पुस्तक का नाम: द ऑथेंटिक कंसेप्ट ऑफ शिव
लेखक: अंशुल पांडेय
प्रकाशक: गरुड़ प्रकाशन
मूल्य: 499 (प्रिंट)
मुंबई का नाम जैसे ही सुनते हैं तो मस्तिष्क में क्या आता है? सपनों की नगरी! बॉलीवुड, फ़िल्में, फिल्मों के गाने, समुद्र और भीड़-भाड़, शेयर मार्केट आदि। मेरे मस्तिष्क में तो यही छवि बनी हुई है। लेकिन इस छवि को इस बार भंग किया है ‘भारत के उभरते हुए लेखक’ इस टैग से चर्चित अंशुल पांडेय ने। अंशुल पांडेय की हाल ही में अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित “द ऑथेंटिक कंसेप्ट ऑफ शिव” अर्थात शिव की प्रामाणिक संकल्पना पुस्तक मुंबई की इस छवि को तोड़ने के लिए उत्प्रेरक है। दुनिया के लिए रंगीन सपनों की नगरी मुंबई का युवा भगवान् शिव पर हिन्दू शास्त्रों के आधार पर पुस्तक लिखेगा, मेरे मन में ऐसा विचार कभी नहीं आया था। खैर! मुंबई के अंशुल पांडेय ने पुस्तक लिखी है और भारत के सुप्रसिद्ध प्रकाशक गरुड़ प्रकाशन ने इस पुस्तक को छापा है।
यह पुस्तक अपने आप में अनेक विशिष्ट जानकारियाँ समायी हुई है। भगवान शिव से संबंधित बहुत से तथ्य ऐसे हैं जो सामने नही लाये गये है। दूसरे शब्दों में कहूं तो इस सत्य को स्वीकार करना अब अनिवार्य हो गया है कि कई बातें अब तक पता नही चल पायी हैं, जैसे कई लोग भगवान शिव को नशेड़ी, चरसी बताते है जबकि शस्त्रों में ऐसा कहीं भी वर्णित नहीं है। ऐसे और भी तथ्य हैं जिनकों उजागर करना आवश्यक है, अन्यथा हम कूपमंडूक ही बने रहेंगे।
पुस्तक का प्राक्कथन एक नहीं बल्कि तीन दिग्गजों ने लिखा है, जिनमें भारत के सुप्रसिद्ध लेखक आरवीएस मणि, और मनोज सिंह सम्मिलित हैं, वहीँ अमेरिका में सत्तोलोजी के संस्थापक आदित्य सत्संगी भी हैं। वहीं लेखक के गुरु का आशीर्वाद भी प्रकशित है।
गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन करने वाले अंशुल पांडेय की इस पुस्तक में लिखी कई बातें मुझे पता नही थी। इस पुस्तक में बहुत से रोचक तथ्य प्रकाश में आए हैं। भगवान शिव शाश्वत, अनादि-अनन्त, स्वयम्भू, आशुतोषः और औघड़दानी हैं। इन भोलेभंडारी के रूप तथा गुण के अनेक वर्णन भी किये गए हैं। प्रामाणिक स्त्रोत्रों से चयनित विषय लेकर लेखक अंशुल पांडेय ने यह पुस्तक लिखने का सार्थक प्रयास किया है। यह पुस्तक लेखक की प्रथम पुस्तक है। प्रथम अध्याय में लेखक ने वेदों की ऋचाओं का उल्लेख करके और उपनिषदों का प्रमाण देकर शिव का कालातीत होना सिद्ध किया है। दूसरे अध्याय में शिव लिंग स्वरूप होने की उत्पत्ति का वर्णन किया है। पुरुष और प्रकृति का भेद स्पष्ट करते हुए लेखक ने साकार और निराकार को महेश्वर भाव और ब्रह्म भाव से जोड़ा है और लिंग के अर्थ को प्रतिपादित करने का प्रयास किया है। तीसरे अध्याय में लेखक ने लिंगों के प्रकार और ब्रह्मा के कहने पर विश्वकर्मा ने किस देवता को कौन सी विशिष्ट वस्तु से लिंग निर्माण निर्देशित किये हैं, इस तथ्य को उजागर किया है। भगवान शिव