बरखा दत्त से जुड़ा मामला हो और गर्म न हो ऐसा हो नहीं सकता, आज-कल बाजार गर्म है कि पत्रकार बरखा दत्त अपना अंग्रेजी न्यूज चैनल लेकर आ रही है। सूत्रों के मुताबिक अर्णब गोस्वामी के राष्ट्रवादी पत्रकारिता वाले रिपब्लिक न्यूज चैनल के विकल्प के रूप में अलगाववादियों और माओवादियों की समर्थक रही बरखा दत्त को आगे लाने में कांग्रेस नेतृत्व एवं कांग्रेस के वकील नेता कपिल सिब्बल की भूमिका मानी जा रही है! पाकिस्तान के जेल में बंद कुलदीप जाधव को जासूस बताने जैसी फेक न्यूज़ करने वाली वेब साईट The quint और उसके मालिक राघव बहल की फंडिंग भी इसमें लगने की सूचना छन कर आ रही है। वैसे भी मोदी सरकार आने के बाद बरखा दत्त और राघव बहल, दोनों ही बेरोजगार हो गए थे। हवाला और मनी लोंड्रिंग के केस में घिरे NDTV से निकली बरखा और CNN-IBN के बिकने से राघव बहल पहले ही मोदी सरकार से खार खाए बैठे हैं।
पत्रकारिता हो या राजनीति, क्रिकेट हो या कूटनीति समय (टाइमिंग) बहुत महत्वपूर्ण होता है। बरखा दत्त ने अपने चैनल के लिए जो समय चुना है उसको लेकर वह खुद जानती होगी कि सवाल तो उठेगा। अब जब लोकसभा चुनाव का साल है तो ऐसे में सवाल तो उठना लाजिमी है। लेकिन हमारा सवाल है कि वह न्यूज चैनल होगा या अभियान चैनल? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उनका विगत पत्रकारिता इतिहास इसी ओर इशारा करता है। वह हमेशा ही एक राष्ट्रीयता के खिलाफ अभियान का हिस्सा रही हैं। ऐसे में अगर यह कहा जाए कि मोदी के खिलाफ अभियान को तेज करने के लिए ही बरखा दत्त न्यूज चैनल लेकर आ रही है तो कोई गलत नहीं होगा। अगर दूसरे शब्दों में कहें कि मोदी के खिलाफ कांग्रेस-कम्युनिस्ट युग्म ने चैनल रूपी हथियार थमाकर बरखा दत्त को भी मोर्चे पर लगा दिया है।
साल-सवा साल पहले ही 21 साल तक नौकरी करने के बाद उन्होंने एनडीटीवी छोड़ कर भारत के खिलाफ आलेख को तरजीह देने वाली विदेशी अखबार ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के लिए स्तंभ लेखन शुरू किया था। वहां भी उनके आलेख भारतीयता के खिलाफ ही होते थे। उनकी पत्रकारिता का इतिहास ही सस्ती और नकारात्मक लोकप्रियता हासिल करने पर आधारित रहा है। वह चाहे कारगिल युद्ध के दौरान उनकी रिपोर्टिंग रही हो या फिर मुंबई में हुए आतंकी हमले की रिपोर्टिंग। देश के हर कोने से उनकी आलोचना की गई, लेकिन उसे वह अपनी लोकप्रियता मान बैठी। खुद को एंटी एस्टैब्लिशमेंट कहने वाली जर्नलिस्ट बरखा दत्त ने 2004 से 2014 तक सत्ता में रही सोनिया गांधी की मनमोहन सरकार के घोटालों को उजागर करने वाली एक भी खबर नहीं की थी, उल्टा यूपीए सरकार के 2जी घोटाले में वह एक राजदार के रूप में शामिल रही थी!
