साक्षात्कार का आध्यात्मिक विश्लेषण-
- ऋषि सदृश्य जीवन- संन्यासी, दीवाली में पांच दिन के लिए एकांत वन में बस पीने के पानी के साथ गुजारना।
- सत्ता से निर्लिप्त- सैलरी कर्मचारियों के बच्चों के नाम, बैंक एकाउंट का कोई मोह नहीं, सेवानिवृत्ति का भाव- सत्ता में रहकर सत्ता से निर्लिप्त रहना।
- अपने परिवार को राज-काज से दूर रखना- मां, भाई पूरा परिवार दूर रहता है। एक भी सरकारी पैसा आज तक उनके परिवार में नहीं गया है, जबकि मोदी करीब 13 साल मुख्यमंत्री और पांच साल से प्रधानमंत्री हैं। मां कहती है, मेरे पीछे क्यों समय बर्बाद करता है। पूरा परिवार ही आदर्श है।
- योगी-राज- नींद पर नियंत्रण- लोग कहते हैं सात घंटे सोना चाहिए। अक्षय कुमार और बराक ओबामा ने भी यही कहा। लेकिन सनातन कहता है कि जिसका नींद पर नियंत्रण है, वही सच्चा योगी है। सनातन धर्म में योग-निद्रा का वर्णन है। अर्थात नींद में भी सजग रहना।
- परिव्राजक- घुमंतु जीवन, जिससे जीवन का अनुभव मिला। रेल में चाय बेचने के दौरान हिंदी भाषा सीखने को मिला। पूरा जीवन परिव्राजक की तरह भटकते रहने के कारण ही लोगों का दुख-दर्द मोदी समझ सके हैं।
- अलाउद्दीन का चिराग- शिक्षाविद, समाजशास्त्री के दिमाग से यह निकाल दें कि अलाउद्दीन का चिराग कुछ होता भी है। मेहनत करनी पड़ती है। अलाउद्दीन का चिराग-यह विचार बाहर से आयी हुई है। सनातन परंपरा कर्म के सिद्धांत पर जोर देता है न कि किसी ऐसे चिराग पर जिसे रगड़ते ही कुछ मिल जाए। कृष्ण चाहते तो क्या युद्ध एक बार मंे समाप्त नहीं होता? लेकिन महाभारत की लड़ाई 18 दिन चली।
राजनीतिक विश्लेषण-
विवेक ओबराय निर्मित मोदी की बायोपिक को चुनाव आयोग ने रोक दिया। लेकिन इस दौरान बायोग्राफी जो रिलीज हो रही है उसे नहीं रोका है। खासकर लालू यादव की बायोग्राफी को चुनाव आयोग ने अभी तक नहीं रोका है, जिसके आधार पर बिहार में जदयू-भाजपा गठबंधन को लेकर फेक नरेशन गढ़ा जा रहा है।
मोदी बायोपिक रोकने के बावजूद एक बाॅलिवुड अभिनेता के जरिए ही मोदी अपनी जीवनी को समाज तक ले आने में सफल रहे। यह लुटियन्स नौकरशाही को एक तरह से सबक देना था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सलेक्टिव नहीं हो सकता है।
मोदी ने चुनाव आयोग को एक तरह से इशारों-इशारों में बता दिया कि जो चीज राजनीतिक न हो, उसे केवल कुछ लोगों की शिकायत पर नहीं रोका जाना चाहिए। क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रत का हनन नहीं है?