संघ-भाजपा समर्थकों का पक्ष:- पूरे विश्व के हिंदुओं की सुरक्षा का ठेका क्या सिर्फ भाजपा और आर. एस. एस. वालों को ही दी गई है? या अन्य राजनीतिक और गैर राजनीतिक पार्टियों की भी कुछ करने की भूमिका बनती है?
उत्तर:-
१. जब तक सत्ता में दूसरी पार्टियाँ रहती हैं, तब ये तर्क ध्यान नहीं आता कि सब अपेक्षा सत्ताधारी से न करें?
२. फिर, ‘हिन्दू राष्ट्र’, और ‘मुस्लिम तुष्टिकरण विरोध’ का प्रोपेगंडा और किस पार्टी ने किया था कि इसे दूसरों के कंधे पर ठेलें?
३. नेतृत्व उसी को कहते हैं जो स्वयं वह करे जिसके अनुकरण की अपेक्षा दूसरे से हो।
अतः नेतृत्व व सत्ता पर काबिज होकर यदि पिद्दीराम गंभीरतम कर्तव्य दूसरों के कंधे पर ठेले, जो अनुकरण में दूसरे उसे तीसरे चौथे के कंधे पर ठेलेंगे। वह तर्कपूर्ण ही होगा। ‘हम ही क्यों’ की दलील सभी दे सकते हैं, सत्ताविहीन लोग और धड़ल्ले से।
४. और ये सभी कठदलीली भी अनुमानित, सो व्यर्थ है। जिस नेतृत्व के विश्वासघात, मूढ़ता और निकम्मेपन की आलोचना हो रही है – क्या उसके मुँह में जबान नहीं कि गंभीरतम मुद्दों, आलोचनाओं, भयंकर घटनाओं पर जिम्मेदारी से कुछ ऑन रिकॉर्ड कहे जिस से कम से कम प्रमाणिक विचार भी हो सके?
मुँह छिपाये, सुरक्षाकर्मियों से घिरे, बंद रहना – ताकि किसी असुविधाजनक सवाल या घटना पर कोई पूछ न दे, यह तो भीरुता और गैरजिम्मेदारी की पराकाष्ठा है। देश के किसी भाग में एक समुदाय को, आपका समर्थक होने के कारण कत्ल किया जाए, उस के मंदिरों स्त्रियों का मानमर्दन हो, इस पर दूसरों को बोलना चाहिए? और आप नई बहू समान चुप रहें!
वाह रे, ५६” सीने वाले! यह छप्पन-इंची दावा क्या कांग्रेस, कम्युनिस्ट, या जनता दल ने किया था कि उस की ओर देखें? भगोड़ेपन, कायरता, उत्तरदायित्व हीनता, और मतिहीन की हद है!
साभार!