के कितने अवतारों के बारे में हम लोग जानते हैं? इस प्रश्न का उत्तर लेखक ने चौथे अध्याय में सविस्तार से शिव के नब्बे से अधिक अवतारों की आश्चर्यजनक जानकारियां प्रदान करके दिया है। भगवान शिव के इतने अवतार होने की शायद किसी ने कल्पना नहीं की होगी। यह अध्याय इस पुस्तक की रीढ़ है। यह संकल्पना ही पुस्तक का मुख्य आकर्षण है। मैं समझता हूं कि इन सब तथ्यों को एकत्र करने में बहुत समय और परिश्रम लगा होगा। शिव पुराण में वर्णित अवतारों के अतिरिक्त कई अवतार दूसरे पुराणों से ढूंढकर निकाले गए हैं और इस पुस्तक में उनको संजोया गया है।
इस पुस्तक में आदि शंकराचार्य और गोरखनाथ को शिव अवतार बताया गया है। जोगी अवतार, हरिहर अवतार भी शायद बहुत कम जगह वर्णित है। इसी पाठ में भगवान विष्णु के उनतीस अवतार भी दर्शाए गए हैं। जिनमे पाठक मुंडी और चैतन्य महाप्रभु के अवतार देखकर आश्चर्य चकित हो सकता है। पांचवे अध्याय में शिव को योग शास्त्र का उन्नायक कहा गया है। उसमें भी विशेष तौर से महेश्वर योग का वर्णन है। इसीलिए शिव योगेश्वर भी हैं। योग के अंतिम सोपान पर पहुंचने के नियम भी बताए गए हैं। छठां अध्याय पशुपतिनाथ को समर्पित है। स्कंद पुराण मे लिखा है कि शिव देवताओं से कहते हैं जब उन्हें पशुओं का नाथ बनाया जाएगा तब कहीं जाकर वे त्रिपुर का विनाश कर सकते हैं।
अभिनव गुप्त ने नाट्य शास्त्र का अभिवर्धन किया पर इस शास्त्र के रचयिता तो महादेव ही है। सातवें अध्याय में नटराज महादेव को ही नटराज कहा गया है, भरत मुनि ने अपनी पुस्तक नाट्य शास्त्र में इस कला के आरम्भ होने का वर्णन ब्रह्मा जी द्वारा चार वेदों से तथ्य निकालकर नाट्य वेद की रचना की बात की है जिसमे भरत मुनि के पुत्र और अप्सराएं नाट्य प्रदर्शित करती हैं पर वहां नृत्य का अभाव खटकता है। प्रदोष काल में किया गया शिव का नृत्य पहला नृत्य है। उसके बाद नृत्य नाटिका का विकास होने लगा।
आठवें अध्याय में शिव को मनसादेवी और परशुराम के गुरु के रूप में वर्णित किया गया है। नौवें अध्याय में जलन्धर और अंधक के अलावा मंगल और ज्वर को भी शिवांश कहा गया है। ऐसी जानकारी शायद बहुत कम लोगों के पास ही होगी। दसवें अध्याय में शिव को ही अघोर पंथ का संस्थापक माना गया है। काशी में कपाल मोचन में अयोनिज पैदा हुए वेद निधि भैरव के रूप में शिव ही जाने गए। ग्यारहवें अध्याय में त्रिदेव में प्रत्येक का महत्व प्रतिपादित किया है। सभी बराबर और समान रूप से वन्दनीय हैं। बारहवां अध्याय बहुत रोचक है जिसमें पाठक भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र शिव से प्राप्त होने के बारे में पढ़ेंगे। पुस्तक के तेरहवें अध्याय में लेखक ने बिल्कुल नवीन संकल्पना कैलाश और महाकैलाश के बारे में प्रस्तुत की है। पुस्तक के अनुसार शिव का वास्तविक निवास महकैलाश है। जबकि कैलाश में शिव के गण आदि रहते हैं। चौदहवे अध्याय में चिर परिचित शिव परिवार में अशोक सुंदरी को पुत्री के रूप में प्रस्तुत किया गया है। साथ ही प्रसंगवश शक्ति के अनेक रूपों का वर्णन भी किया गया है। जो पाठक को पढ़ना अत्यंत रुचिकर होगा।