मनमोहन सिंह की सरकार में ए.राजा को टेलीकॉम मंत्री बनाने के लिए कॉरपोरेट लॉबिस्त नीरा राडिया के साथ मिलकर बरखा दत्ता ने जो लॉबिंग की थी, देश उसे भूला नहीं है। इस लॉबिंग के एवज में मनमोहन सरकार की कृपा एनडीटीवी पर बरसी और बकौल बरखा, एनडीटीवी को 450 करोड़ का बैंक लोन मिल गया था! दरअसल एंटी-स्टेब्लिशमेंट नहीं, प्रो-कांग्रेस, प्रो-पाकिस्तान,प्रो-अलगाववादी और प्रो-आतंकवादी पत्रकारिता का इतिहास है बरखा दत्त का!
बरखा हमेशा से राष्ट्रीयता के खिलाफ रही है। यहां तक कि एनडीटीवी से निकलने के बाद उसने शेखर गुप्ता के साथ मिलकर ‘द प्रिंट’ की शुरुआत की थी। बाद में शेखर गुप्ता से उसकी अनबन हो गयी और वह वहां से भी निकल गयी। वैसे शेखर गुप्ता की भी पूरी पत्रकारिता राष्ट्रीयता के खिलाफ रही है। वह चाहे भारतीय सेना द्वारा कांग्रेस की सत्ता पलटने की काल्पनिक रिपोर्ट हो या फिर तमिल आतंकी संगठन लिट्टे को भारतीय सेना द्वारा प्रशिक्षण देने की खबर हो, शेखर गुप्ता ने हमेशा भारत का अपमान किया है। यही कारण है कि शेखर व बरखा की खूब जमी, लेकिन बिजनस में स्वार्थ को लेकर दोनों अलग हो गये।
मुख्य बिंदु
* अर्णब गोस्वामी के के विकल्प के रूप में बरखा दत्त को आगे कर रही है कांग्रेस
* कारगिल युद्ध और मुंबई में आतंकी हमले के दौरान बरखा की रिपोर्टिंग की चौतरफा हुई थी आलोचना
राष्ट्र के खिलाफ अभियान में शामिल होने का एक उदाहरण पूर्व अलगाववादी नेता सज्जाद लोन का वो साक्षात्कार भी है जिसमें उन्होंने खुले तौर पर सेना से लेकर केंद्र की भाजपा सराकर को कश्मीर समस्या के लिए जिम्मेदार साबित करती दिख रही हैं। वही सज्जाद लोन जिन्होंने देश के खिलाफ करतूतों से आजिज आकर अलगाववादियों से खुद को अलग कर मुख्य-धारा की राजनीति में शामिल हो गया था। साक्षात्कार के दौरान बरखा दत्त ने अपनी बात उसके मुंह में डालकर यह कहलवाने के प्रयास में दिखती है कि ‘कश्मीर समस्या के लिए भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और सेना जिम्मेदार है।’ जबकि लोन स्पष्ट शब्दों में कह रहे हैं कि कश्मीर समस्या के लिए सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की सरकार और प्रदेश में ज्यादा समय तक सरकार चलाने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के मुखिया अब्दुल्ला परिवार रहा है।
देखा जाए तो अभी तक की पत्रकारिता में उनकी अपनी महत्वाकांक्षा ही आगे रही है। तभी तो वक्त आने पर एनडीटीवी तक का साथ छोड़ने में भी गुरेज नहीं किया जहां से उन्हें इतनी सोहरत मिली, भले वह नकारात्मक हो! इस प्रकार के पत्रकारिता इतिहास को देखकर बरखा दत्त के आने वाले न्यूज चैनल की भविष्यवाणी करना कोई कठिन काम नहीं है। ऐसे में उसका चैनल निश्चित रूप से न्यूजरहित एजेंडासहित ही रहने वाला है। इस चैनल पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के साथ भाजपा के खिलाफ चलने वाले अभियान को गति देने के साथ नए प्रकार का एजेंडा सेट करने के प्रयास होंगे। इसलिए अभी से कहा जा सकता है कि फेक न्यूज प्रचारित करने वाले एनडीटीवी, आज तक, द वायर, द मीडिया विजिल, द अल्ट, द प्रिंट जैसों की जमात में एक और नया नाम जुड़ने वाला है।
URL: barkha dutt to launch english news channel against aranb republic tv
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