
अमिताभ बच्चन को अपना व्यावसायिक साम्राज्य ढहता दिखाई दे रहा है
गत वर्ष 17 नवंबर को बार्क की रेटिंग में अमिताभ बच्चन का ‘कौन बनेगा करोड़पति’ को 3.9 की रेटिंग दी गई थी। गूगल की रेटिंग भी लगभग ऐसी ही दिखाई देती है। सोनी टीवी के ‘केबीसी’, ‘बिग बॉस’ और ‘द कपिल शर्मा शो’ की रेटिंग लगातार गिरती चली जा रही है। सोनी टीवी टॉप चैनलों की सूची से गायब हो चुका है। विगत आठ माह से स्टार उत्सव शीर्ष पर बना हुआ है।
इन रेटिंग्स में भविष्य की आहट मिल रही है। ये आहट सलमान खान ने भले न सुनी हो लेकिन अमिताभ को इसका अंदेशा हो चुका है। अमिताभ बच्चन की विनम्रता का चोला उस समय उतरना शुरू हुआ था, जब केबीसी के नए संस्करण की शुरुआत हो रही थी और देश में सुशांत प्रकरण ने ज़ोर पकड़ा हुआ था। अमिताभ बच्चन की इस मामले पर चुप्पी प्रशंसकों को बुरी तरह अखर गई थी।
उस समय से ही अमिताभ बच्चन के द्वितीय कॅरियर का पराभव शुरु हो गया था। देश के एक अख़बार के कॉलमनिस्ट ने एक बहुत अच्छी बात लिखी थी ‘सेलेब्रेटीज से इस बात की उम्मीद की जाती है कि वे अपनी बात पर खरे उतरे।’ मैं इसमें एक बात और जोड़ना चाहूंगा कि देश के ख्यात व्यक्ति ध्यान रखें कि लोगों के बीच उनकी छवि किस तरह की है। यदि वे अमिताभ बच्चन की तरह ‘एंग्री यंग मैन’ वाली छवि वाले हैं तो देश के ज्वलंत मुद्दों पर उनसे कुछ सुनने की अपेक्षा प्रशंसकों की होती है।
परदे पर बुरे लोगों को पीटने वाला रियल लाइफ के खलनायकों को लेकर चुप्पी साध लेता है। बस इसी पल से उसकी ‘एंग्री यंग मैन’ की इमेज में क्रेक पड़ना शुरु हो जाते हैं। आज उसकी दशा ये है कि अपने ट्वीट्स में वह आलोचकों की ‘औकात’ नाप रहा है। उनकी भाषाई विनम्रता की मिसाल दी जाती थी। और ये भी देखिये कि लाख आलोचनाओं के बाद भी ट्वीट अब तक कायम है। यानी वे इस बात को सही समझते हैं कि प्रशंसकों की इतनी औकात नहीं है कि वे उन्हें छू भी सके।
अमिताभ बच्चन को अपना व्यावसायिक साम्राज्य ढहता दिखाई दे रहा है। जब ये वाला साम्राज्य ढहने लगता है तो सारी विनम्रता किसी आकाशगंगा में चली जाती है। तेज़ी से गिरती लोकप्रियता, विज्ञापन के बाज़ार में छवि खराब होना, प्रशंसकों का आक्रामक होना अब उन्हें सहज नहीं कर पा रहा है। जब वे ‘औकात’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनकी महानायक वाली छवि चवन्नी छाप लगने लगती है।
मैंने पहले भी लिखा है कि बॉलीवुड के प्रति लोगों की घृणा को नापने का पैमाना न बच्चन जैसे लोगों के पास है और न केंद्र सरकार को इस घृणा के बलवती होते चले जाने का ज़रा भी अहसास है। पचास हज़ार करोड़ का उद्योग समाप्ति के मुहाने पर खड़ा है।
टाइटेनिक के निर्माताओं को अन्धविश्वास था कि समुद्र उसे कभी डूबा नहीं सकता। ऐसा ही अंध विश्वास बॉलीवुड पर सवार है। इस घृणा को प्रेम में बदला जा सकता था, यदि बॉलीवुड दर्शकों से सामूहिक क्षमा याचना कर लेता।
वह वचन देता कि ड्रग्स की गंदगी कला के क्षेत्र में पनपने नहीं दी जाएगी। यकीन मानिये लाखों लोग इन्हे दिल से माफ़ कर देते। लेकिन बच्चन और सलमान खान जैसे लोग दर्शक वर्ग को ही दुत्कार रहे हैं। इनको कोई जाकर बताए कि दर्शक अब इनसे सब वापस लेने वाला है। मैं भविष्य में बॉलीवुड को स्पष्ट रुप से ढहते हुए देख पा रहा हूँ।
दर्शक का गुस्सा अब घृणा में परिवर्तित हो चुका है। जब तक गुस्सा था, शांत किया जा सकता था। घृणा को शांत नहीं किया जा सकता। बच्चन जी संभवतः साल दो साल में राष्ट्रीय पटल से तिरोहत हो जाने वाले हैं। बस बचा रहेगा तो उनका ट्वीटर हैंडल और वह शब्द ‘औकात’।
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