फिर सत्य की खोज में भारतीयता की ओर ध्यान दिया। अज्ञेय सहज बौद्धिक यात्रा में इधर बढ़ते चले गए। वे क्रांतिकारी देशभक्त थे। निर्मल कम्युनिस्ट थे। दोनो बाद में गहरे भारत बोध के साधक बने। दोनों में उच्च कोटि की सृजनात्मकता थी। बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि थी और लिखने की अपनी अलग-अलग शैली थी लेकिन दोनों हीसशक्त लेखक हैं ।
अज्ञेय जी तो महाकवि थे और उनकी कविताओं में भाषा का सौष्ठव और शिल्प का सौन्दर्य तथा विशेषता, उपमाओं की नवीनता और विलक्षणता तथा साथ ही देशज परंपरा के बोध से सम्पन्न चिरन्तन ताजगी है और आध्यात्मिक रहस्य की दीप्ति भी। वे महाकवि जयशंकर प्रसाद के परम प्रशंसक थे।प्रसाद निराला और पंत जी तथा महादेवी जी की भी अनेक कविताएं उन्हें स्मरण थीं। मैथिलीशरण गुप्त जी की भी तथा अन्य अनेक कवियों की कविताएं अज्ञेय जी को स्मरण थीं।
जेपी आंदोलन में वे खुलकर साथ आए। आपातकाल का उन्होंने खुलकर विरोध किया ।उन्होंने जेपी द्वारा निकाले जा रहे एवरीमेंस वीकली का संपादन किया और अपनी आदर्श निष्ठा के लिए अद्वितीय रहे। 1977 से ही उनमें गहरा बौद्धिक परिवर्तन आया।इसकी चर्चा हम लोग आपस में करते रहते थे।उन्होंने अपने पिताजी की स्मृति में एक व्याख्यानमाला शुरू की और जो उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान से राशि मिली थी उस समस्त राशि में कुछ और धन मिलकर वत्सल निधि की स्थापना की जिसमें इला डालमियाजी का बड़ा योगदान रहा ।
वत्सल निधि ने साहित्यिक यात्राएं आरंभ की ओर लेखक शिविरों का आयोजन किया जिनमे से कुछ में मैं भी उपस्थित था। वत्सल निधि के वार्षिक व्याख्यान 1980 से दिल्ली के बौध्दिक जगत में प्रचंड आकर्षण का केंद्र रहे और उनके प्रभाव से कम्युनिज्म तो बौद्धिकों के बीच पराया, बाहरी और अजनबी विचार बन गया जिससे केवल तिरस्कार का संबंध सम्भव है।
निर्मल वर्मा इन सब व्याख्यानों में सदा सहभागी रहे और हम लोग साथ ही जाते थे। गगन गिल उसी समय निर्मल जी के बहुत निकट आईं और फिर विवाह कर लिया। पहला वत्सल निधि व्याख्यान डॉ गोविंद चंद्र पांडे ने दिया जो स्वयं में एक अद्भुत व्याख्यान रहा जो भारतीयपरंपरा के मूल स्वर पर था।
दूसरा व्याख्यान डॉक्टर गोवर्धन राय शर्माका था और उसके बाद तो एक से एक बढ़ कर व्याख्यान होते रहे जिनमे दार्शनिक जड़ाऊ लाल मेहता, पण्डित विद्यानिवास मिश्र,डॉक्टर रमेशचंद्र शाह, समाजवैज्ञानिक अवध किशोर शरण आदि के व्याख्यान हुए। यह बौध्दिक नवजागरण का आधार बने।
इन्हीं दिनों दिल्ली में हमने गांधी शांति प्रतिष्ठान में भी बहुत सी बौद्धिक गतिविधियां शुरू की और दार्शनिक रामस्वरूप जी, अज्ञेय जी,इतिहासकार सीताराम गोयल जी तथा धर्मपाल जी , अबधकिशोर शरण जी,निर्मल वर्मा जी आदि उसमें निरंतर सहभागी बने।
निर्मल जी के गद्य में काव्यात्मकता है और सघन संवेदनशीलता है।उनके गद्य स्वयं में अनूठे हैं।
अज्ञेय जी ने तो श्रेष्ठ कविताएं भी बहुत लिखी और निबंध भी, कहानी भी उपन्यास भी और वे स्वयं एक बहुत बड़े संगठक भी थे। समीक्षक भी और अनूठे निबंधकार भी। सर्वप्रिय सर्व समादृत सहृदय सर्जक। दोनों महान विभूतियों का पुण्य स्मरण।