पंद्रहवें अध्याय में ग्यारह प्रकर के शैव मतावलंबियों का वर्णन है। सबके अलग-अलग आराधना-उपासना करने के तरीके हैं। लेखक ने बड़े ही रोचक ढंग से इन सब पद्धतियों का वर्णन किया है। वहीं सोलहवें अध्याय में शिव की अविमुक्त और प्रिय नगरी काशी का विस्तृत शास्त्रीय वर्णन है। उसका प्राकट्य और विनाश के समय उसके स्थान का वर्णन भी इस अध्याय में है। सत्रहवाँ अध्याय में भगवान के शिव के प्रिय लिंगों का वर्णन है और अठारहवाँ अध्याय देश भर के प्रमुख शिव मंदिरों का वर्णन से परिपूर्ण है, साथ ही पंच केदार का विस्तृत वर्णन भी दिया गया है। उन्नीसवें अध्याय में शिव को संस्कृत और तमिल भाषा के जनक के रूप में दर्शाया गया है। बीसवें अध्याय में महामृत्युंजय मंत्र की व्याख्या और उसके महत्त्व को समझाया गया है। इक्कीसवें अध्याय में पंचाक्षरी मन्त्र का महत्व कहा गया है। पांच दिव्य शब्द जीवन में आनंद की अनुभूति करा सकते हैं। बाईसवें अध्याय में बारह ज्योतिर्लिंगों का संक्षिप्त परिचय है। तेईसवें अध्याय में रुद्राक्ष की उत्पत्ति और महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है। चौबीसवें अध्याय में भस्म, त्रिपुंड और अघोर का वर्णन है। पच्चीसवाँ अध्याय समसामयिक विषय पर है। आज नशे की लत विस्फोटक रूप से प्रस्फुटित हो गई है। नशाखोर शिवजी की आड़ लेकर बेरोकटोक वर्जित पदार्थो का सेवन करते हैं और शिवजी को उधृत करते रहते हैं। पता नही इन लोगो ने किस शास्त्र में ऐसी निम्न सोच को संसार पर थोपा है। शिवजी चौबीसों घण्टे तपस्यारत रहते हुए संसार का ध्यान रखते हैं। ये नशेड़ी अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए ये प्रत्येक शिवभक्त का अपमान कर रहे हैं। इस अध्याय में लेखक ने बताया है कि भगवान शिव का नशे से कोई लेना देना नहीं है। धर्मविरोधी लोग जानबूझकर अथवा अज्ञान के कारण भगवान शिव को लेकर ऐसा दुष्प्रचार करते हैं।
अंशुल पांडेय ने अपनी प्रथम पुस्तक में भगवान शिव को लेकर सनातन शास्त्रों से प्रामाणिक तथ्य एकत्र करके गागर में सागर भरने का प्रयास किया है। यह पुस्तक हर पाठक को बहुत कम समय में भगवान शिव के निकट ले जाने का एक उत्कृष्ट उद्यम है। अपनी तथ्यों को प्रमाणित बनाने के लिए लेखक ने आवश्यकतानुसार संदर्भ भी दिए हैं। मेरा मत है यह पुस्तक छोटे बच्चों पढ़ाना चाहिए। इस पुस्तक की अंग्रेजी बहुत सरल है जो कोई भी समझ सकता है। आज का युवा ऐसे उद्यम कर रहा है यह देखकर मन आश्वस्त हो गया है कि धर्मविरोधी ज्यादा समय तक नहीं टिक पाएंगे।
प्रकाशक इस पुस्तक का प्रचार अच्छे से करे तो यह शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की रूचि बनेगी। इसका हिंदी संस्करण और प्रभावी होगा। इस पुस्तक को निम्न लिंक से प्राप्त कर सकते हैं :